बुधवार, 27 जनवरी 2016

मेरी पोस्ट (तुम्हारी याद आती है )को जागरण जंक्शन पर शामिल

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है की मेरी पोस्ट  (तुम्हारी याद आती है )को जागरण जंक्शन पर शामिल किया गया है।  आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं। 




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तुम्हारी याद आती है
जुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती है
मेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है
कहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा है
भरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा है
मुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती है
नहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है..
कदम बहकें हैं अब मेरे ,हुआ चलना भी मुश्किल है
ये मौसम है बहारों का , रोता आज ये दिल है
ना कोई अब खबर तेरी ,ना मिलती आज पाती है
हालत देखकर मेरी ये दुनिया मुस्कराती है
बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है
उधर तन्हा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है
पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है
मदन मोहन सक्सेना
 

रविवार, 24 जनवरी 2016

ये कैसा तंत्र






गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभ कामनाएँ

ये कैसा तंत्र 


 कैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें बतन मेरे वह  आ जाये

तिजोरी में भरा धन है मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी भुखमरी में क्यों जीबन बीतता जाये

ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आये

कभी बाटाँ धर्म ने है ,कभी जाति में खोते हम
हमारे रह्नुमाओं का, असर हम  पर नजर आये

ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा तंत्र है यारों ,   ये जल्दी से गुजर जाये

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

जीने का हौसला





 
सिर्फ एक एहसास कि आपको कोई दिल से निस्वार्थ चाहता है , तंग दिल दुनियां में  दुनियाभर की दुशबारियों के बीच जीने का हौसला दे जाता है। 


मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

खेल जिंदगी।


 

 



जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।


किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

उसने कुछ बोला नहीं

उसने कुछ बोला नहीं




जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की 

दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के  बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया 

उसके बारे में 
महानगर के बारे में 
और 
जिंदगी के बारे में


 मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा

इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा





वक़्त की रफ़्तार ने क्या गुल खिलाया आजकल
दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं


इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं 


डर किसे कहतें हैं , हमको उस समय मालूम चला
जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं


अंदाज बदला दोस्ती का कुछ इस तरह से आजकल
खामोश रहकर, आज वह हमसे मिला करते हैं



मदन मोहन सक्सेना
जिस सस्ती लोकप्रियता को भुनाने के लिए और सुर्ख़ियों  में बने रहने के लिए आमिर खान ने जैसा बयां दिया है उसकी जितनी निंदा की जाये कम हैं , अब आगे से मैं आमिर खान की फिल्मो से अपने को दूर रखूँगा और आप। 


मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 22 नवंबर 2015

एक कथा (देवउठनी एकादशी /देवप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह )

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at: http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/tulsi-vivah#sthash.GwGREFdB.dpuf
गवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at: http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/tulsi-vivah#sthash.GwGREFdB.dpuf

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस  साल तुलसी विवाह 23 नवंबर 2015 को है।देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस मांगलिक प्रसंग के शुभ अवसर पर भक्तगण घर की साफ -सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं। शाम के समय तुलसी चौरा यानि तुलसी के पौधे के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरूप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं।










एक लड़की जिसका नाम वृंदा था ,राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी,बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी। जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुए थे .वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी हमेशा अपने पति की सेवा किया करती। कुछ समय बाद सुर और असुरों में भयंकर युद्ध हुआ। जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा।  स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेंगे,में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी।जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी। उनके व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर को ना जीत सके. सारे देवता जब हारने लगे तो वे सभी भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे , उन्होने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि  वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।   देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छूए। इधर जैसे ही इनका संकल्प टूटा,उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार गिराया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में आकर गिरा .जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
कौन हो आप जिसका स्पर्श मैने अनजाने किया है ,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई,। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, भगवान तुंरत पत्थर के हो गये, सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगी. तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी.।  उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा , आज से इनका नाम  तुलसी होगा, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप मे भी रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी पत्र के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी पत्र के भोग स्वीकार नहीं करुंगा।तभी से आज के दिन तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगेऔर तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है
 


एक कथा (देवउठनी एकादशी /देवप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह )

मदन मोहन सक्सेना




शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

हम तुम

कभी कभी लगता है की हम तुम एक ही थैली के चट्टे बट्टे हों , मैं तुझमें अपने को खोजता रहता हूँ और एक तू है जो मुझमें अपने को तलाशती रहती है। 


मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 18 नवंबर 2015

रिश्तें नातें प्यार बफ़ा

 
 
 
रिश्तें नातें प्यार बफ़ा से
सबको अब इन्कार हुआ

बंगला ,गाड़ी ,बैंक तिजोरी
इनसे सबको प्यार हुआ

जिनकी ज़िम्मेदारी घर की
वह सात समुन्द्र पार हुआ

इक घर में दस दस घर देखें
अज़ब गज़ब सँसार हुआ

मिलने की है आशा जिससे
उस से सब को प्यार हुआ

ब्यस्त हुए तव बेटे बेटी
बूढ़ा जब वीमार हुआ


रिश्तें नातें प्यार बफ़ा
 
 
मदन मोहन सक्सेना