एक के बाद एक सामने आते भ्रष्टाचार के मामलों पर सरकार और विपक्ष में खींचातानी फिर शुरु हो गई है. विपक्ष ने सरकार को घेरने के लिए संसद की कार्रवाई ठप्प कर दी है लेकिन सरकार का कहना है कि विपक्ष खुद संसद का मज़ाक बना रहा है.
इन कथित घोटलों से भारत की अर्थव्यवस्था को लाखों करोड़ों का नुकसान पहुंचा है लेकिन संसद की कार्रवाई न चले तो भी नुकसान उस आम आदमी का ही है जिसके लिए बनने वाले ज़रूरी कानून ठंडे बस्ते में पड़े हैं और अहम मुद्दों पर फैसले टलते जा रहे हैं. आज के समय में न ही सत्ता पक्ष अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन कर रहा है और न ही विपक्ष. सत्ता पक्ष ने भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं पार कर दी हैं और विपक्ष ने भी. आज चाहे सत्ता पक्ष के नेता हों या विपक्ष के दोनों को सिर्फ अपनी जेब दिखाई देती है. देश या देश की आम जनता से दोनों का ही कोई लेना-देना नहीं है.
कांग्रेस गद्दी बचाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद - सभी नुस्खे
इस्तेमाल करती है और अपनी सरकार बचा लेती है. उसके
बाद फिर से घोटालों की सिलसिला शुरू हो जाता है.
अब तो ये भी लगने लगा है कि विदेशी ताकतों का भी समर्थन कांग्रेस को
प्राप्त है. रहा आम आदमी का सवाल तो इन घोटालों में पैसा तो आमलोगों का ही लगा
है. संसद नहीं चलने पर जनता के पैसों का जो हिसाब कर रहे हैं उन्हें लूट के
पैसों का हिसाब पता नहीं है?
राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए संसद स्थगित कर वाहवाही लूट रहे हैं और दूसरी तरफ घोटाले पर घोटाला कर धन बटोर रहे हैं. दोनों तरफ से नुकसान
जनता को ही है. लेकिन जनता करे तो करे क्या?
अग्रेजों की नीति थी-"फूट डालो, राज करो." वही हाल आज भी हो गया है. राजनीतिक दल चाहते हैं कि जनता में
कभी एक मत न हो.
भ्रष्टाचार के दलदल में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही डूबे हुए हैं. भाजपा प्रधानमंत्री का इस्तीफा इसलिए मांग रही है ताकि चुनाव हो जाए, साथ ही कोयला ब्लॉक आवंटन में उनके भी हाथ काले हैं तो कहीं पोल न खुल जाए.
दोनों ही दल अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने
में लगे हुए हैं. जनता जाए भाड़ में उन्हें इसका
कोई मतलब नहीं है.
संसद में बहस का क्या स्वरूप होता है और उसकी परिणति क्या होती है यह हम
सब जानते हैं. कोलगेट का आकार विशाल है.
सरकार सिर्फ चर्चा और जांच के बहाने बनाकर नहीं बच
सकती. पिछले सत्र में जेपीसी की मांग पर भी सरकार अड़ गयी ऐसे में विपक्ष
क्या करे. संसद नहीं चलने से नुकसान तो है पर कोलगेट के सामने ये कुछ भी
नहीं. संसद का मजाक विपक्ष नहीं सरकार का अड़ियल रुख और उसकी अकर्मण्यता
बना रही है.
देश का दुर्भाग्य है कि एक के बाद एक घोटाले होने के बाद भी हम इस बात
में उलझे हैं कि किस राजनीतिक दल को कितना
फायदा हो रहा है. अब तो पानी सिर के ऊपर से बह रहा है और
सरकार और उसके प्रधानमंत्री सफाई देने का नैतिक अधिकार भी खो चुके हैं.
सरकार सिर्फ अपनी करनी पर पर्दा डालने में लगी है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो
देश की पूरी राजनीति गंदी हो जाएगी और इस सिस्टम से निकलने वाला हर कोई
भ्रष्ट होगा. अब देश में एक नए बदलाव की ज़रूरत है जो देश को नई दिशा दे
सके.
संसद में जो हो रहा है वो सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच की नूरा-कुश्ती के अलावा और कुछ नहीं. देश की आम जनता जहाँ संसद से यह अपेक्षा करती है कि
वह विचार-विमर्श के ज़रिए समस्याओं का हल
तलाशेगी. वहीं पक्ष और विपक्ष ने सांसद को रोकने की
चाल खोज रखी है. हैरानी तो तब होती है जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया
गांधी अपनी पार्टी के लोगों को यह निर्देश देती हैं कि वे भाजपा के खिलाफ
आक्रामक रवैया अपनाएं. क्या यही आक्रामक निर्देश वो मनमोहन और उनकी टीम को आए
दिन हो रहे घोटालों के मामले में नहीं दे सकतीं.
