कविता ,आलेख और मैं
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बुधवार, 23 मई 2012
मुक्तक
मयखाने की चौखट को कभी मदिर न समझना तुम
मयखाने जाकर पीने की मेरी आदत नहीं थी ...
चाहत से जो देखा मेरी ओर उन्होंने
आँखों में कुछ छलकी मैंने थोड़ी पी थी...
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
1 टिप्पणी:
salma
7 जून 2012 को 2:26 am बजे
Nice Lines.
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