रविवार, 21 जुलाई 2013
बुधवार, 17 जुलाई 2013
पेट की भूख

पेट की भूख की चाहत
मिटाने की खातिर
छपरा के सरकारी स्कूल में
एक दो नहीं बल्कि बीस से ज्यादा बच्चों
को अपनी जिंदगी कुर्बान करनी पड़ी
निवाले हलक से नीचे उतरे नहीं
कि दम लबों पर आ गया
बच्चों के अभिभावकों की पीड़ा
कातर आंखों से आंसुओं की धार बनकर बही
रुंधे गले में अटके लफ्ज
बेटों को खो चुके पिता का कलेजा जार-जार हुआ
इकलौती पुत्री के शव के सामने
विलाप करते पिता को देखकर
दूसरे लोग भी बदहवास हो गए
परिजनों के विलाप से अस्पताल के कोने-कोने में कयामत की थरथरी गूंज गयी
जहरीला मिड डे मिल खाने से
बच्चों की मौत का आंकड़ा 20 के पार हो गया
कुछ बीमार बच्चों का इलाज अभी भी जारीहै
अब भी कुछ बच्चों की हालत काफी नाजुक लगती है
अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते बच्चें
जायज है
नाराज लोगों का गुस्सा सरकार पर
और जायज है
सरकार के खिलाफ गुस्साए लोगों का सड़क पर प्रदर्शन
किन्तु
लोगों की जगह जगह तोड़फोड़ , आगजनी
गुस्साए लोगों का पुलिस वैन को आग के हवाले करना
सही नहीं ठहराया जा सकता
और हादसे के बाद सियासत जारी है
इस्तीफा और नारेबाजी का शोर सुनाई दे रहा है
सियासी पार्टियां पीड़ित परिवारों का दर्द
बांटने की बजाय राजनीतिमें मशगूल दिखती हैं
किसी पार्टी का छपरा बंद का ऐलान
तो किसी पार्टी ने किया बिहार बंद का आवाहन कर दिया
एक बार फिर से मुख्यमंत्री का घटना पर अफ़सोस
एक बार फिर कमिश्नर और पुलिस से जांच कराने के आदेश
एक बार फिर
मृतक बच्चों के परिवार को मुआवजे का ऐलान
कौन जनता था कि
सरकारी विद्यालय में पढ़ाने का यह हश्र होगा
पेट की भूख की चाहत
इस जिंदगी को भी लील लेगी .
सबाल ये है कि
इनका कसूरबार कौन है
बच्चें
उनके अभिभाबक
स्कूल प्रशाशन
लाचार ब्यबस्था
या सब कुछ चलता है कि सोच बाली
हम सब की अपनी आदतें .
ये कोई पहली बार नहीं है
इससे पहले भी देश में कई बार
मिड डे मील खाने से मासूमों की जान जा चुकी है
16 जुलाई 2013, छपरा (बिहार)
छपरा जिले के धर्मसाती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल में जहरीला खाना खाने से 20 बच्चों की मौत।
22 जनवरी 2011, नासिक (महाराष्ट्र)
यहां के नगर निगम के स्कूल में जहरीला भोजन खाने से 61 बच्चे बीमार पड़े।
22 नवंबर 2009
दिल्ली के त्रिलोकपुरी स्थित शारदा जैन राजकीय सर्वोदय बालिका विद्यालय में मिड-डे मील खाने 120 छात्राएं बीमार।
24 अगस्त 2009 सिवनी (मध्य प्रदेश)
सरकारी स्कूल में मिड-डे मील के तहत पोहा खाने से 5 छात्र बीमार, पोहा में मरी हुई छिपकली मिली।
12 सितंबर, 2008 नरेंगा (झारखंड)
मिडल स्कूल में मिड-डे मील खाने से 60 छात्र बीमार।
मदन मोहन सक्सेना .
सोमवार, 15 जुलाई 2013
गुरुवार, 11 जुलाई 2013
तत्सम पत्रिका में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ

तत्सम पत्रिका में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ .
एक :
संबिधान है
न्यायालय है
मानब अधिकार आयोग है
लोकतांत्रिक सरकार है
साथ ही
आधी से अधिक जनता
अशिक्षित ,निर्धन और लाचार है .
