मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

नज़राना
























अपना दिल कभी था जो, हुआ है आज बेगाना
आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना
दुनियां में तो अक्सर ही ,सभल कर लोग गिर जाते
मगर उनकी ये आदत है कि  गिरकर भी संभल जाना



आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नजरो का झुका जाना
ये उनकी ही अदाए  हैं ये  मुश्किल है कहीं पाना



जो बाते रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
बो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
बो नीली झील सी आँखों में दुनियां का  नजर आना
बताओ तुम दे दू क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना
 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल(बात करते हैं )



















सजाए  मोत का तोहफा  हमने पा लिया  जिनसे 
ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधर दिलाने  की बात करते हैं 

हुए दुनिया से  बेगाने हम जिनके एक इशारे पर 
ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते  हैं

दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता
जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते  हैं

हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसने
बीते कल को हमसे बो अब चुराने की बात करते हैं

नजरे जब मिली उनसे तो चर्चा हो गयी अपनी 
न जाने क्यों बो अब हमसे प्यार छुपाने की बात करते  हैं



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

मुक्तक

















अपना हाल ऐसा है की हम जाने और दिल जाने
पल भर भी बो ओझल हो तो देता दिल हमें ताने
रह करके सदा   उनका  हमें जीना  हमें मरना 
गुजारिश  है खुदा  से   ये, हमको  न  जुदा  करना 




मुक्तक प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 26 सितंबर 2012

ज़ज्बात


























जिन्हें है फ़िक्र घर भर की चिंता है ज़माने की 
मिले कोई जहाँ पर भी बयां ज़ज्बात होते  हैं  ..

ये उनमें से नहीं है जो राज ए दिल दफ़न कर   लें 
गर अपने पर ये आ जाये तो चर्चा ए बात होते हैं 

बयाँ जज्बात करने को अगर कोई नहीं मिलता 
तन्हाई के आलम में तब दिन को रात होते हैं 



प्रस्तुति:  
मदन  मोहन सक्सेना  

सोमवार, 24 सितंबर 2012

दिलबर



तुम पास नो हो मेरे  मेरी जान निकलती है
तेरा साथ  रहे जब तक मेरी सांसें चलती है

दुनियां में कहते हैं , कोई संग आता है न जाता
दिलबर तुमसे है मेरा जन्मों जन्मों का नाता

सपनों में  न भुलाना मेरी जन्नत है तुम्ही से
मेरे हमसफ़र मेरे दिलबर मेरा सब कुछ है तुम्ही से

नजरें मिली जो तुमसे तो बात बन गयी है
तेरे प्यार को ही पाकर दुनियां बदल गयी है

तुम दूर क्यों रहती हो क्यों पास नहीं आती
जो दिल में यादें हैं बह दिल से नहीं जाती

दिल तुमने ले लिया है अब पास मेरे आओ
देखे न तुमको कोई आँखों में तुम समाओ



काब्य प्रस्तुति : 
मदन मोहन सक्सेना  


  

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

जन्मदिन

परम पिता की असीम अनुकम्पा से आज मैं अपना जन्मदिन मनाने की हालत में हूँ  .आज मेरे जन्म दिन के अबसर पर आप सब भी स्वादिष्ट ब्यंजनों का आनंद लीजिये।

































अपना दिल




















अपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैं
परायी  लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैं
ना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँ
हम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैं


जीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी है
पाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे हैं 
ना उनसे दूर हम जाएँ इनायत मेरे रब करना
आँखों के बह तारे है ,बह लगते हमको प्यारे हैं

पाते जब कभी उनको , तो  आ जाती बहारे है
मैं कहता अपने दिल से हूँ ,सो दिलकश यूँ नज़ारे हैं



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 17 सितंबर 2012

विघ्नहर्ता














 

 










हे भालचन्द्राय ! हे कर्मयोगी !हे वक्रतुण्डाय !  हे वरदमूर्ति विघ्नहर्ता ...आप हमारे भी विघ्न दूर करने  पधारो जी।

विघ्नहर्ता आप  हम  सब के कष्टों का निबारण करें .   

हे रब किसी से छीन कर मुझको ख़ुशी न दे
जो दूसरों को बख्शी को बो जिंदगी न दे

तन दिया है मन दिया है और जीवन दे दिया
प्रभु आपको इस तुच्छ का है लाखों लाखों शुक्रिया

चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो
प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

मेरी अर्ध्य है प्रभु आपसे प्रभु शक्ति ऐसी दीजिये
मुझे त्याग करूणा प्रेम और मात्रं भक्ति दीजिये

तेरा नाम सुमिरन मुख करे कानों से सुनता रहूँ
करने को समर्पित पुष्प मैं हाथों से चुनता रहूँ

जब तलक सांसें हैं मेरी ,तेरा दर्श मैं पाता रहूँ
ऐसी कृपा कुछ कीजिये तेरे द्वार मैं आता रहूँ

 


प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना  












रविवार, 16 सितंबर 2012

प्रीत




नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं 
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई 

प्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे 
फिर मिलन की ऋतू  आयी भागी तन्हाई 

दिल से फिर दिल का करार होने लगा 
खुद ही फिर खुद से क्यों प्यार होने लगा 

नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं 
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

मुक्तक








रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता...
मर्जी बिन खुदा यारो तो   जर्रा भी नहीं हिलता
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता



 मुक्तक:
मदन मोहन सक्सेना