दीवाली और मैं
दीवाली का पर्ब है फिर अँधेरे में क्यों रहूँ
आज मैनें फिर तेरी याद के दीपक जला लिए …
मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी वो भी अपने हैं
हकीकत में वे बदलेंगें , दिलों में जो भी सपने हैं
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी वो भी अपने हैं
हकीकत में वे बदलेंगें , दिलों में जो भी सपने हैं
मदन मोहन सक्सेना
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