मंगलवार, 1 मार्च 2016

मुक्तक

मुक्तक

तुम्हारा साथ ही मुझको करता मजबूर जीने को
तुम्हारे बिन अधूरे हम बिबश हैं  जहर पीने को
तुम्हारा साथ पाकर के दिल ने ये ही  पाया है
अमाबस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है


मदन मोहन सक्सेना

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