कैसा दौर चला है अब ये
सदन कुश्ती के मैदान हो गए
मदन मोहन सक्सेना
सदन कुश्ती के मैदान हो गए
कहते हैं कि संसद लोकतंत्र का मंदिर है लेकिन आजकल क्या सत्ता पक्ष और बिपक्ष अपनी दुकानदारी चमकाने के लिए संसद की कर्यबाही चलने ही नहीं देना चाहतें .किसी न किसी मुद्दे पर संसद में आजकल ये देखने को मिलता है कि पुरे दिन संसद में काम ही नहीं हो पाया।
एक मजदूर या फिर एक कर्मचारी काम नहीं करता है तो उसका बेतन काट लिया जाता है। किन्तु टैक्स देने बाली आम नागरिक के पैसों से चलने बाली कर्यबाही को अबरुध्ह करने का कौन दोषी है। ये विचार्रीय प्रशं है .जन मुद्दे पर बहस तो सुनने को नहीं मिलती आज तो ये ही सुनने को मिलता है।
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सदन की कार्यवाही शुरु की जाये.
कृपया बैठ जाइये..आप बैठ जाइये...उनको बोलने
दीजिये.
अरे बैठ तो जाइये... बोलने दीजिये..
सदन की कार्यवाही २ बजे तक के लिये स्थगित की जाती है.
सदन की कार्यवाही शुरु की जाये.
बैठ जाइये..... बैठ जाइये..
सदन की कार्यवाही फिर कल तक स्थगित की जाती है
मदन मोहन सक्सेना