दो चार बर्ष की बात नहीं अब अर्ध सदी गुज़री यारों
हे भारत बासी मनन करो क्या खोया है क्या पाया है
गाँधी सुभाष टैगोर तिलक ने जैसा भारत सोचा था
भूख गरीबी न हो जिसमें , क्या ऐसा भारत पाया है
क्यों घोटाले ही घोटाले हैं और जाँच चलती रहती
पब्लिक भूखी प्यासी रहती सब घोटालों की माया है
अनाज भरा गोदामों में और सड़ने को मजबूर हुआ
लानत है ऐसी नीती पर जो भूख मिटा न पाया है
अब भारत माता लज्जित है अपनों की इन करतूतों पर
राजा ,कलमाड़ी ,अशोक को क्यों जनता ने अपनाया है।
मदन मोहन सक्सेना
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.
देश के कई ज्वलंत मुद्दों पर अच्छी रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है...
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