रविवार, 4 नवंबर 2012

इनायत


















दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

शोहरत  की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़ 
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी

मर्ज ऐ  इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में 
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. मर्ज ऐ इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में
    अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी...bahut accha ....

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  2. वाह,,,, बहुत सुंदर गजल ,,,,,मदन जी,,,,

    देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
    अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी,,,,,

    RECENT POST:..........सागर

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