जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है
कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है
दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है
मदन मोहन सक्सेना
सुंदर सृजन,बहुत उम्दा गजल ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
देने में जो ख़ुशी है उसे बिरला ही सीखता क्यों.... बहुत अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव ,उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंlatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
aajkal jhoothe ka hee bol baala hai
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने, बहुत सुंदर और उम्दा गजल, आभार
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे ,http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
जवाब देंहटाएंसही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है
...बिल्कुल सच..बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
वाह .... लाजवाब गज़ल है जी ...
जवाब देंहटाएंउम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं ?
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर अभिव्यक्ति ..
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
जवाब देंहटाएंbahut khoobsurat bhaav
बहुत सुन्दर भाव.
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