आम आदमी महंगाई से जूझ रहा है, चीनी 40 रुपये किलोग्राम
खुदरा दुकानों में बिक रही है. रसोई
गैस के दाम बढ़ने वाले हैं. पेट्रोल
डीजल के दाम आधी रात को नींद तोड़
देते हैं. अन्ना को लोकपाल चाहिए, रामदेव जी को काला धन देश में लाने की चिंता है. बेनी प्रसाद महंगाई को सही बता रहे हैं. भाजपा कोयला घोटाले पर प्रधान मंत्री से इस्तीफा मांग रही है. आम आदमी शून्य
में निहार रहा है. किसी मुद्दे पर निर्णायक
लड़ाई नहीं हो रही है. सब गोलमाल है, भाई सब गोलमाल है.
संसद महंगाई के मुद्दे पर भंग की जानी चाहिए. यह मांग कोई नहीं कर
रहा. ये सारे नेता एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. कुर्सी मिलने के बाद इन्हें सिर्फ अपना ही स्वार्थ याद रहता है और देश और जनता के बारे में भूल जाते हैं. जबतक इस देश में एक सख्त न्याय प्रणाली नहीं बनेगी तब तक बार-बार भ्रष्टाचार अपनी जड़ों को और मज़बूत करता रहेगा. रोज़ नए घोटाले होते रहेंगे. अखबारों के पन्ने काली स्याही से भरते रहेंगे. सत्ता पक्ष
राजनीति कर रहा है, ये ज़रूरी भी है. मगर सवाल ये है कि आखिर
वो कौन सी पार्टी है जो लोकहित की बात संसद में
कर रही है. हर पार्टी सत्ता में आते ही देश को
लूटने में लग जाती है. सीएजी तो अपना काम पूरी ईमानदारी से करता है मगर
उसकी रिपोर्टों को अमली जामा पहनाने का क़ानूनी हक़ मिलना चाहिए. सीएजी ने
पहले भी साबित किया है कि कैसे राष्ट्रमंडल खेलों में एक लाख 76 हज़ार करोड़ का
घोटाला हुआ था. बीजेपी का रास्ता बिल्कुल सही है. कांग्रेस केवल सदन में चर्चा
करवा कर पूरे मामले की इतिश्री करना चाहती है.
चर्चा की ज़रूरत तब होती है जब जनता को इस पूरे मामले
के बारे में पता न होता. पहले से बने क़ानूनों का ही सरकार मज़ाक बना
रही है तो नए क़ानूनों का जनता क्या अचार डालेगी. तथाकथित साफ़ छवि वाले
मनमोहन सिंह को भारत का प्रधानमंत्री बने रहने का कोई हक़ नहीं. मुंबई हमले,
राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, देवास अंतरिक्ष घोटाला, टू जी घोटाला, कोयला घोटाला - इतने घोटालों के बाद भी
किसी सरकार का मुखिया ईमानदार कैसे कहला
सकता है? भ्रष्टाचार के महासमर में हर दल अपने अपने फायदे और नुकसान की गिनती में
लगा है और बेचारी देश की जनता दो पाटो के बीच पिस रही है.
जिसे जब भी मिला मौका किसी भी दल का होने दो
धन है सम्पदा यहाँ है कमी इस देश में क्या है
जिसे जब भी मिला मौका किसी भी दल का होने दो
तिजोरी अपनी भर ली है ,वतन को यार लूटा है ..
कोई तो खा गया चारा , कोयला खा गया कोई
भरोसा हुक्मरानों से नहीं ऐसे ही टूटा है ..
धन है सम्पदा यहाँ है कमी इस देश में क्या है
नियत की खोट कि खातिर मुकद्दर आज रूठा है
कोयले की कालिख और जनता
खोटा सिक्का चल रहा, खरा थामता माथ ।
जवाब देंहटाएंब्लैक कोयला ब्लाक से, होते काले हाथ ।
होते काले हाथ, हाथ दो दो हो जाए ।
मोहन मोटा माल, चले चेहरा चिपकाए ।
मैया मैं निर्दोष, माल ना खायो मोटा ।
जसुमत का आक्रोश, चलाती सिक्का खोटा ।
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खाया मोटा माल था, द्वापर युग का लाल ।
किया कालिया दाह था, लाल निकाले बाल ।
लाल निकाले बाल, बाल की खाल हालिया ।
हगे लाल अंगार, कोयला दुष्ट कालिया ।
बदला लेता आज, नचाये नाच तिगनिया ।
मोहन माखन खाय, बकाये सारी दुनिया ।
झूठी कसमें खा संसद में, मंत्री पद पा जाते है
जवाब देंहटाएंसारे तन्त्र कुतर डाले,जनता को कच्चा खाते है,
ये कलयुग के कालनेम है ,सब कुछ इनकी माया है
राष्ट्र प्रगति का सारा धन, इनके पेट समाया है,
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,