ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह के
जन्मदिन पर उनको शत शत नमन .इस अबसर पर पेश है आज एक अपनी
पुरानी ग़ज़ल जिसे देख कर
खुद जगजीत सिंह जी ने संतोष ब्यक्त किया था . ये मेरे
लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं था।
कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक शख्श अब
दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है
बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद
से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस
कदर अंजान है
गर कहोगें दिन को दिन तो
लोग जानेगें गुनाह
अब आज के इस दौर में दिखते नहीं
इन्सान है
इक दर्द का एहसास हमको हर
समय मिलता रहा
ये बक्त की साजिश
है या फिर बक्त का एहसान
है
गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने
ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है
प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है
ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना