बुधवार, 20 मार्च 2013

कुदरत





क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..

एक जमी वख्शी थी कुदरत ने हमको यारों  लेकिन
हमने सब कुछ बाँट दिया है मेरे में और तेरे में

आज नजर आती मायूसी मानबता के चेहरे  पर
अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में

बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi khoobshurat aur jamane ke naye dastoor ko vykt kati sundar prastutiक्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
    हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..

    एक जमी वख्शी थी कुदरत ने हमको यारों लेकिन
    हमने सब कुछ बाँट दिया है मेरे में और तेरे में

    आज नजर आती मायूसी मानाबता के चेहरे पर
    अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में

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  2. बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति,अभी बहुत कुछ बदलना बाकि है,धन्यबाद.

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  3. आज नजर आती मायूसी मानाबता के चेहरे पर
    अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में
    ,,,,, वाह वाह !!! क्या बात है

    RecentPOST: रंगों के दोहे ,

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  4. क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
    हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में .......सही कहा आपने

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  5. क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
    हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..


    वाह बहुत खूब लिखा है !हर अश आर अपना वजन और रंग लिए है .

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  6. bahut sunder rachna .... keep coming up with more blogs ..thanks !!!

    plz viist : http://swapnilsaundarya.blogspot.in/2013/03/blog-post_21.html

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  7. आज नजर आती मायूसी मानाबता के चेहरे पर
    अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में ..

    आज के हालात पे करार तमाचा है ... लाजवाब शेर है ...

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