रविवार, 7 जुलाई 2013

धमाका























एक और आतंकी धमाका  
जगह बदली 
किन्तु  तरीका नहीं बदला  बदला लेने का 
एक बार फिर धमाका  
मीडिया में फिर से शोर  
नेताओं को घटना स्थल पहुचनें की बेकरारी  
सुरक्षा एजेंसियों की एक और जांच पड़ताल 
राजनेताओं में एक और हड़कंप, 
आम लोगों को अपने बजूद की  चिंता 
सुरक्षा एजेंसियों को अपने साख बचाने की चिंता  
जगह जगह छापे  
और फिर  यदि कोई सूत्र मिला भी 
और आंतकी  हत्थे लगा भी  तो  
फिर से बही क़ानूनी पेचीदगियाँ 
फिर से  कोर्ट दर कोर्ट का सफ़र 
और  यदि सजा हो भी गयी   
फिर से रहम की गुजारिश  
फिर से दलगत और प्रान्त की  राजनीति  और 
फिर से  बही पुनराब्रती  
सच में कितना अजीब  लगता है
जब आंतकी  और  मानब अधिकारबादी 
मौत की सजा माफ़ करने की बात करतें है  
उनके लिए (आंतकी )  
जिसने मानब को कभी मानब समझा ही नहीं .
 
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

6 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य से साक्षात्कार करवाती रचना ,यही सब तो चल रहा है ,अपने-
    अपने स्वार्थ ,संवेदनहीनता चारो ओर .....!!

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  2. बढ़िया प्रस्तुति -
    शुभकामनायें-

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  3. सत्य को प्रस्तुत करती आपकी पंक्तियाँ...

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  4. आतंक और आतंकी दोनों मजाक उड़ाते हैं हमारी सुरक्षा और न्याय व्यवस्था का
    बिलकुल सटीक लेखन

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  5. आज राक्षसी,अपने बच्चे,छिपा रही,मानवी नज़र से
    मानव कितना गिरा,विश्व में, क्या तेरी वन्दना करूँ !

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