दुनिया बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी
शोहरत की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी
मर्ज ऐ इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी
देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
मर्ज ऐ इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में
जवाब देंहटाएंअपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी...bahut accha ....
वाह,,,, बहुत सुंदर गजल ,,,,,मदन जी,,,,
जवाब देंहटाएंदेकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी,,,,,
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