गुरुवार, 4 अगस्त 2016

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है








अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर
बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल 

ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है
समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम
जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल 

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता
अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल 

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है 
क्या खोया और क्या पाया  कह पाना बहुत मुश्किल
 


कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है


मदन मोहन सक्सेना 

2 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 05/08/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    जवाब देंहटाएं