दो:
कृषि प्रधान देश है
भारत भी नाम है
भूमि है ,कृषि है, कृषक हैं
अनाज के गोदाम हैं
साथ ही
भुखमरी, कुपोषण में भी बदनाम है .
तीन:
खेल है
खेल संगठन हैं
खेल मंत्री है
खेल पुरस्कार हैं
साथ ही
खेलों के महाकुम्भ में
पदकों की लालसा में
सौ करोड़ का भारत भी देश है .
मदन मोहन सक्सेना .
रविवार, 7 जुलाई 2013
धमाका
एक और आतंकी धमाका
जगह बदली
किन्तु
तरीका नहीं बदला
बदला लेने का
एक बार फिर धमाका
मीडिया में फिर से शोर
नेताओं को घटना स्थल पहुचनें की बेकरारी
सुरक्षा एजेंसियों की एक
और जांच पड़ताल
राजनेताओं में एक और हड़कंप,
आम लोगों को अपने बजूद की चिंता
सुरक्षा एजेंसियों को अपने साख बचाने की चिंता
जगह जगह छापे
और फिर
यदि कोई सूत्र मिला भी
और आंतकी हत्थे लगा भी तो
फिर से बही क़ानूनी पेचीदगियाँ
फिर से
कोर्ट दर कोर्ट का सफ़र
और यदि सजा हो भी गयी
फिर से रहम की गुजारिश
फिर से दलगत और प्रान्त की राजनीति
और
फिर से
बही पुनराब्रती
सच में कितना अजीब लगता है
जब आंतकी
और मानब अधिकारबादी
मौत की सजा माफ़ करने की बात करतें है
उनके लिए (आंतकी )
जिसने मानब को कभी मानब समझा ही नहीं .
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 2 जुलाई 2013
शून्यता
जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है
कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है
दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है
मदन मोहन सक्सेना
बुधवार, 26 जून 2013
सियासत

इंसानों की बस्ती पर
कुदरत की सबसे बड़ी मार
नेताओं का तांडव टूरिज्म
तबाही पर नेताओं की सियासत
किसी ने हजारों गुजराती को सुरक्षित ले जाने का दाबा किया
तो कोई आठ दिन बाद अबतरित हुआ और
ताम झाम के साथ राहत सामग्री को भेजता नजर आया
तो कोई कोई हबाई दौरों से ही अपना कर्तब्य पूरा करता नजर आया
भले ही हजारों लोग अब भी राहत का इंतज़ार कर रहे हों
लेकिन
सूबे के मुखिया जिनकी जिम्मेदारी
सूबे के लोगों के जान माल की सुरक्षा करना है
बिज्ञापन देने में ब्यस्त हैं
उत्तराखंड में आई भीषण त्रासदी
राहत कार्यों को लेकर सियासत चरम पर
देहरादून में कांग्रेस और टीडीपी के नेताओं में हाथापाई
हाथापाई राहत का क्रेडिट लेने को लेकर
हंगामे के दौरान टीडीपी अध्यक्ष भी वहां मौजूद
इंसानों की बस्ती पर
कुदरत की सबसे बड़ी मार
नेताओं का तांडव टूरिज्म
तबाही पर नेताओं की सियासत
नेताओं को इस तरह भिड़ते देखकर
लोगों का सिर शर्म से झुक जाए
लेकिन इनको ना शर्म आई और
ना ही उत्तराखंड की तबाही में बर्बाद हुए लोगों की इन्हें फिक्र है
इन्हें फिक्र है तो बस इस बात की कि इनकी सियासत में कुछ गड़बड़ ना हो जाए.
ये कौन सा दौर है
जहाँ आदमी की जान सस्ती है
और राजनीति का ये कौन सा चरित्र है
जहाँ सिर्फ सियासत
ही मायने रखती है
इसके लिए जितना भी गिरना हो
मंजूर है .
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
शुक्रवार, 21 जून 2013
श्रद्धा
कुदरत का कहर
कई हजार लोगों के बीच में फसें होने की उम्मीद
अपनों का इंतज़ार करती आँखें
जिंदगी की चाहत में मौत से पल पल का संघर्ष
फिर से बही गंदी कहानी
शबों से पैसे,गहने लुटते
आदमी के रूप में शैतान
सरकार का बही ढीला रबैया
हजारों के लिए गिनती के हेलिकॉप्टर
राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की कशमकश
इस बीच
खुद को
लाचार ,ठगा महसूस
करता इस देश का नागरिक .
