बुधवार, 26 जून 2013

सियासत


 



















इंसानों की बस्ती पर 
कुदरत की सबसे बड़ी मार
नेताओं का तांडव टूरिज्म 
तबाही पर नेताओं की सियासत 
किसी ने हजारों गुजराती  को सुरक्षित ले जाने का दाबा  किया 
तो कोई आठ दिन बाद अबतरित हुआ और 
ताम झाम के साथ राहत सामग्री को भेजता नजर आया 
तो कोई कोई हबाई दौरों से ही अपना कर्तब्य पूरा करता नजर आया 
भले ही हजारों लोग अब भी राहत का इंतज़ार कर रहे हों 
लेकिन
सूबे के मुखिया जिनकी जिम्मेदारी 
सूबे के लोगों के जान माल की सुरक्षा करना है 
बिज्ञापन देने में ब्यस्त हैं
उत्‍तराखंड में आई भीषण त्रासदी 
राहत कार्यों को लेकर सियासत चरम पर
देहरादून में कांग्रेस और टीडीपी के नेताओं में हाथापाई 
हाथापाई राहत का क्रेडिट लेने को लेकर 
हंगामे के दौरान टीडीपी अध्यक्ष भी वहां मौजूद
इंसानों की बस्ती पर 
कुदरत की सबसे बड़ी मार
नेताओं का तांडव टूरिज्म 
तबाही पर नेताओं की सियासत 
नेताओं को इस तरह भिड़ते देखकर 
लोगों का सिर शर्म से झुक जाए
लेकिन इनको ना शर्म आई और 
ना ही उत्तराखंड की तबाही में बर्बाद हुए लोगों की इन्हें फिक्र है
इन्हें फिक्र है तो बस इस बात की कि इनकी सियासत में कुछ गड़बड़ ना हो जाए.
ये कौन सा दौर है 
जहाँ आदमी की जान सस्ती है 
और राजनीति का ये कौन सा चरित्र है 
जहाँ सिर्फ सियासत 
ही मायने रखती है 
इसके लिए जितना भी गिरना हो 
मंजूर है .

प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 21 जून 2013

श्रद्धा





















कुदरत का कहर 
कई हजार लोगों के बीच में फसें होने की उम्मीद
अपनों का इंतज़ार करती आँखें 
जिंदगी की चाहत में मौत से पल पल का संघर्ष
फिर से बही गंदी कहानी 
शबों से पैसे,गहने  लुटते
आदमी के रूप में शैतान 
सरकार का बही ढीला रबैया 
हजारों के लिए गिनती के हेलिकॉप्टर 
राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की कशमकश
इस बीच 
खुद को
लाचार ,ठगा महसूस 
करता इस देश का नागरिक .
इन सबके बीच 
भारतीय सेना के जबानों ने 
साबित कर दिया
कि उनके मन में जितनी श्रद्धा 
भारत मत के लिए है 
उतनी या उससे कहीं अधिक 
चिंता देश के अबाम की है .


मदन मोहन सक्सेना .

गुरुवार, 20 जून 2013

फिर एक बार

पहले का केदारनाथ मंदिर









 
अभी का केदार नाथ मंदिर










फिर एक बार कुदरत का कहर
फिर एक बार मीडिया में शोर
फिर एक बार नेताओं का हवाई दौरा
फिर एक बार दानबीरों की कर्मठता
फिर एक बार प्रशाशन का  कुम्भकर्णी नींद से जागना
फिर एक बार
मन में कौंधता अनुत्तरित प्रश्न
आखिर ये कब तक
हम चेतेंगें भी या नहीं
आखिर
जल जंगल जमीन की अहमियत कब जानेगें?

मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 18 जून 2013

भरमार

एक तरफ देश में जहाँ गरीब जनता अपने लिए दो जून की रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रही है. देश में मंत्रियों का चुनाब काबिलियत के बजाय संबंधों पर किया जा रहा है . जनप्रतिनिधि जनता के प्रति अपनी जबाबदेही समझते ही नहीं है . अपने राजनितिक आकाओं को ही खुश करने में ही लगे रहतें हैं .


कांग्रेस में चाटूकारों की कमी नहीं है। सोनिया की चापलूसी करने वाले उनके लिए कुछ भी कर सकते है। राजनैतिक आका के लिए वफादारी का भोंडा प्रदर्शन करने में कांग्रेसी नेता कभी पीछे नहीं हटते है। कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष और प्रसंस्करण और कृषि विभाग के मंत्री खाद्य चरण दास महंत भी पार्टी अध्यक्ष सोनिया के लिए कुछ भी कर सकते है। अपनी वफादारी साबित करने के लिए वो सोनिया के कहने पर झाड़ू पोंछा करने तक को तैयार है।
महंत ने कहा है कि वह सोनिया के कहने पर पोंछा लगाने को भी तैयार हैं। छत्तीसगढ़ में पार्टी अध्यक्ष और मनमोहन सरकार के मंत्री से जब दोहरी जिम्मेदारी मिलने पर सवाल किया गया तो महंत ने जवाब दिया, 'अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुझसे झाड़ू उठाकर राज्य कांग्रेस दफ्तर साफ करने को कहेंगी, तो मैं वह भी करूंगा।


हम   को   खबर  लगी  आज कल  अब  ये  
चमचों  की   होने  लगी आज भरमार है 

मैडम  जब    हँसती   हैं हँस देते कांग्रेसी  
साथ साथ  रहने को हुए बेकरार हैं 

कद  मिले, पद  मिले, और मंत्री पद मिले 
चमचों का होने लगा आज सत्कार है

चमचों ने पाए लिया ,खूब माल खाय लिया 
जनता है भूखी प्यासी ,हुआ हाहाकार है



 प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 14 जून 2013

नीति








दो चार बर्ष की बात नहीं अब अर्ध सदी गुज़री यारों 
हे भारत बासी मनन करो क्या खोया है क्या पाया है 

गाँधी सुभाष टैगोर  तिलक ने जैसा भारत सोचा था 
भूख गरीबी न हो जिसमें , क्या ऐसा भारत पाया है 


क्यों घोटाले ही घोटाले हैं और जाँच चलती रहती 
पब्लिक भूखी प्यासी रहती सब घोटालों की माया है 

अनाज भरा गोदामों में और सड़ने को मजबूर हुआ 
लानत है ऐसी नीति पर जो भूख मिटा न पाया है 

अब भारत माता लज्जित है अपनों की इन करतूतों पर 
बंसल ,नबीन  ,राजा  को क्यों जनता ने अपनाया है। 



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

मंगलवार, 4 जून 2013

मुश्किल





पाने को आतुर रहतें हैं  खोने को तैयार नहीं है
 जिम्मेदारी ने
मुहँ मोड़ा सुबिधाओं की जीत हो रही.

साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही .

कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी  है
जैसा देखा बैसी बातें  .जग की अब ये रीत हो रही ...

अब खेलों  में है  राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस्से किसकी मीत हो रही

क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और  तन्हाई की जीत हो रही

 

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना