सोमवार, 6 मई 2013

अब की बारी रेल की


पहले टू जी का खेल 
फिर खेल में खेल 
और अब 
रेल से मेल .












फिर एक घोटाला
अब की बारी 
आयी रेल की 

फिर एक घोटाला  
फिर एक बार मीडिया में शोर 
 फिर एक बार नेताओं की तू तू मैं मैं 
फिर एक बार सरकार की जाँच की बात 
फिर एक बार जाँच के बहाने  घोटाले को दबाने की साजिश  
फिर एक बार समिति का गठन 
 फिर एक बार जनहित याचिका की उम्मीद 
 फिर एक बार उच्चत्तम न्यायालय से  अपेछा
 फिर एक बार जनता का बुदबुदाना  कि  जाने दो  सब एक जैसे हैं।
किन्तु 
ऐसा कह कर 
हम अपनी जिम्मेदारी से बिमुख नहीं हो सकते  
अब समय आ गया 
कि हम सब अपनेस्तर से लोगों को 
आगाह करें कि भ्रष्टाचार करना 
जितना बड़ा जुर्म है 
उसे सहना 
और भ्रष्टाचार देखकर 
चुपचाप रहना  भी कम बड़ा जुर्म नहीं है. 



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  


















 

4 टिप्‍पणियां:

  1. भ्रष्टाचार देखकर चुपचाप रहना भी कम बड़ा जुर्म नहीं है.,,,

    RECENT POST: दीदार होता है,

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  2. घोटाले पर घोटाले न जाने कब इससे मुक्ति मिलेगी,बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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  3. sabase bada jurm bhrashtachariyo ko samman dena hai jo ham sabhi kanhi na kanhi kisi na kisi ko dete hai. ham bhi doshi hai isake.

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  4. सच लिखा है ... सहना भी जुर्म है ...
    अपनी ताकत को पहचानना जरूरी है ...

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