आज से चार धाम की यात्रा की शुरुआत हो गयी है। हिन्दू धर्म में चार धाम की यात्रा का बहुत महत्ब है. चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है।
यमुनोत्री
चारधाम
यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम की बहन
देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर चंपासर
ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह
असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की, जिससे
प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा
के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर
अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता है
कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श
किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर
अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से
१९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग
में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ धाम बारह
ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव
प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल
रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण
पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है।
मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह पवित्र धाराओं
में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बद्रिकाश्रम स्थित
है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में आद्य गुरु
शंकराचार्य ने करवाया।

विद्वानों ने चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम
की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर
चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है
कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की,
जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर
अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता
है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श
किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर
अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से
१९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ
धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव
प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल
रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना
गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह
पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर
बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी
में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
-
See more at:
http://www.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-gangotriyamunotri-open-the-valve-which-began-the-journey-from-birth-to-salvation-12287178.html#sthash.RDukF5de.dpuf
विद्वानों ने चार धामों को जीवन के चार पड़ाव जन्म से लेकर मोक्ष तक माना है। आइए जानें चारो धामों का माहात्म्य :
यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम
की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर
चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है
कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की,
जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर
अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता
है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श
किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर
अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से
१९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ
धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव
प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल
रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना
गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह
पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर
बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी
में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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यमुनोत्री
चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम
की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर
चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है
कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की,
जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर
अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता
है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श
किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर
अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से
१९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ
धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव
प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल
रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना
गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह
पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर
बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी
में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है यमुनोत्री। यहां सूर्यपुत्री शनि व यम
की बहन देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी की दूरी पर
चंपासर ग्लेशियर है, जो यमुना का मूल उद्गम है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है
कि यह असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने देवी यमुना की आराधना की,
जिससे प्रसन्न हो यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए।
गंगोत्री
कथा के अनुसार, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गंगाजी स्वर्ग से धरती पर
अवतरित हुई थीं। गंगोत्री में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है। मान्यता
है कि स्वर्ग से उतरकर गंगाजी ने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श
किया। बताते हैं कि गंगाजी के मंदिर का निर्माण १८वीं सदी में गोरखा कमांडर
अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजी का वास्तविक उद्गम गंगोत्री से
१९ किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थित है।
केदारनाथ
रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी एवं सरस्वती नदी के आंचल में अवस्थित केदारनाथ
धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव
प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल
रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती है।
बदरीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बदरीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना
गया है। मान्यता है कि गंगाजी तीव्र वेग को संतुलित करने के लिए बारह
पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा, जिसके तट पर
बद्रिकाश्रम स्थित है। चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी
में आद्य गुरु शंकराचार्य ने करवाया।
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