सोमवार, 3 सितंबर 2012

दर्द










 


हर सुबह  रंगीन   अपनी  शाम  हर  मदहोश है
वक़्त की रंगीनियों का चल रहा है सिलसिला

चार पल की जिंदगी में ,मिल गयी सदियों की दौलत
मिल गयी नजरें हमारी ,दिल से दिल अपना मिला

नाज अपनी जिंदगी पर क्यों न हो हमको भला
कई मुद्द्दतों के बाद फिर  अरमानो का पत्ता हिला

इश्क क्या है ,आज इसकी लग गयी हमको खबर
रफ्ता रफ्ता ढह गया, तन्हाई का अपना किला

वक़्त भी कुछ इस तरह से आज अपने साथ है
चाँद सूरज फूल में बस यार का चेहरा मिला

दर्द मिलने पर शिकायत ,क्यों भला करते मदन
जब  दर्द को देखा तो  दिल में मुस्कराते ही मिला

 

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

1 टिप्पणी:

  1. respected madan jee ,
    बहुत सुन्दर .....आपका हर चिट्ठा , विषय के साथ पूरी तरह न्याय करता है .
    ढेर सारी बधाई आप को.


    http://swapnilsaundarya.blogspot.in/
    www.SwapnilsWorldOfWords.blogspot.com
    http://www.swapniljewels.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं