रविवार, 18 नवंबर 2012

नज़ारे






अपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैं
परायी  लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैं
ना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँ
हम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैं


जीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी है
पाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे हैं 
ना उनसे दूर हम जाएँ ,इनायत मेरे रब करना
आँखों के बह तारे है ,बह लगते हमको प्यारे हैं

पाते जब कभी उनको , तो  आ जाती बहारे हैं 
मैं कहता अपने दिल से हूँ ,सो दिलकश यूँ नज़ारे हैं




मदन मोहन सक्सेना

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 21/11/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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    1. शुक्रिया यशोदा दी हलचल में हमारी पोस्ट शामिल करने का।

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  2. तुम हो तो...नज़ारे हैं...बहुत खूब...

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  3. वाह ... बेहतरीन भाव
    लिये उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  4. बहुत सुन्दर...प्रेमपगी रचना...

    अनु

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