बुधवार, 13 नवंबर 2013
सोमवार, 11 नवंबर 2013
बुधवार, 6 नवंबर 2013
मेरी पोस्ट जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया में
मेरी पोस्ट मंगल पर मंगल ( भारत का प्रयास) जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट मंगल पर मंगल ( भारत का प्रयास) जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया ) को जागरण जंक्शन में शामिल किया गया है .
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मंगल पर मंगल ( भारत का प्रयास)
मंगल ग्रह के बारे में जानने की उत्सुकता पूरी दुनिया को है
देश-दुनिया के खगोलविदों के बीच अध्ययन के लिए
यह बेहद रोमांचक विषय रहा है.
अमेरिका और रूस समेत कई यूरोपीय देश
पिछले कुछ दशकों से मंगल ग्रह पर पहुंचने
और वहां इनसान को बसाने की संभावनाओं का पता लगाने में जुटे हुए हैं.
इस अभियान में भारत भी शामिल होना चाहता है.
आज
भारत ने अपने पहले मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान (एमओएम) के लिए
ध्रुवीय रॉकेट को आज यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से
सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इतिहास रच दिया.
चुनिंदा देशों में शामिल होने के प्रयास के लिए
भारत का यह पहला अंतर ग्रहीय अभियान है.
गल ग्रह के बारे में जानने की उत्सुकता पूरी दुनिया को है
देश-दुनिया के खगोलविदों के बीच अध्ययन के लिए
यह बेहद रोमांचक विषय रहा है.
अमेरिका और रूस समेत कई यूरोपीय देश
पिछले कुछ दशकों से मंगल ग्रह पर पहुंचने
और वहां इनसान को बसाने की संभावनाओं का पता लगाने में जुटे हुए हैं.
इस अभियान में भारत भी शामिल होना चाहता है.
उम्मीद की जा रही है कि यह अंतरिक्ष यान
इस ग्रह के दोनों हिस्सों की जानकारी मुहैया करा पाने में सक्षम होगा.
भारत इस मिशन के जरिये दुनिया को
यह संदेश देने के साथ ही यह भरोसा दिलाना चाहता है
कि उसकी तकनीक इस लायक है, जिसके सहारे
मंगल की कक्षा में अंतरिक्ष यान को भेजा जा सकता है.
इसके अलावा, इस मिशन का कार्य
मंगल पर जीवन की संभावनाओं का पता लगाना
इस ग्रह की तस्वीरें खींचना
और वहां के पर्यावरण का अध्ययन करना है.
इस अभियान में
अत्यधिक धन खर्च होने की आशंका जतायी गयी है
जिसके चलते इस अभियान की आलोचना भी की जा रही है
अंतरिक्ष यान के साथ कई प्रकार के प्रयोगों को अंजाम देने के लिए
अनेक उपकरण भी भेजे जा रहे हैं
इन सभी उपकरणों का वजन तकरीबन 15 किलोग्राम है
मंगल की सतह, वायुमंडल और खनिज आदि की जांच के लिए
उपकरण भेजे जा रहे हैं.
यह अंतरिक्ष यान मुख्य रूप से मंगल पर
मीथेन गैस की मौजूदगी बारे में पता लगायेगा.
मीथेन गैस को जीवन की संभावनाओं के लिए
एक अहम कारक माना जाता है.
यह बताया गया है कि लॉन्च होने के बाद
मार्स सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने के बाद
करीब 10 महीने तक अंतरिक्ष में घूमता रहेगा.
इस दौरान वह अपने प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल करेगा
और सितंबर, 2014 तक उसके मंगल की कक्षा तक पहुंच जाने की संभावना है.
किन्तु मौलिक चिंता का विषय
ये है कि
भारत में भले ही
हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने की योजना पूरी नहीं हुई हो
लेकिन देश का शीर्ष नेतृत्व और हमारे वैज्ञानिक
मंगल पर इनसान को बसाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं
इतना ही नहीं
देश में करोड़ों की आबादी शौचालय की सुविधा से महरूम हो
तो ऐसे में इस तरह के अभियान पर
अरबों रुपया पानी की तरह बहाना
कुछ हद तक चिंतनीय जरूर लगता है.
कुछ लोगों ने चिंता जतायी है
कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा
कि आखिरकार भारत मंगल मिशन को इतनी तवज्जो क्यों दे रहा है
जबकि देश में आधे से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं
और अब तक देश में आधे से अधिक परिवारों को
सरकार समुचित शौचालय
और स्वच्छ मौलिक सुविधाएं नहीं मुहैया करा पायी है.
