मंगलवार, 24 नवंबर 2015

इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा

इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा





वक़्त की रफ़्तार ने क्या गुल खिलाया आजकल
दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं


इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं 


डर किसे कहतें हैं , हमको उस समय मालूम चला
जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं


अंदाज बदला दोस्ती का कुछ इस तरह से आजकल
खामोश रहकर, आज वह हमसे मिला करते हैं



मदन मोहन सक्सेना

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