बुधवार, 2 जनवरी 2013

तमन्ना




सजा  क्या खूब मिलती है ,  किसी   से   दिल  लगाने  की
तन्हाई  की  महफ़िल  में  आदत  हो  गयी   गाने  की 

हर  पल  याद  रहती  है , निगाहों  में  बसी  सूरत
तमन्ना  अपनी  रहती  है  खुद  को  भूल  जाने  की 

 उम्मीदों   का  काजल    जब  से  आँखों  में  लगाया  है
कोशिश    पूरी  रहती  है , पत्थर  से  प्यार  पाने  की 

अरमानो  के  मेले  में  जब  ख्बाबो  के  महल   टूटे
बारी  तब  फिर  आती  है , अपनों  को  आजमाने  की

मर्जे  इश्क  में   अक्सर हुआ करता है ऐसा भी
जीने पर हुआ करती है ख्बहिश मौत पाने की



ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना






मंगलवार, 1 जनवरी 2013

दो हज़ार तेरह



दो हज़ार बारह तो आम जनता का बाज़ा बजाकर चला गया . देखतें हैं कि दो हज़ार तेरह में क्या क्या देखना होगा।

मदन मोहन सक्सेना  

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

नब बर्ष


 



नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।




मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत  और रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो  निशा में ना  अँधेरा हो

नब बर्ष आज आया है , जलाओ प्रेम के दीपक
गर जलाएं  प्रेम के दीपक  तो  अँधेरा दूर हो जाए
गर रहें हम प्यार से यारों और जीएं और जीने दें
अहम् का टकराब  पल में ही यारों चूर हो जाए

मनाएं हम सलीखें  से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी  बो भी अपने हैं
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं


काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 23 दिसंबर 2012

भारत और दिल्ली की जनता एक बार फिर से लाचार











 










चलती  बस में लड़की के साथ  बलात्कार 
पुलिस प्रशाशन की नाकामी और हार 
युबा और युब्तियों की हमदर्दी और न्याय के लिए प्रदर्शन 
सोनिया राहुल शिंदे शीला पुलिस कमिश्नर  का  निन्दनीय  आचरण 
हमेशा की तरह आन्दोलन को दवाने की साजिश 
पुलिस का ब्यबहार  गैरजरूरी और शरमशार 
भारत और दिल्ली की जनता एक बार फिर से लाचार .



अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं


नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे  ढह गए हैं 


 

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

ग़ज़ल




















आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है

सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है

खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है

मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है

आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रशं लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है

चाँद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
आज हम आबाज देते की बेचना जमीर है 



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

गर कोई देखना चाहें





















कैसी सोच अपनी है ,किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें वतन  मेरे वो  आ जाये

तिजोरी में भरा धन है ,मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी  भुखमरी में क्यों  जीबन बीतता जाये

ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आयें

कभी बाँटा  धर्म ने है ,कभी  जाति में खो जाते
क्यों हमारें रह्नुमाओं का, असर सब पर नजर आये

ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा तंत्र है   यारों , ये जल्दी से गुजर जाये


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

मेरे मालिक मेरे मौला

















मेरे मालिक मेरे मौला ये क्या दुनिया बनाई है
किसी के पास सब कुछ है मगर बह खा नहीं पाये

तेरी दुनियां में कुछ बंदें, करते काम क्यों गंदें

कि किसी के पास कुछ भी ना, भूखे पेट सो जाये

जो सीधे सादे रहतें हैं मुश्किल में क्यों रहतें है
तेरी बातोँ को तू जाने, समझ अपनी ना कुछ आये

ना रिश्तों की महक दिखती ना बातोँ में ही दम दीखता
क्यों मायूसी ही मायूसी जिधर देखो नज़र आये

तुझे पाने की कोशिश में कहाँ कहाँ मैं नहीं घूमा
जब रोता बच्चा मुस्कराता है तू ही तू नजर आये

गुजारिश अपनी सबसे है कि जीयो और जीने दो
ये जीवन कुछ पलों का है पता कब मौत आ जाये

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

जिंदगी

जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।


दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।


किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।


उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।


किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

रहमत






रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता.

मर्जी बिन खुदा यारो तो   जर्रा हिल नहीं सकता 
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता...

मन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लो 
जियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लो 

मर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने सपने हों
रहमत जब खुदा की हो तो बेगाने भी अपने हों 




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

आज छह दिसंबर है





















आज छह दिसंबर है
1992
की याद :


अपना भारत जो दुनिया का सुंदर चमन
सारी दुनिया से प्यारा और न्यारा बतन
ये मंदिर भी अपना और मस्जिद भी अपनी
इनसे आशा की किरणे बनी पाई गयीं

हम तो कहते कि मंदिर में रहता खुदा
जो मंदिर में है न बो इससे जुदा
नाम लेते ही अक्सर असर ये हुआ
बातें बिगड़ी छड़ों में बनाई गयीं

कोई कहता क़ि मंदिर बनेगा यहाँ
कोई कहता कि मस्जिद रहेगी यहाँ
दूरियां बे दिलों की बढ़ातें गए
और कह कह के दहशत बढ़ायी गयी

तुम देखो की भारत में क्या हो रहा
आज राम रहीमा भी क्या सो रहा
अपने हाथों बनाया सजाया जिसे
उसे जलाकर दिवाली मनाई गयी

अपने साथी सखा जो दिलों में रहे
प्यार उनसे हमेशा हम करते रहें
उनके खूनों से हाथों को हमने रँगा
इस तरीके से होली मनाई गयी

आज सूरत की सूरत को क्या हो गया
देखो अब्दुल का बालिद कहाँ खो गया
अब सीता अकेली ही दिखती है क्यों
आज जीबित चिता ही जलाई गयी

अब तो होली में आता नहीं है मजा
ईद पर भी ना हम तो गले ही मिले
आज अपना हमें कोई कहता नहीं
प्यार की सारी बातें भुलाई गयीं

आज मंदिर में रामा भी दिखता नहीं
मुझे मेरा खुदा भी है रूठा हुआ
बो युक्ति जो हमको थी बंधे हुयी
पल भर में सभी बे मिटाईं गयीं

हमको दुनिया में हर पल तो रहना नहीं
खाली हाथो ही जाना पड़ेगा बहां
देख दुनिया हँसी अपनी बुद्धि फसें
सो दुनियां हँसी यूँ बनाई गयीं


काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना