बुधवार, 14 मार्च 2012

ग़ज़ल




जब अपने चेहरे से नकाब हम हटाने लगतें हैं 
अपने चेहरे को देखकर डर जाने लगते हैं

बह हर बात को मेरी दबाने लगते हैं
जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं

जिस गलती पर हमको बह समझाने लगते है.
बही गलती को फिर बह दोहराने लगते हैं

आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने लगतें हैं
शायद दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं

दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने  लगतें हैं
मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं 

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

4 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगतें हैं मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं

    bahut sundar madan bhai

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  2. जिस गलती पर हमको बह समझाने लगते है.
    बही गलती को फिर बह दोहराने लगते हैं
    ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई

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  3. जिस गलती पर हमको बह समझाने लगते है.
    बही गलती को फिर बह दोहराने लगते हैं

    वाह बहुत खूबसूरत अहसास

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  4. आज दर्द खिंच कर मेरे पास आने लगतें हैं
    शायद दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगतें हैं

    so nice.

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