रविवार, 13 जनवरी 2013

तन्हाई (ग़ज़ल)





















हर लम्हा तन्हाई का एहसास मुझकों होता है
जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है

क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत खून की दिखती
औरों का लहू बहता ,तो सबके लिए पानी है ..

खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें है
हर गल्तीं की कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है

वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार पानी है

सल्तनत ख्बाबो की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है तो क्या ,आखिर कल तो जानी है..

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति,,,

    recent post: मातृभूमि,मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  2. वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा है नहीं
    किसको जीत मिल जाये, किसको हार पानी है
    बहुत सही कहा आपने ... बेहतरीन गज़ल

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  3. अपनी गजल के माध्यम से आपने बहुत अच्छी बातें कही !!

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