इस अभियान के आलोचकों का तो यहां तक मानना है
कि एशिया में अब तक किसी भी देश ने
मंगल अभियान शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटायी
तो भारत क्यों इस दिशा में आगे बढ़ रहा है
इसके जवाब में
इसरो के मुखिया राधाकृष्णन का कहना है
कि मंगल अभियान एक ऐतिहासिक जरूरत है
खासकर जब यहां पानी की खोज की जा चुकी है
तो इस ग्रह पर स्वाभाविक जीवन की संभावनाएं भी तलाशी जा सकती हैं.
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
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मदन मोहन सक्सेना
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धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )
आज यानि शुक्रबार ,दिनांक नवम्बर एक दो हज़ार तेरह को पुरे भारत बर्ष में धनतेरस मनाई जायेगी। सबाल ये है कि आज के समय में कितनी जरुरत है धनतेरस को मनाने की।रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया
है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर
वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद
कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग
अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते
हैं।धनतेरस के दिन सोना, चांदी के अलावा बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस पर्व
पर बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो
नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में
अमृत कलश था। इस अमृत कलश को मंगल कलश भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि
देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया था। यही कारण है आम जन
इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।
आधुनिक युग की तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा आज भी
कायम है और समाज के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के
लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं। हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी केदिन धन्वतरि
त्रयोदशी मनायी जाती है। जिसे आम बोलचाल में 'धनतेरस' कहा जाता है। यह
मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म
दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है। पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।
रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।
आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है। पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है। धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं। दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।
रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।
मदन मोहन सक्सेना
गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013
त्योहार की मूल भावना
दीवाली का परब आने बाला है आज हम दीवाली जिस बजह से मनाते हैं उसे भूलकर केबल छदम दिखाबा करके ही परम्पराओं का पालन कर रहें हैं . त्योहार की मूल भावना तो ना जानें कहाँ गुम सी हो गयी है
दीवाली
बह हमसे बोले हसंकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली
मैं कैसें उनसे बोलूं कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली
बह बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम
इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम
मैंने जो देखा उनको खड़ें बह मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बह दौलत लुटा रहे थे
मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता
बह बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बह तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सब कुछ खुशियों से दामन भर लो
बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो
बह बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है
तुमको लगेगा ऐसा कि सब आपस में मिले हैं
पर ये न दिख सकेगा दिल में शिक्बे और गिले हैं
मैनें जो उनसे कहा क्या ,क्या कह जा रहे हैं
जो कुछ भी तुमने बोला ना हम समझ पा रहे हैं
मेरी नजर से देखो दुनियां में प्यार ही मिलेगा
दौलत का नशा झूठा पल भर में ये छटेगा
दौलत है आनी जानी ये तो तो सब ही जानतें हैं
ये प्यार भरी दुनियां बस हम प्यार मानतें है
प्रेम के दीपक, तुम जब हर दिल में जलाओगे
सुख शांति समृधि की सच्ची दौलत तुम पाओगे
बह बात सुन कर बोले ,यहाँ हर रोज है दीवाली
इन्सान की इस दुनियां का बस इश्वर है माली
बह मुस्करा के बोले अब हम तो समझ गएँ हैं
प्रेम के दीपक भी मेरे दिल में जल गएँ हैं
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 28 अक्तूबर 2013
हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव
हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव को बिनम्र श्रद्धांजली
भगबान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिबार को दुःख कि इस काल में धैर्य दें।
हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव का सोमवार देर रात निधन हो गया. वह 85 साल के थे.28 अगस्त 1929 को आगरा में जन्मे यादव की गिनती चोटी के लेखकों में होती
रही है। वह मुंशी प्रेमचंद की पत्रिका हंस का 1986 से संपादन करते रहे थे
जो हिन्दी की सर्वाधिक चर्चित साहित्यिक पत्रिका मानी जाती है और इसके
माध्यम से हिन्दी के नये लेखकों की एक नई पीढ़ी भी सामने आई और इस पत्रिका
ने दलित विमर्श और स्त्री विमर्श को भी स्थापित किया।
यादव के प्रसिद्ध उपन्यास सारा आकाश पर बासु चटर्जी ने एक फिल्म भी बनाई
थी। उनकी चर्चित कृतियों में जहां लक्ष्मी कैद है..,छोटे छोटे ताजमहल,
किनारे से किनारे तक, टूटना, ढोल जैसे कहानी संग्रह और उखड़े हुये लोग, शह
और मात, अनदेखे अनजान पुल तथा कुलटा जैसे उपन्यास भी शामिल है। उन्होंने
अपनी पत्नी मन्नू भंडारी के साथ एक इंच मुस्कान नामक उपन्यास भी लिखा।
यादव ने विश्व प्रसिद्ध लेखक चेखोव तुर्गनेव और अल्वेयरकामो जैसे लेखकों के
कृत्यों का भी अनुवाद किया था। यादव ने आगरा विश्वविद्यालय से एमए किया था
और वह कोलकता में भी काफी दिनों तक रहे। वह संयुक्त मोर्चा सरकार में
प्रसार भारती के सदस्य भी बनाये गये थे।
अपने लेखन में समाज के वंचित तबके और महिलाओं के
अधिकारों की पैरवी करने वाले राजेंद्र यादव प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद
की ओर से शुरू की गई साहित्यिक पत्रिका क्लिक करें
हंस का 1986 से संपादन कर रहे थे.
