सोमवार, 9 सितंबर 2013
सोमवार, 26 अगस्त 2013
कृष्ण जन्म अष्टमी पर बिशेष ( अर्थ का अनर्थ )
अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए
दुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज सभी अभिशप्त हुए
नन्द दुलारे कृष्ण कन्हैया ,अब भक्त पुकारे आ जाओ
प्रभु दुष्टों का संहार करो और प्यार सिखाने आ जाओ
अर्थ का अनर्थ
एक रोज हम यूँ ही बृन्दावन गये
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है ,सब मालामाल हैं
कुछ देर बाद हमने ,एक सवाल कर दिया
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया
सवाल सुन करके बो कुछ लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने
हमने उनसे कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग , हममें तुममें भेद कर रहे
भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,दुष्टों को भी संहारा
मैनें उनसे कहा सुनिए ,हम कैसे काम करते है
करता काम कोई है ,हम अपना नाम करते हैं
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है, कल क्या होगा ,ये ना सोचा करते
माता पिता मित्र सखा आये कोई भी
किसी भी तरह हम डराया करते
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह
रूठने से उनको मनाया करते
बात जब फिर भी नहीं है बनती
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है ,सब मालामाल हैं
कुछ देर बाद हमने ,एक सवाल कर दिया
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया
सवाल सुन करके बो कुछ लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने
हमने उनसे कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग , हममें तुममें भेद कर रहे
भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,दुष्टों को भी संहारा
मैनें उनसे कहा सुनिए ,हम कैसे काम करते है
करता काम कोई है ,हम अपना नाम करते हैं
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है, कल क्या होगा ,ये ना सोचा करते
माता पिता मित्र सखा आये कोई भी
किसी भी तरह हम डराया करते
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह
रूठने से उनको मनाया करते
बात जब फिर भी नहीं है बनती
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते
मार काट लूट पाट हत्या राहजनी
अपनें हैं जो ,मर्जी हो बो करें
कहना तो अपना सदा से ये है
पुलिस के दंडें से फिर क्यों डरे
धोखे से जब कभी बे पकड़े गए
पल भर में ही उनको छुटाया करते
जब अपनें है बे फिर कष्ट क्यों हो
पल भर में ही कष्ट हम मिटाया करते
ये सुनकर के भगबान कहने लगे
क्या लोग दुनियां में इतना सहने लगे
बेटा तुने तो अर्थ का अनर्थ कर दिया
ऐसे कर्मों से जीवन अपना ब्यर्थ कर दिया
तुमसे कह रहा हूँ मैं हे पापी मदन
पाप अच्छे कर्मों से तुमको डिगाया करेंगें
दुष्कर्मों के कारण हे पापी मदन
हम तुम जैसों को फिर से मिटाया करेंगें
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 6 अगस्त 2013
गुनगुनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 22 जुलाई 2013
शिकबा
नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँ
बिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँ
मैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबा
कि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँ
बहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजा
मुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँ
बसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बत
उसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँ
मेरा नाम अब क्यों तेरे लब पर भी आये
अब मैं अपना नहीं दूसरा हो गया हूँ
मदन सुनाऊँ किसे अब किस्सा ए गम
मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ .
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
रविवार, 21 जुलाई 2013
बुधवार, 17 जुलाई 2013
पेट की भूख
पेट की भूख की चाहत
मिटाने की खातिर
छपरा के सरकारी स्कूल में
एक दो नहीं बल्कि बीस से ज्यादा बच्चों
को अपनी जिंदगी कुर्बान करनी पड़ी
निवाले हलक से नीचे उतरे नहीं
कि दम लबों पर आ गया
बच्चों के अभिभावकों की पीड़ा
कातर आंखों से आंसुओं की धार बनकर बही
रुंधे गले में अटके लफ्ज
बेटों को खो चुके पिता का कलेजा जार-जार हुआ
इकलौती पुत्री के शव के सामने
विलाप करते पिता को देखकर
दूसरे लोग भी बदहवास हो गए
परिजनों के विलाप से अस्पताल के कोने-कोने में कयामत की थरथरी गूंज गयी
जहरीला मिड डे मिल खाने से
बच्चों की मौत का आंकड़ा 20 के पार हो गया
कुछ बीमार बच्चों का इलाज अभी भी जारीहै
अब भी कुछ बच्चों की हालत काफी नाजुक लगती है
अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते बच्चें
जायज है
नाराज लोगों का गुस्सा सरकार पर
और जायज है
सरकार के खिलाफ गुस्साए लोगों का सड़क पर प्रदर्शन
किन्तु
लोगों की जगह जगह तोड़फोड़ , आगजनी
गुस्साए लोगों का पुलिस वैन को आग के हवाले करना
सही नहीं ठहराया जा सकता
और हादसे के बाद सियासत जारी है
इस्तीफा और नारेबाजी का शोर सुनाई दे रहा है
सियासी पार्टियां पीड़ित परिवारों का दर्द
बांटने की बजाय राजनीतिमें मशगूल दिखती हैं
किसी पार्टी का छपरा बंद का ऐलान
तो किसी पार्टी ने किया बिहार बंद का आवाहन कर दिया
एक बार फिर से मुख्यमंत्री का घटना पर अफ़सोस
एक बार फिर कमिश्नर और पुलिस से जांच कराने के आदेश
एक बार फिर
मृतक बच्चों के परिवार को मुआवजे का ऐलान
कौन जनता था कि
सरकारी विद्यालय में पढ़ाने का यह हश्र होगा
पेट की भूख की चाहत
इस जिंदगी को भी लील लेगी .
