रविवार, 14 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल(बात करते हैं )



















सजाए  मोत का तोहफा  हमने पा लिया  जिनसे 
ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधर दिलाने  की बात करते हैं 

हुए दुनिया से  बेगाने हम जिनके एक इशारे पर 
ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते  हैं

दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता
जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते  हैं

हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसने
बीते कल को हमसे बो अब चुराने की बात करते हैं

नजरे जब मिली उनसे तो चर्चा हो गयी अपनी 
न जाने क्यों बो अब हमसे प्यार छुपाने की बात करते  हैं



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह,,,बहुत उम्दा ,,,,

    दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता
    जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते हैं,,,,

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  2. बहुत बढ़िया गज़ल......
    हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके एक इशारे पर
    ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं

    बेहतरीन शेर..
    अनु

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  3. हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके एक इशारे पर
    ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं
    बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई

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  4. हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके एक इशारे पर
    ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं
    बहुत शानदार ग़ज़ल

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