बुधवार, 23 मई 2012

ग़ज़ल




बोलेंगे  जो  भी  हमसे  बो ,हम ऐतवार कर  लेगें      
जो कुछ  भी उनको प्यारा  है ,हम उनसे प्यार कर  लेगें 

बो  मेरे   पास  आयेंगे   ये  सुनकर  के   ही  सपनो  में 
 क़यामत  से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें 

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है 
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें 

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार बो हमको 
गर  अपना प्यार सच्चा है तो मंजिल पर कर लेगें



ग़ज़ल
मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन भर की सब खुशियाँ ,उनके बिन अधूरी है
    अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

    वहा वहा बहुत सुंदर सही फरमाया आप ने

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  2. वाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको.

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