शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

प्यार की ख्वाहिश





















प्यार की ख्वाहिश



गर कोई हमसे कहे की रूप कैसा है खुदा का
हम यकीकन ये कहेंगे जिस तरह से यार है


संग गुजरे कुछ लम्हों की हो नहीं सकती है कीमत
गर तनहा होकर जीए तो बर्ष सो बेकार है


सोचते है जब कभी हम क्या मिला क्या खो गया
दिल जिगर साँसें हैं  अपनी पर न कुछ अधिकार है

याद कर सूरत सलोनी खुश हुआ करते हैं  हम
प्यार से बह  दर्द दे दें  तो हमें  स्वीकार है

जिस जगह पर पग धरा है उस जगह खुशबु मिली है
अब नाम लेने से ही अपनी जिंदगी गुलजार है

ये ख्वाहिश अपने दिल की है की कुछ नहीं अपना रहे
क्या मदन इसको ही कहते लोग अक्सर प्यार है





मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. जिस जगह पर पग धरा है उस जगह खुशबु मिली है
    अब नाम लेने से ही अपनी जिंदगी गुलजार है ,,,

    बहुत सुंदर गजल !

    RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

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  2. ये ख्वाहिश अपने दिल की है की कुछ नहीं अपना रहे
    क्या मदन इसको ही कहते लोग अक्सर प्यार है
    बहुत अच्छा कहा

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