शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

ग़ज़ल

हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली 
दुआओं का असर होता  दुआ से काम लेता हूँ

मुझे फुर्सत नहीं यारों कि  माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता  है  उसे मैं थाम लेता हूँ

खुदा का नाम लेने में क्यों  मुझसे  देर हो जाती 
खुदा का नाम से पहले मैं उनका नाम लेता हूँ


मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ


सब कुछ तो  बिका करता  मजबूरी के आलम में
सांसों के जनाज़े  को सुबह से शाम लेता हूँ 


सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत  का 
जितना  है जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ 
 


ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

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