बुधवार, 17 अगस्त 2016

खेल ओलंपिक और हम

 

 

   

बीसबीं सदी के पुर्बाध में
भूतकाल के शुष्क धरातल पर 
जब हमारें पुर्बजों ने 
भबिष्य की आबश्यक्तायों की   पूर्ति के लिए 
अपने देश में   आयत करके
भ्रष्टाचार का एक बीज रोपा था 
इस बिश्बास के साथ कि
आगे आने बाले समय  में 
नयी पीढ़ियों का जीवन सुखद सरल एबम सफल होगा
किन्तु इस आशंका से
बे भयाक्रांत ब्याकुल एबम चिंतित थे
कि कहीं
धर्मनिरपेछ्ता ,सदाचार ,साम्प्रदयिक सदभाब 
कर्तब्यनिष्टा ,देशप्रेम,नामक घातक प्रहारों से
निति निर्माताओं, रहनुमाओं एबम  राजनेताओं के द्वारा
उसकी असामयिक हत्या ना कर दी जाये
किन्तु  उनकी ये आशंका
निर्मूल ,निरर्थक ,बेअसर साबित हुयी
जब बीसबीं सदी के उतरार्ध में
उनके बच्चों ने  जिसमें
चिकित्सक ,अध्यापक ,एबम राजनेता
लेखक पत्रकार और अभिनेता
बैज्ञानिक ,धर्मगुरु ,क्रेता बिक्रेता 
सभी ने  एक साथ मिलकर
अपने अथक प्रयासों से
बृक्ष   के फलने फूलने में बराबर का योगदान दिया
आज कल हम सब ने
घृणा  स्वार्थ नफ़रत हिंसा एबम दहशत का बाताबरण
तैयार कर  के 
हत्या ,राहजनी एबम लूटपाट 
अपहरण ,आतंकबाद  और  मारकाट नामक 
उत्प्रेरकों कि उपस्थिति से 
आर डी एक्स ,ऐ के सैतालिस नामक
उन्नत तकनीकी सयंत्रों के   सयोंग से
धर्म ,शिक्षा, राजनीतिएबम खेलों में
भ्रष्टाचार के पौधे को चरम सीमा तक
पुष्पित पल्लिबत होने दिया है
हमें बिश्बास है कि
ईकीसबी सदी   में भी
हमारे बच्चे पूरी कोशिश करेंगें
ताकि येबृक्ष  फलता फूलता रहे
और अगर इसी तरह से ये कोशिश जारी रही
तो बह दिन दूर नहीं 
जब गली -गली ,  शहर- शहर ,घर -घर में 
इसका युद्ध स्तर पर ब्यब सायिक उत्पादन शुरू होगा 
और उस दिन हम ,तब 
भ्रष्टाचार के फल फूल बीज  को 
पुरे संसार में निर्यात कर सकेंगें 
उस पल पूरा संसार 
भ्रष्टाचार  को पाने के लिए 
आश्रित रहेगा 
हम   पर और सिर्फ हम पर
और 
ओलम्पिक के खेलो में 
गोल्ड मैडल अपना पक्का होने बाला  है 
 



खेल ओलंपिक और हम

मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है








अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल 

ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल 

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल 

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है 
क्या खोया और क्या पाया  कह पाना बहुत मुश्किल
 


कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है


मदन मोहन सक्सेना 

सोमवार, 1 अगस्त 2016

मेरी पोस्ट , आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की जागरण जंक्शन में प्रकाशित


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , 
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 नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियाँ आकाश की


आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
आती नहीं है रास अब दोस्ती बहुत ज्यादा पास की


बँट गयी सारी जमी ,फिर बँट गया ये आसमान
आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की


हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
अब हर कोई कहने लगा है आरजू बनवास की


मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की


आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

 मेरी पोस्ट , आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की  जागरण जंक्शन में प्रकाशित 


मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

मेरी पोस्ट (सांसों के जनाजें को तो सब ने जिंदगी जाना ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित)



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , 
(सांसों के जनाजें को तो सब  ने जिंदगी जाना) जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है , बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .






