शुक्रवार, 12 मई 2017

मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ .







नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँ
बिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँ

मैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबा
कि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँ

बहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजा
मुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँ

बसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बत
उसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँ

मेरा नाम अब क्यों तेरे लब पर भी आये
अब मैं अपना नहीं दूसरा हो गया हूँ

मदन सुनाऊँ किसे अब किस्सा ए गम
मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ .


 मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ .

मदन मोहन सक्सेना

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