इन सबके बीच
भारतीय सेना के जबानों ने
साबित कर दिया
कि उनके मन में जितनी श्रद्धा
भारत मत के लिए है
उतनी या उससे कहीं अधिक
चिंता देश के अबाम की है .
मदन मोहन सक्सेना .
गुरुवार, 20 जून 2013
फिर एक बार
![]() |
पहले का केदारनाथ मंदिर |
![]() |
अभी का केदार नाथ मंदिर |
फिर एक बार कुदरत का कहर
फिर एक बार मीडिया में शोर
फिर एक बार नेताओं का हवाई दौरा
फिर एक बार दानबीरों की कर्मठता
फिर एक बार प्रशाशन का कुम्भकर्णी नींद से जागना
फिर एक बार
मन में कौंधता अनुत्तरित प्रश्न
आखिर ये कब तक
हम चेतेंगें भी या नहीं
आखिर
जल जंगल जमीन की अहमियत कब जानेगें?
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 18 जून 2013
भरमार
एक तरफ देश में जहाँ गरीब जनता अपने लिए दो जून की रोजी रोटी के लिए संघर्ष कर रही है. देश में मंत्रियों का चुनाब काबिलियत के बजाय संबंधों पर किया जा रहा है . जनप्रतिनिधि जनता के प्रति अपनी जबाबदेही समझते ही नहीं है . अपने राजनितिक आकाओं को ही खुश करने में ही लगे रहतें हैं .
कांग्रेस में चाटूकारों की कमी नहीं है। सोनिया की चापलूसी करने वाले उनके लिए कुछ भी कर सकते है। राजनैतिक आका के लिए वफादारी का भोंडा प्रदर्शन करने में कांग्रेसी नेता कभी पीछे नहीं हटते है। कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष और प्रसंस्करण और कृषि विभाग के मंत्री खाद्य चरण दास महंत भी पार्टी अध्यक्ष सोनिया के लिए कुछ भी कर सकते है। अपनी वफादारी साबित करने के लिए वो सोनिया के कहने पर झाड़ू पोंछा करने तक को तैयार है।
महंत ने कहा है कि वह सोनिया के कहने पर पोंछा लगाने को भी तैयार हैं। छत्तीसगढ़ में पार्टी अध्यक्ष और मनमोहन सरकार के मंत्री से जब दोहरी जिम्मेदारी मिलने पर सवाल किया गया तो महंत ने जवाब दिया, 'अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुझसे झाड़ू उठाकर राज्य कांग्रेस दफ्तर साफ करने को कहेंगी, तो मैं वह भी करूंगा।
हम को खबर लगी आज कल अब ये
चमचों की होने लगी आज भरमार है
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
कांग्रेस में चाटूकारों की कमी नहीं है। सोनिया की चापलूसी करने वाले उनके लिए कुछ भी कर सकते है। राजनैतिक आका के लिए वफादारी का भोंडा प्रदर्शन करने में कांग्रेसी नेता कभी पीछे नहीं हटते है। कांग्रेस के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष और प्रसंस्करण और कृषि विभाग के मंत्री खाद्य चरण दास महंत भी पार्टी अध्यक्ष सोनिया के लिए कुछ भी कर सकते है। अपनी वफादारी साबित करने के लिए वो सोनिया के कहने पर झाड़ू पोंछा करने तक को तैयार है।
महंत ने कहा है कि वह सोनिया के कहने पर पोंछा लगाने को भी तैयार हैं। छत्तीसगढ़ में पार्टी अध्यक्ष और मनमोहन सरकार के मंत्री से जब दोहरी जिम्मेदारी मिलने पर सवाल किया गया तो महंत ने जवाब दिया, 'अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुझसे झाड़ू उठाकर राज्य कांग्रेस दफ्तर साफ करने को कहेंगी, तो मैं वह भी करूंगा।
हम को खबर लगी आज कल अब ये
चमचों की होने लगी आज भरमार है
मैडम जब हँसती हैं हँस देते कांग्रेसी
साथ साथ रहने को हुए बेकरार हैं
कद मिले, पद मिले, और मंत्री पद मिले
चमचों का होने लगा आज सत्कार है
चमचों ने पाए लिया ,खूब माल खाय लिया
जनता है भूखी प्यासी ,हुआ हाहाकार है
प्रस्तुति :
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