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देखा जब नहीं उनको और हमने गीत ना गाया
जमाना हमसे ये बोला की फागुन क्यों नहीं आया

फागुन गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से कि हमको कुछ नहीं मालूम

पाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो

बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो

जीवित है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवित रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो

रोशन है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो

खुदा की बंदगी करके मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो

तमन्ना सबकी रहती है जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो

सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो

सांसों के जनाजें को तो सव ने जिंदगी जाना


मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 27 जुलाई 2016

देकर दुआएँ आज फिर हम पर सितम वो कर गए



हम आज तक खामोश हैं  और वो भी कुछ कहते नहीं
दर्द के नग्मों  में हक़ बस मेरा नजर आता है  
देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गए
अब क़यामत में उम्मीदों का सवेरा नजर आता है
 
क्यों रोशनी के खेल में अपना आस का पँछी  जला
हमें अँधेरे में हिफाज़त का बसेरा नजर आता है
 
 इस कदर अनजान हैं  हम आज अपने हाल से
हकीकत में भी ख्वावों का घेरा नजर आता है
 
ये दीवानगी अपनी नहीं तो और  फिर क्या है मदन
हर जगह इक शख्श का मुझे  चेहरा नजर आता है


देकर दुआएँ  आज फिर हम पर सितम वो  कर गए


मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं

 



























वह हर बात को मेरी क्यों दबाने लगते हैं
जब हक़ीकत हम उनको समझाने लगते हैं 


जिस गलती पर हमको वह समझाने लगते है
वह उस गलती को फिर क्यों दोहराने लगते हैं 


दर्द आज खिंच कर मेरे पास आने लगते हैं
शायद दर्द से अपने रिश्ते पुराने लगते हैं


क्यों मुहब्बत के गज़ब अब फ़साने लगते हैं
आज जरुरत पर रिश्तें लोग बनाने लागतें हैं


दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं
मदन दुश्मन आज सारे जाने पहचाने लगते हैं




दोस्त अपने आज सब क्यों बेगाने लगते हैं


मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 20 जुलाई 2016

(बिलकुल तुम पर)

जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की
दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के  बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया
उसके बारे में
महानगर के बारे में
और
जिंदगी के बारे में





(बिलकुल तुम पर)
 


मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है


पैसोँ की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है
उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है


रुपये पैसोँ की कीमत को वह ही जान सकता है
बचपन में गरीवी का जिसने दंश झेला है


अपने थे ,समय भी था ,समय वह और था यारों
समय पर भी नहीं अपने बस मजबूरी का रेला है 


हर इन्सां की दुनियाँ में इक जैसी कहानी है
तन्हा रहता है भीतर से बाहर रिश्तों का मेला है 


समय अच्छा बुरा होता ,नहीं हैं दोष इंसान का
बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है 


जियो ऐसे कि हर इक पल ,मानो आख़िरी पल है
आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है



(आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है)
 

मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में

एक जमीं बख्शी  थी कुदरत ने हमको यारों लेकिन
हमने सब कुछ बाँट  दिया मेरे में और तेरे में

आज नजर आती मायूसी मानबता के चहेरे पर
अपराधी को शरण  मिली है आज पुलिस के डेरे में

बीरों  की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में

मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 16 जून 2016

खुशबुओं की बस्ती




खुशबुओं  की   बस्ती में  रहता  प्यार  मेरा  है 

आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है 
उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा है
अब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है  

जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है 
प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहरा है 
प्यार तो है  सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है
रहमते खुदा की जिस पर सर उसके बंधे सेहरा है

प्यार ने तो जीबन में ,हर पल खुशियों को बिखेरा है
ना जाने ये मदन ,फिर क्यों लगे प्यार पे  पहरा है


काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 15 जून 2016

कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते है





दुनिया में जिधर देखो हजारो रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाए बो रास्ते नहीं मिलते


किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मिलते हाथ सबसे है दिल से दिल नहीं मिलते


करी थी प्यार की बाते कभी हमने भी फूलो से
शिकायत सबको उनसे है क़ी उनके लब नहीं हिलते


ज़माने की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ख्बाबो में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते


कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते है
मुश्किल अपनी ये की हकीक़त में नहीं मिलते


मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 13 जून 2016

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर

हर सुबह रंगीन अपनी शाम हर मदहोश है
वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला


चार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलत
जब मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिला


नाज अपनी जिंदगी पर ,क्यों न हो हमको भला
कई मुद्द्दतों के बाद फिर अरमानों का पत्ता हिला


इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर
रफ्ता रफ्ता ढह गया, तन्हाई का अपना किला


वक़्त भी कुछ इस तरह से आज अपने साथ है
चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला


दर्द मिलने पर शिकायत ,क्यों भला करते मदन
जब दर्द को देखा तो दिल में मुस्कराते ही मिला



मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 20 मई 2016

क्या बतायें आपको हम अपने दिल की दास्ताँ





मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है  ..

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है ...

किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम
जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ....

दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है .....

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ......




 मदन मोहन सक्सेना  

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है








 
हर  लम्हा तन्हाई का एहसास मुझको  होता  है
जबकि  दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है

क्यों अपने जिस्म में केवल ,रंगत  खून की दिखती
औरों का लहू बहता , तो सबके लिए पानी है

खुद को भूल जाने की ग़लती सबने कर दी है
हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

दौलत के नशे में जो अब दिन को रात कहतें हैं
हर गलती की  कीमत भी, यहीं उनको चुकानी है

मदन ,वक़्त की रफ़्तार का कुछ भी भरोसा  है नहीं
किसको जीत मिल जाये, किसको हार  पानी है

सल्तनत ख्वाबों की मिल जाये तो अपने लिए बेहतर है
दौलत आज है  तो क्या , आखिर कल तो जानी है

मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 30 मार्च 2016

मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (होली ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , ग़ज़ल (होली ) जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है , बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
 
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ग़ज़ल (होली )
मन से मन भी मिल जाये , तन से तन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है

मौसम आज रंगों का छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है

क्या जीजा हों कि साली हों ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में , सभी मशगूल होली है

ना शिकबा अब रहे कोई , ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, आयी आज होली है

प्रियतम क्या प्रिया क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
चलो हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .

ग़ज़ल (होली )


मदन मोहन सक्सेना
 

गुरुवार, 10 मार्च 2016

फुलेरा दूज -राधा- कृष्ण के मिलन का प्रतीक





फाल्गुन की शुक्लपक्ष द्वितीया "फुलेरा दूज "की शुभकामनायें। 
फुलेरा दूज श्री राधा- कृष्ण के मिलन का प्रतीक  है . 


फुलेरा दूज -राधा- कृष्ण के मिलन का प्रतीक



मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 8 मार्च 2016

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना )



“स्त्रियाँ ही हैं,
जो लोगों की अच्छी सेवा कर सकती हैं,
दूसरों की भरपूर मदद कर सकती हैं।
जिंदगी को अच्छी तरह प्यार कर सकती हैं
और मृत्यु को गरिमा प्रदान कर सकती हैं।“
( एनी बेसंन्ट )

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है।विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर  यह दिवस सबसे पहले यह २८ फ़रवरी १९०९ में मनाया गया। इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। १९१० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन के सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिलवाना था क्योंकि, उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।
१९१७ में रूस की महिलाओं ने, महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। ज़ार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक १९१७ की फरवरी का आखरी इतवार २३ फ़रवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन ८ मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये ८ मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला अंतरिक्ष पटल की खास पहचान हैं। प्रथम महिला रेलगाङी ड्राइवर सुरेखा यादव, जो कि भारत की ही नही वरन एशिया की भी पहली महिला ड्राइवर हैं।
देश की सुरक्षा सबसे अहम होती है, तो इस क्षेत्र में आखिर महिलाओं की भागीदारी  को कम क्यूं आंका जाए। देश की मिसाइल सुरक्षा की कड़ी में 5000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली अग्नि-5 मिसाइल की जिस महिला ने सफल परीक्षण कर पूरे विश्व मानचित्र पर भारत का नाम रौशन किया है, वह शख्सियत हैं टेसी थॉमस।  डॉ. टेसी थॉमस को कुछ लोग ‘मिसाइल वूमन’ कहते हैं, तो कई उन्हें ‘अग्नि-पुत्री’ का खिताब देते हैं। पिछले 20 सालों से टेसी थॉमस इस क्षेत्र में मजबूती से जुड़ी हुई हैं। टेसी थॉमस पहली भारतीय महिला हैं, जो देश की मिसाइल प्रोजेक्ट को संभाल रही हैं। टेसी थॉमस ने इस कामयाबी को यूं ही नहीं हासिल किया, बल्कि इसके लिए उन्होंने जीवन में कई उतार-चढ़ाव का सामना भी करना पड़ा। आमतौर पर रणनीतिक हथियारों और परमाणु क्षमता वाले मिसाइल के क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। इस धारणा को तोड़कर डॉ. टेसी थॉमस ने सच कर दिखाया कि कुछ उड़ान हौसले के पंखों से भी उड़ी जाती।
डॉ. किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं। उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दिया है। वे संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण तथा दिल्ली पुलिस स्पेशल आयुक्त (खुफिया) के पद पर कार्य कर चुकी हैं।निःस्वार्थ कर्तव्यपरायणता के लिए उन्हें शौर्य पुरस्कार मिलने के अलावा उनके अनेक कार्यों को सारी दुनिया में मान्यता मिली है, जिसके परिणामस्वरूप एशिया का नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला रमन मैगसेसे पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया. नशे की रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया ‘सर्ज साटिरोफ मेमोरियल अवार्ड’ इसका ताजा प्रमाण है।
भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी” माने जानी वाली पी॰ टी॰ उषा भारतीय खेलकूद में 1979 से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं। उन्हें “पय्योली एक्स्प्रेस” नामक उपनाम दिया गया था। 1983 में सियोल में हुए दसवें एशियाई खेलों में दौड़ कूद में, पी॰ टी॰ उषा ने 4 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीते। वे जितनी भी दौड़ों में हिस्सा लीं, सबमें नए एशियाई खेल कीर्तिमान स्थापित किए। 1985 में जकार्ता में हुई एशियाई दौड-कूद प्रतियोगिता में उन्होंने पाँच स्वर्ण पदक जीते। एक ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छः स्वर्ण जीतना भी एक कीर्तिमान है। ऊषा ने अब तक 101 अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। वे दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। 1985 में उन्हें पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
मैरी कॉम पांच बार ‍विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं। दो वर्ष के अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश के बाद उन्होंने वापसी करके लगातार चौथी बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीता। उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का संबोधन दिया। वह 2012 के लंदन ओलम्पिक मे महिला मुक्केबाजी मे भारत की तरफ से जाने वाली एकमात्र महिला थीं। मैरी कॉम ने सन् 2001 में प्रथम बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। अब तक वह छह राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है। बॉक्सिंग में देश का नाम रौशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जुलाई 29, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी  खेल रत्न पुरस्कार के लिए (मुक्केबाज विजेंदर कुमार तथा पहलवान सुशील कुमार के साथ) चुनीं गयीं।सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा जैसी कई महिलाएं खेल जगत की गौरवपूर्ण पहचान हैं। 1984- बछेन्द्री पाल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं।
महिलाओं के अधिकार के लिये लङने वाली वीर नारी नेन्सी एस्टर, ब्रिटिश संसद की पहली महिला सासंद बनी। विश्व के राजनीतिक पटल पर आज अनेक देशों के सर्वोच्च पद पर महिलाओं का वर्चस्व है। श्रीलंका की प्रधानमंत्री श्रीमावो भंडार नायके विश्व की प्रथम महिला राष्ट्रपति निर्वाचित हुई। विश्वराजनीति के पटल पर पहली महिला राष्ट्रपति का गौरव फिलीपीन्स की  मारिया कोराजोन एक्यीनो को जाता है।  रजीया सुल्तान हो या बेनीजीर भुट्टो या बेगम खालिदा जिया जैसी कई साहसी मुस्लिम महिलाओं ने भी राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। भारत जैसे शक्तिशाली देश की कमान इंदिरा गाँधी  द्वारा संचालित की जा चुकी है।  अनेक राज्यों की महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ,जयललिता  आज भी अपने कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दे रहीं हैं। अभी हाल ही में एशिया की चौथी सबसे बङी अर्थव्वस्था की नेता पार्क ग्यून हेई ने दक्षिण कोरिया की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेकर नारी वर्ग के गौरव को और आगे बढाया है।
साहित्य जगत में भी महिलाओं का अभूतपूर्व योगदान रहा है। हिंदी साहित्य में ऐसी गंभीर लेखिकाओं की कमी नही है जिन्होने अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करके विस्तृत साहित्य का सृजन किया है। महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, महाश्वेता देवी, आशापूर्णा देवी, मैत्रिय पुष्पा जैसी अनेक महिलाओं ने असमान्य परिस्थितियों में भी साहित्य जगत को उत्कृष्ट रचनाओं से शुशोभित किया है।
दृढ़ इच्छाशक्ति एवं शिक्षा ने नारी मन को उच्च आकांक्षाएँ, सपनों के सप्तरंग एवं अंतर्मन की परतों को खोलने की नई राह दी है। इंद्रा नूई, चन्द्रा कोचर, नैना लाल किदवई, किरण मजुमदार, मजुमदार शॉ, स्वाति पिरामल, चित्रा रामकृष्णा,जैसी अनेक महिलाएं आज वाणिज्य जगत में प्रतिष्ठित कंपनियो की सीईओ बनकर बहुत ही सफलता पूर्वक अपने कार्य को अंजाम दे रही हैं.
इन सबके बाबजूद लाख टके  का सबल फिर से मन में गूंजता है कि
फिर क्यों
आधी आबादी अभी भी अपने अधिकारों से बंचित है
महिलाओँ के बिरुद्ध अपराध कब कम होंगें
महिला पुरुष का लिंग अनुपात कब बराबरी पर आएगा
अपने घर की महिलाओँ और बाहर की महिलाओँ के प्रति सोच कब एक सी होगी
ये प्रश्न कब तक अनुतर्रित रहेंगें
या फिर हम सब (महिला, पुरुष , राजनेता , समाजसेबी , ..   अन्य )
जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालकर 
८ मार्च को ऐसे ही औपचारिकता पूरी करते रहेंगें।

