गर्मी के दिन
दोपहर का समय
आग उगलता सूरज
पसीने से नहाते श्रमिक लोग
शीतलता का आनंद उठाते
अपने कार्यालय में सरकारी महकमे के उँचे लोग
बीरान रास्तों पर
रोजी रोटी तलाशते
ऑटो रिक्शा बाले
रात्रि में कार्य करने के लिए
ऊर्जा जुटाते
छाया में सोते कुत्ते
ठीक सिस्टम की तरह
अपने को सही करने की ऊहापोह
में ब्यस्त।
मदन मोहन सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-03-2015) को "माँ पूर्णागिरि का दरबार सजने लगा है" (चर्चा अंक - 1917) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'