सोमवार, 11 नवंबर 2013

ना जाने ऐसा क्यों होता






निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है
ना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी है

ये सांसे ,जिंदगी और दिल सब कुछ   तो पराया है
क्यों आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है 

मदन मोहन सक्सेना 

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