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तुम्हारी याद आती है
जुदा हो करके के तुमसे अब ,तुम्हारी याद आती है
मेरे दिलबर तेरी सूरत ही मुझको रास आती है
कहूं कैसे मैं ये तुमसे बहुत मुश्किल गुजारा है
भरी दुनियां में बिन तेरे नहीं कोई सहारा है
मुक्कद्दर आज रूठा है और किस्मत आजमाती है
नहीं अब चैन दिल को है न मुझको नींद आती है..
कदम बहकें हैं अब मेरे ,हुआ चलना भी मुश्किल है
ये मौसम है बहारों का , रोता आज ये दिल है
ना कोई अब खबर तेरी ,ना मिलती आज पाती है
हालत देखकर मेरी ये दुनिया मुस्कराती है
बहुत मुश्किल है ये कहना किसने खेल खेला है
उधर तन्हा अकेली तुम, इधर ये दिल अकेला है
पाकर के तन्हा मुझको उदासी पास आती है
सुहानी रात मुझको अब नागिन सी डराती है
मदन मोहन सक्सेना
जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी। दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी। किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी। उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी। किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी। प्रस्तुति: मदन मोहन सक्सेना
जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा शहर में ठिकाना खोजा पता नहीं आजकल हर कोई मुझसे आँख मिचौली का खेल क्यों खेला करता है जिसकी जब जरुरत होती है गायब मिलता है और जब जिसे नहीं होना चाहियें जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है कल की ही बात है मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था जबसे इधर क्या आया या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की दीबारों के बीच आकर फँस गया पूछा क्या बात है आजकल आती नहीं हो इधर। पहले तो आंगन भर-भर आती थी। दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा। पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी। अक्सर सुबह देखता हूं पड़ी रहती हो आजकल उनके छज्जों पर हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना लेकिन याद रखो ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग बड़ी सादगी से लूटते हैं फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत। महीनों के बाद मिली हो इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली उसने कुछ बोला नहीं बस हवा में खुशबु घोल कर खिड़की के पीछे चली गई सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ धत्त तेरी की फिर गायब ये महानगर की धूप भी न बिलकुल तुम पर गई है हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया उसके बारे में महानगर के बारे में और जिंदगी के बारे में
वक़्त की रफ़्तार ने क्या गुल खिलाया आजकल दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं
इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं
डर किसे कहतें हैं , हमको उस समय मालूम चला जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं
अंदाज बदला दोस्ती का कुछ इस तरह से आजकल खामोश रहकर, आज वह हमसे मिला करते हैं
मदन मोहन सक्सेना
जिस सस्ती लोकप्रियता को भुनाने के लिए और सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए आमिर खान ने जैसा बयां दिया है उसकी जितनी निंदा की जाये कम हैं , अब आगे से मैं आमिर खान की फिल्मो से अपने को दूर रखूँगा और आप। मदन मोहन सक्सेना
भगवान
विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह
(Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की
एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at:
http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/tulsi-vivah#sthash.GwGREFdB.dpuf
गवान
विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह
(Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की
एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at:
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भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल तुलसी विवाह 23 नवंबर 2015 को है।देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस मांगलिक प्रसंग के शुभ अवसर पर भक्तगण घर की साफ -सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं। शाम के समय तुलसी चौरा यानि तुलसी के पौधे के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरूप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं।
एक लड़की जिसका नाम वृंदा था ,राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी,बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी। जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुए थे .वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी हमेशा अपने पति की सेवा किया करती। कुछ समय बाद सुर और असुरों में भयंकर युद्ध हुआ। जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा। स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेंगे,में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी।जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी। उनके व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर को ना जीत सके. सारे देवता जब हारने लगे तो वे सभी भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे , उन्होने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छूए। इधर जैसे ही इनका संकल्प टूटा,उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार गिराया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में आकर गिरा .जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? कौन हो आप जिसका स्पर्श मैने अनजाने किया है ,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई,। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, भगवान तुंरत पत्थर के हो गये, सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगी. तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी.। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा , आज से इनका नाम तुलसी होगा, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप मे भी रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी पत्र के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी पत्र के भोग स्वीकार नहीं करुंगा।तभी से आज के दिन तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगेऔर तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है
एक कथा (देवउठनी एकादशी /देवप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह ) मदन मोहन सक्सेना
कभी कभी लगता है की हम तुम एक ही थैली के चट्टे बट्टे हों , मैं तुझमें अपने को खोजता रहता हूँ और एक तू है जो मुझमें अपने को तलाशती रहती है। मदन मोहन सक्सेना