सबाल ये है कि
इनका कसूरबार कौन है
बच्चें
उनके अभिभाबक
स्कूल प्रशाशन
लाचार ब्यबस्था
या सब कुछ चलता है कि सोच बाली
हम सब की अपनी आदतें .
ये कोई पहली बार नहीं है
इससे पहले भी देश में कई बार
मिड डे मील खाने से मासूमों की जान जा चुकी है
16 जुलाई 2013, छपरा (बिहार)
छपरा जिले के धर्मसाती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल में जहरीला खाना खाने से 20 बच्चों की मौत।
22 जनवरी 2011, नासिक (महाराष्ट्र)
यहां के नगर निगम के स्कूल में जहरीला भोजन खाने से 61 बच्चे बीमार पड़े।
22 नवंबर 2009
दिल्ली के त्रिलोकपुरी स्थित शारदा जैन राजकीय सर्वोदय बालिका विद्यालय में मिड-डे मील खाने 120 छात्राएं बीमार।
24 अगस्त 2009 सिवनी (मध्य प्रदेश)
सरकारी स्कूल में मिड-डे मील के तहत पोहा खाने से 5 छात्र बीमार, पोहा में मरी हुई छिपकली मिली।
12 सितंबर, 2008 नरेंगा (झारखंड)
मिडल स्कूल में मिड-डे मील खाने से 60 छात्र बीमार।
मदन मोहन सक्सेना .
सोमवार, 15 जुलाई 2013
गुरुवार, 11 जुलाई 2013
तत्सम पत्रिका में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ
तत्सम पत्रिका में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ .
एक :
संबिधान है
न्यायालय है
मानब अधिकार आयोग है
लोकतांत्रिक सरकार है
साथ ही
आधी से अधिक जनता
अशिक्षित ,निर्धन और लाचार है .
दो:
कृषि प्रधान देश है
भारत भी नाम है
भूमि है ,कृषि है, कृषक हैं
अनाज के गोदाम हैं
साथ ही
भुखमरी, कुपोषण में भी बदनाम है .
तीन:
खेल है
खेल संगठन हैं
खेल मंत्री है
खेल पुरस्कार हैं
साथ ही
खेलों के महाकुम्भ में
पदकों की लालसा में
सौ करोड़ का भारत भी देश है .
मदन मोहन सक्सेना .
रविवार, 7 जुलाई 2013
धमाका
एक और आतंकी धमाका
जगह बदली
किन्तु
तरीका नहीं बदला
बदला लेने का
एक बार फिर धमाका
मीडिया में फिर से शोर
नेताओं को घटना स्थल पहुचनें की बेकरारी
सुरक्षा एजेंसियों की एक
और जांच पड़ताल
राजनेताओं में एक और हड़कंप,
आम लोगों को अपने बजूद की चिंता
सुरक्षा एजेंसियों को अपने साख बचाने की चिंता
जगह जगह छापे
और फिर
यदि कोई सूत्र मिला भी
और आंतकी हत्थे लगा भी तो
फिर से बही क़ानूनी पेचीदगियाँ
फिर से
कोर्ट दर कोर्ट का सफ़र
और यदि सजा हो भी गयी
फिर से रहम की गुजारिश
फिर से दलगत और प्रान्त की राजनीति
और
फिर से
बही पुनराब्रती
सच में कितना अजीब लगता है
जब आंतकी
और मानब अधिकारबादी
मौत की सजा माफ़ करने की बात करतें है
उनके लिए (आंतकी )
जिसने मानब को कभी मानब समझा ही नहीं .
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 2 जुलाई 2013
शून्यता
जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है
कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है
दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है
मदन मोहन सक्सेना
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