सुबह हुयी और बोर हो गए
जीवन में अब सार नहीं है
रिश्तें अपना मूल्य खो रहे
अपनों में वो प्यार नहीं है
जो दादा के दादा ने देखा
अब बैसा संसार नहीं है
खुद ही झेली मुश्किल सबने
संकट में परिवार नहीं है
सब सिस्टम का रोना रोते
खुद बदलें ,तैयार नहीं है
मेहनत से किस्मत बनती हो
मदन आदमी लाचार नहीं है
मदन मोहन सक्सेना
very interesting
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब की नौवीं पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएं