मंगलवार, 1 मार्च 2016

मेरी पोस्ट , "कल की ही बात है" जागरण जंक्शन में लगातार चौथे हफ्ते प्रकाशित




प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट , कल की ही बात है जागरण जंक्शन मेंलगातार चौथे   हफ्ते प्रकाशित हुयी है ,इससे पहले "जीवन  के रंग" , "बिरह के अहसास " और "चंद शेर आपके लिए" को प्रकाशित किया गया था . बहुत बहुत आभार जागरण जंक्शन टीम। आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
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Your कल की ही बात है has been featured on Jagran Junction



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 http://madansbarc.jagranjunction.com/2016/02/26/%E0%A4%95%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4-%E0%A4%B9%E0%A5%88/


जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की
दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया
उसके बारे में
महानगर के बारे में
और
जिंदगी के बारे में

मदन मोहन सक्सेना

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