मंगलवार, 19 जनवरी 2016
मंगलवार, 22 दिसंबर 2015
खेल जिंदगी।
जिनके साथ रहना हैं नहीं मिलते क्यों दिल उनसे
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।
दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।
किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।
उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।
किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
खट्टी मीठी यादों को संजोने का है खेल जिंदगी।
दिल के पास हैं लेकिन निगाहों से बह ओझल हैं
क्यों असुओं से भिगोने का है खेल जिंदगी।
किसी के खो गए अपने किसी ने पा लिए सपनें
क्या पाने और खोने का है खेल जिंदगी।
उम्र बीती और ढोया है सांसों के जनाजे को
जीवन सफर में हँसने रोने का खेल जिंदगी।
किसी को मिल गयी दौलत कोई तो पा गया शोहरत
मदन कहता कि काटने और बोने का ये खेल जिंदगी।
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
गुरुवार, 17 दिसंबर 2015
उसने कुछ बोला नहीं
उसने कुछ बोला नहीं
जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
गायब मिलता है
और जब जिसे नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूं
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना था
जबसे इधर क्या आया
या कहिये कि मुंबई जैसे महानगर की
दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो आंगन भर-भर आती थी।
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा।
पड़ोसियों ने अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी।
अक्सर सुबह देखता हूं
पड़ी रहती हो
आजकल उनके छज्जों पर
हमारी छत तो अब तुम्हें सुहाती ही नहीं ना
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो इज्जत हो या दौलत।
महीनों के बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेल करती है
और मैं न जाने क्या क्या सोचने लग गया
उसके बारे में
महानगर के बारे में
और
जिंदगी के बारे में
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 24 नवंबर 2015
इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
वक़्त की रफ़्तार ने क्या गुल खिलाया आजकल
दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं
इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं
वक़्त की रफ़्तार ने क्या गुल खिलाया आजकल
दर्द हमसे हमसफ़र बनकर के मिला करते हैं
इश्क का तो दर्द से रिश्ता ही कुछ ऐसा रहा
फूल भी खारों के बीच अक्सर खिला करतें हैं
डर किसे कहतें हैं , हमको उस समय मालूम चला
जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं
अंदाज बदला दोस्ती का कुछ इस तरह से आजकल
खामोश रहकर, आज वह हमसे मिला करते हैं
मदन मोहन सक्सेना
जब कभी भूले से हम खुद से मिला करतें हैं
अंदाज बदला दोस्ती का कुछ इस तरह से आजकल
खामोश रहकर, आज वह हमसे मिला करते हैं
मदन मोहन सक्सेना
रविवार, 22 नवंबर 2015
एक कथा (देवउठनी एकादशी /देवप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह )
भगवान
विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह
(Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की
एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at:
http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/tulsi-vivah#sthash.GwGREFdB.dpuf
गवान
विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह
(Tulsi Vivah) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की
एकादशी तिथि को मनाया जाता है। - See more at:
http://dharm.raftaar.in/religion/hinduism/festival/tulsi-vivah#sthash.GwGREFdB.dpuf
भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल तुलसी विवाह 23 नवंबर 2015 को है।देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस मांगलिक प्रसंग के शुभ अवसर पर भक्तगण घर की साफ -सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं। शाम के समय तुलसी चौरा यानि तुलसी के पौधे के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरूप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं।
एक लड़की जिसका नाम वृंदा था ,राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी,बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी। जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल के दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुए थे .वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी हमेशा अपने पति की सेवा किया करती। कुछ समय बाद सुर और असुरों में भयंकर युद्ध हुआ। जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा। स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेंगे,में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी।जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी। उनके व्रत के प्रभाव से देवता जलंधर को ना जीत सके. सारे देवता जब हारने लगे तो वे सभी भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे , उन्होने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छूए। इधर जैसे ही इनका संकल्प टूटा,उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार गिराया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में आकर गिरा .जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
कौन हो आप जिसका स्पर्श मैने अनजाने किया है ,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ गई,। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, भगवान तुंरत पत्थर के हो गये, सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगी. तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी.। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा , आज से इनका नाम तुलसी होगा, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप मे भी रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी पत्र के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी पत्र के भोग स्वीकार नहीं करुंगा।तभी से आज के दिन तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगेऔर तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है
एक कथा (देवउठनी एकादशी /देवप्रबोधिनी एकादशी और तुलसी विवाह )
मदन मोहन सक्सेना
शुक्रवार, 20 नवंबर 2015
बुधवार, 18 नवंबर 2015
रिश्तें नातें प्यार बफ़ा
रिश्तें नातें प्यार बफ़ा से
सबको अब इन्कार हुआ
बंगला ,गाड़ी ,बैंक तिजोरी
इनसे सबको प्यार हुआ
जिनकी ज़िम्मेदारी घर की
वह सात समुन्द्र पार हुआ
इक घर में दस दस घर देखें
अज़ब गज़ब सँसार हुआ
मिलने की है आशा जिससे
उस से सब को प्यार हुआ
ब्यस्त हुए तव बेटे बेटी
बूढ़ा जब वीमार हुआ
रिश्तें नातें प्यार बफ़ा
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 17 नवंबर 2015
शनिवार, 14 नवंबर 2015
आज बाल दिबस है
आज बाल दिबस है
यानि पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन है
बच्चों ने स्कूल में खूब धमाल किया
और चाचा नेहरू को याद किया
बच्चों को पता है
गांधी (इंद्रा ,राजीव ) के बारे में
भगत सिहं किस का नाम था
राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्लाह ने क्या किया ,नहीं पता
ये उधम सिहं कौन ?
ये खुदी राम बोस कौन
ये बाबू गेणू कौन
ये नाना साहब पेशवा कौन
ये झांसी की रानी कौन
ये महाराजा रंजीत सिहं कौन
ये मंगल पांडे कौन
ये सुभाष चंद्र बोस कौन
ये लाला लाजपत राय कौन
ये महाराणा प्रताप कौन
ये विपिन चंद्र पाल कौन
ये बाल गंगाधर तिलक कौन
ये चंद्र शेखर आजाद कौन
आज के बच्चें इनमे से किसी को नहीं जानते
कब इनका जन्मदिन आकर चला जाता है
न मीडिया को याद रहता है
मीडिया बॉलीवूड और क्रिकेट कि चकाचौंध में मशगूल रहता है
न ही इस देश कि जनता को नमन करने का ख्याल रहता है
क्या करे दो जून कि रोटी का जुगाड़ करने में ही
मशगूल रहतें हैं
आज के बच्चें सिर्फ़ नेहरु- गांधी खानदान को ही जानते हैं
क्या करें बेचारें
मदन मोहन सक्सेना
सदस्यता लें
संदेश (Atom)