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस ( उपयोगिता , सन्दर्भ और प्रासंगिकता , एक बिबेचना )

मदन मोहन सक्सेना



सोमवार, 7 मार्च 2016

शिब और शिबरात्रि (धार्मिक मान्यताएँ )



आप सब को शिबरात्रि की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ। भगवान शिब हम  सबकी रक्षा करें।


शिब और शिबरात्रि (धार्मिक मान्यताएँ )
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रात्रि यानी अंधकार का वक्त बुरी शक्तियों या भावनाओं के हावी होने का समय होता है, जो प्रतीक रूप में भूत, पिशाच, डाकिनी या शाकीनी के रूप में भी प्रसिद्ध है. इन बुरी ताकतों पर शिव का नियंत्रण माना गया है, जिससे वह भूतभावन महाकाल भी कहें जाते हैं.वास्तव में, प्रतीकात्मक तौर पर संकेत है कि बुराइयों, दोष या विकारों के कारण जीवन में दु:ख और संताप रूपी अंधकार से मुक्ति पानी है तो शिव भक्ति के रूप में अच्छाइयों के रक्षा कवच को पहनकर जीवन को सुखी और सफल बना सकते हैं. इसके लिए शास्त्रों के अनुसार शाम के वक्त विशेष तौर पर प्रदोष तिथि या प्रतिदिन शिव का ध्यान घर-परिवार की मुसीबतों से रक्षा करने वाला माना गया है.महाशिवरात्रि पवित्र पर्व है. इस दिन शिव-पार्वती का पूजन कर विशेष फल प्राप्त किया जा सकता है. इस दिन सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. शव से शिव होने की यात्रा ही जड़ से चैतन्य होने की यात्रा है. फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी को मनाया जाने वाला यह पर्व ‘शिवरात्रि’ के नाम से जाना जाता है. इस दिन भोलेनाथ का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था.इस‍ दिन शिव मंत्र जप-हवन-अभिषेक हवन का बड़ा महत्व है. यदि मंदिर में पूजन इत्यादि करें तो ठीक अन्यथा घर पर भी पूजन कार्य क‍िया जा सकता है.पूजा के लिए आवश्यक है शिवलिंग. महाशिवरात्रि पर शिवलिंग व मंदिर में शिव को गाय के कच्चे दूध से स्नान कराने पर विद्या प्राप्त होती है. शिव को गन्ने के रस से स्नान कराने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है. भोलेनाथ को शुद्घ जल से स्नान कराने पर सभी इच्छाएं पूरी होती है.
भगवान शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, दूध, फूल औल फल चढ़ाना चाहिए.योगिक संस्कृति में शिव को भगवान नहीं, बल्कि आदियोगी यानी पहले योगी अर्थात योग के जनक के रूप में जाना जाता है. शिव ने ही योग का बीज मनुष्य के दिमाग में डाला.शिव ने अपनी पहली शिक्षा अपनी पत्नी पार्वती को दी थी. दूसरी शिक्षा जो योग की थी, उन्होंने केदारनाथ में कांति सरोवर के तट पर अपने पहले सात शिष्यों को दी थी. यहीं दुनिया का पहला योग कार्यक्रम हुआ.बहुत सालों बाद जब योगिक विज्ञान के प्रसार का काम पूरा हुआ तो सात पूर्ण ज्ञानी व्यक्ति तैयार हुए- सात प्रख्यात साधु, जिन्हें भारतीय संस्कृति में सप्तऋषि के नाम से जाना और पूजा जाता है. शिव ने इन सातों ऋषियों को योग के अलग-अलग आयाम बताए और ये सभी आयाम योग के सात मूल स्वरूप हो गए. आज भी योग के ये सात विशिष्ट स्वरूप मौजूद हैं.इन सप्त ऋषियों को विश्व की अलग-अलग दिशाओं में भेजा गया, जिससे वे योग के अपने ज्ञान लोगों तक पहुँचा सकें जिससे इंसान अपनी सीमाओं और मजबूरियों से बाहर निकलकर अपना विकास कर सके.एक को मध्य एशिया, एक को मध्य पूर्व एशिया व उत्तरी अफ्रीका, एक को दक्षिण अमेरिका, एक को हिमालय के निचले क्षेत्र में, एक ऋषि को पूर्वी एशिया, एक को दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप में भेजा गया और एक आदियोगी के साथ वहीं रह गया. हांलाकि समय ने बहुत कुछ मिटा दिया, लेकिन इसके बावजूद अगर उन इलाकों की संस्कृतियों पर गौर किया जाए तो आज भी इन ऋषियों के योगदान के चिन्ह वहां दिखाई दे जाएंगे. उसने भले ही अलग-अलग रूप-रंग ले लिए हो या फिर अपने रूप में लाखों तरीकों से बदलाव कर लिया हो, लेकिन उन मूल सूत्रों को अब भी देखा जा सकता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर ‍इच्छा पूर्ति के लिए हैं अलग शिवलिंग
पार्थिव शिवलिंग- हर कार्य सिद्धि के लिए.
गुड़ के शिवलिंग- प्रेम पाने के लिए.
भस्म से बने शिवलिंग- सर्वसुख की प्राप्ति के लिए.
जौ या चावल या आटे के शिवलिंग- दाम्पत्य सुख, संतान प्राप्ति के लिए.
दही से बने शिवलिंग-‍ ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए.
पीतल, कांसी के शिवलिंग- मोक्ष प्राप्ति के लिए.
सीसा इत्यादि के शिवलिंग- शत्रु संहार के लिए.
पारे के शिवलिंग- अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के लिए.



मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 2 मार्च 2016

मेरी पोस्ट , गुनगुनाना चाहता हूँ जागरण जंक्शन में


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट ,
गुनगुनाना चाहता हूँ जागरण जंक्शन मेंलगातार पाँचबे  हफ्ते प्रकाशित हुयी है ,इससे पहले "जीवन  के रंग" , "बिरह के अहसास " और "चंद शेर आपके लिए" और कल की ही बात है को प्रकाशित किया गया था . बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .


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गुनगुनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरा परिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती

ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना


मंगलवार, 1 मार्च 2016

मुक्तक

मुक्तक

तुम्हारा साथ ही मुझको करता मजबूर जीने को
तुम्हारे बिन अधूरे हम बिबश हैं  जहर पीने को
तुम्हारा साथ पाकर के दिल ने ये ही  पाया है
अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है


मदन मोहन सक्सेना

मेरी पोस्ट , "कल की ही बात है" जागरण जंक्शन में लगातार चौथे हफ्ते प्रकाशित




प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , कल की ही बात है जागरण जंक्शन मेंलगातार चौथे   हफ्ते प्रकाशित हुयी है ,इससे पहले "जीवन  के रंग" , "बिरह के अहसास " और "चंद शेर आपके लिए" को प्रकाशित किया गया था . बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
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जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की
दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया
उसके बारे में
महानगर के बारे में
और
जिंदगी के बारे में

मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

मेरी पोस्ट , "चंद शेर आपके लिए " जागरण जंक्शन में लगातार तीसरे हफ्ते प्रकाशित



मेरी पोस्ट , "चंद शेर आपके लिए  " जागरण जंक्शन में लगातार तीसरे हफ्ते प्रकाशित

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , चंद शेर आपके लिए जागरण जंक्शन मेंलगातार तीसरे  हफ्ते प्रकाशित हुयी है ,इससे पहले "जीवन  के रंग" और "बिरह के अहसास " को प्रकाशित किया गया था . बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
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  चंद शेर आपके लिए
एक।
दर्द मुझसे मिलकर अब मुस्कराता है
जब दर्द को दबा जानकार पिया मैंने

दो.
वक्त की मार सबको सिखाती सबक़ है
ज़िन्दगी चंद सांसों की लगती जुआँ है

तीन.
समय के साथ बहने का मजा कुछ और है यारों
रिश्तें भी बदल जाते समय जब भी बदलता है

चार.
जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

मेरी ग़ज़ल नबी मुंबई से प्रकाशित जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ५ ,फरबरी २०१६ में



प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल नबी मुंबई से प्रकाशित जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ५    ,
फरबरी  २०१६  में प्रकाशित हुयी है . संपादक श्री विजय कुमार सिंघल जी और सह संपादक विभा रानी श्रीबास्तवऔर अरबिंद कुमार साहू जी , आपका
बहुत बहुत आभार मुझे स्थान  देने के लिए। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .



 ग़ज़ल (इशारे)

किसी   के  दिल  में चुपके  से  रह  लेना  तो  जायज  है
मगर  आने  से  पहले  कुछ  इशारे  भी  किये  होते

नज़रों  से मिली नजरें  तो नज़रों में बसी सूरत
काश हमको उस खुदाई के नजारें  भी दिए होते

अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
चलते  दो कदम संग में , सहारे भी दिए होते

जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता
गर अपनी जिंदगी के गम , सारे दे दिए होते

दिल को भी जला लेते ख्बाबों को जलाते  हम
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना



मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ५  ,फ़रबरी २०१६ में

बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

मेरी पोस्ट बिरह के अहसास जागरण जंक्शन में प्रकाशित


प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट 
बिरह के अहसास जागरण जंक्शन में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .

 
Dear User,

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 बिरह के अहसास
कहतें हैं कि सच्चा प्यार बहुत मुश्किल से मिलता है और प्यार से प्यारे दिलदार का साथ बना रहे ये और भी मुश्किल होता है . प्यार की असली पहचान तो बिरह में ही होती है बरना संग साथ में समय कब गुजर जाता है मालूम ही नहीं चलता है . समय का फेर बोले या फिर किस्मत का फ़साना या कुछ और
बिरह के कुछ अहसासों को ब्यक्त करती प्रेम कवितायेँ
.
(एक )
जुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती है
मेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है
कहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा है
भरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा है
मुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती है
नहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है..
कदम बहकें हैं अब मेरे ,हुआ चलना भी मुश्किल है
ये मौसम है बहारों का , रोता आज ये दिल है
ना कोई अब खबर तेरी ,ना मिलती आज पाती है
हालत देखकर मेरी ये दुनिया मुस्कराती है
बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है
उधर तन्हा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है
पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है
( दो )
देखा जब नहीं उनको और हमने गीत नहीं गाया
जमाना हमसे ये बोला की बसंत माह क्यों नहीं आया
बसंत माह गुम हुआ कैसे ,क्या तुमको कुछ चला मालूम
कहा हमने ज़माने से की हमको कुछ नहीं मालूम
पाकर के जिसे दिल में ,हुए हम खुद से बेगाने
उनका पास न आना ,ये हमसे तुम जरा पुछो
बसेरा जिनकी सूरत का हमेशा आँख में रहता
उनका न नजर आना, ये हमसे तुम जरा पूछो
जीवितं है तो जीने का मजा सब लोग ले सकते
जीवितं रहके, मरने का मजा हमसे जरा पूछो
रोशन है जहाँ सारा मुहब्बत की बदौलत ही
अँधेरा दिन में दिख जाना ,ये हमसे तुम जरा पूछो
खुदा की बंदगी करके अपनी मन्नत पूरी सब करते
इबादत में सजा पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो
तमन्ना सबकी रहती है, की जन्नत उनको मिल जाए
जन्नत रस ना आना ये हमसे तुम जरा पूछो
सांसों के जनाजें को, तो सबने जिंदगी जाना
दो पल की जिंदगी पाना, ये हमसे तुम जरा पूछो


मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

वैलेनटाइन दिन

 
वैलेनटाइन दिन पर मुहब्बत (प्यार ,प्रेम स्नेह ,प्रीत ,लगाब )जो भी नाम दे दें ,को समर्पित एक कबिता आप सब के लिए प्रस्तुत है।

प्यार रामा में है प्यारा अल्लाह लगे ,प्यार के सूर तुलसी ने किस्से लिखे
प्यार बिन जीना दुनिया में बेकार है ,प्यार बिन सूना सारा ये संसार है

प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं  सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है

प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है

प्यार से अपना जीवन सभारों जरा ,प्यार से रहकर हर पल गुजारो जरा
प्यार से मंजिल पाना है मुश्किल नहीं , इन बातों से बिलकुल न इंकार है

प्यार के किस्से हमको निराले लगे ,बोलने के समय मुहँ में ताले लगे
हाल दिल का बताने जब हम मिले ,उस समय को हुयें हम लाचार हैं

प्यार से प्यारे मेरे जो दिलदार है ,जिनके दम से हँसीं मेरा संसार है
उनकी नजरो से नजरें जब जब मिलीं,उस पल को हुए उनके दीदार हैं

प्यार जीवन में खुशियाँ लुटाता रहा ,भेद आपस के हर पल मिटाता रहा
प्यार जीवन की सुन्दर कहानी सी है ,उस कहानी का मदन एक किरदार है

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

बहुत अच्छा लगता है ये जानकर कि तुम अच्छी हो। 
और क्या वस अपना ख्याल रखना ,
शुभ प्रभात

बुधवार, 27 जनवरी 2016

मेरी पोस्ट (तुम्हारी याद आती है )को जागरण जंक्शन पर शामिल

प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है की मेरी पोस्ट  (तुम्हारी याद आती है )को जागरण जंक्शन पर शामिल किया गया है।  आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएं। 




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तुम्हारी याद आती है
जुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती है
मेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है
कहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा है
भरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा है
मुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती है
नहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है..
कदम बहकें हैं अब मेरे ,हुआ चलना भी मुश्किल है
ये मौसम है बहारों का , रोता आज ये दिल है
ना कोई अब खबर तेरी ,ना मिलती आज पाती है
हालत देखकर मेरी ये दुनिया मुस्कराती है
बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है
उधर तन्हा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है
पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है
मदन मोहन सक्सेना
 

रविवार, 24 जनवरी 2016

ये कैसा तंत्र






गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभ कामनाएँ

ये कैसा तंत्र 


 कैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहें यारों
गर कोई देखना चाहें बतन मेरे वह  आ जाये

तिजोरी में भरा धन है मुरझाया सा बचपन है
ग़रीबी भुखमरी में क्यों जीबन बीतता जाये

ना करने का ही ज़ज्बा है ना बातों में ही दम दीखता
हर एक दल में सत्ता की जुगलबंदी नजर आये

कभी बाटाँ धर्म ने है ,कभी जाति में खोते हम
हमारे रह्नुमाओं का, असर हम  पर नजर आये

ना खाने को ना पीने को ,ना दो पल चैन जीने को
ये कैसा तंत्र है यारों ,   ये जल्दी से गुजर जाये

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

जीने का हौसला





 
सिर्फ एक एहसास कि आपको कोई दिल से निस्वार्थ चाहता है , तंग दिल दुनियां में  दुनियाभर की दुशबारियों के बीच जीने का हौसला दे जाता है। 


मदन मोहन सक्सेना