आज बिश्व मजदूर दिवस है आज के दिन श्रमिक बर्ग ही जो हालत है उसे देखकर मजदूर दिबस मनाने की कल्पना ही बेमानी से लगती है। पूंजी पति और ताकतबर लोगों के द्वारा किसान ,मजदूर और गरीब लोगों के शोषण की ख़बरें आये दिन सुर्खियां बनती रहती है।
श्रम ही पूजा है, को मानने बाले मजदुर भाईओं को समर्पित एक रचना।
श्रम ही पूजा है, को मानने बाले मजदुर भाईओं को समर्पित एक रचना।
ख्बाब था मेहनत के बल पर , हम बदल डालेंगे
किस्मत
ख्बाब केवल ख्बाब बनकर, अब हमारे रह गए हैं
कामचोरी, धूर्तता, चमचागिरी
का अब चलन है
बेअरथ से लगने लगे है ,युग पुरुष जो कह गए
हैं
दूसरों का किस तरह नुकसान हो सब सोचते है
त्याग ,करुना, प्रेम
,क्यों इस जहाँ से बह गए हैं
अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का
पौरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए
हैं
नाज हमको था कभी पर, आज सर झुकता शर्म
से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सारे
ढह गए हैं
मदन मोहन सक्सेना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-05-2015) को "सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं" (चर्चा अंक-1963) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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सुन्दर प्रस्तुति
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