अक्षर प्रकाशन के बैनर तले उन्होंने इसका पुर्नप्रकाशन प्रेमचंद की जयंती 31 जुलाई 1986 से शुरू किया था.
प्रेत बोलते हैं (सारा आकाश), उखड़े हुए लोग, एक
इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ), अनदेखे अनजान पुल, शह और मात, मंत्रा
विद्ध और कुल्टा उनके प्रमुख उपन्यास हैं.
इसके अलावा उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए
हैं. इनमें देवताओं की मृत्यु, खेल-खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, छोटे-छोटे
ताजमहल, किनारे से किनारे तक और वहाँ पहुँचने की दौड़ प्रमुख हैं. इसके
अलावा उन्होंने निबंध और समीक्षाएं भी लिखीं.
आवाज़ तेरी के नाम से राजेंद्र यादव का 1960 में
एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ था. चेखव के साथ-साथ उन्होंने कई अन्य
विदेशी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया था.
उनकी रचना सारा आकाश पर इसी नाम से एक फ़िल्म भी बनी थी.
राजेंद्र यादव ने कमलेश्वर और मोहन राकेश के साथ मिलकर हिंदी साहित्य में नई कहानी की शुरुआत की थी.
लेखिका मन्नू भंडारी के साथ राजेंद्र यादव का
विवाह हुआ था. उनकी एक बेटी हैं. उनका वैवाहिक जीवन बहुत लंबा नहीं रहा और
बाद में उन्होंने अलग-अलग रहने का फ़ैसला किया था.
हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव को बिनम्र श्रद्धांजली
भगबान उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिबार को दुःख कि इस काल में धैर्य दें।शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013
बुधवार, 23 अक्तूबर 2013
मेरी पोस्ट (आपका ब्लॉग एबीपी न्यूज़ में )
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत
ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट एबीपी न्यूज़, अक्टूबर २०१३ में
प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
मेरी पोस्ट (आपका ब्लॉग एबीपी न्यूज़ में )
http://aapkablog.abpnews.newsbullet.in/life-style/2013/10/%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%A8-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%81%E0%A4%A7-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%BE-%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%A5
परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल
(करबा चौथ )
करवाचौथ के दिन
भारतबर्ष में सुहागिनें
अपने पति की लम्बी उम्र के लिए
चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है .
पति पत्नी का रिश्ता समस्त
इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है
आज के इस दौर में जब सब लोग
एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों
तो आजकल पत्नी का पति के लिए उपवास रखना
किसी अजूबे से कम नहीं हैं।
कहाबत है कि करवा चौथ का व्रत रखने से
पति की आयु बढती है और प्यार भी
तो क्या जिनके खानदान में ये परंपरा है
क्या वहां कोई विधवा नहीं होती
और वहां कभी कोई तलाक नहीं हुआ
अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्यूं ये दिखावा
ऐसें भी दम्पति हैं सारे साल लड़ते झगड़ते है
और फिर ये दिखावा करते है
क्या जो महिलाये ये व्रत नहीं रखती
वो अपने पति से प्यार नहीं करती
क्या उनके मन में
अपने पति की उम्र की लम्बी कामना नहीं होती
क्या वे विधवा हो जाती है
नहीं ऐसा कुछ नहीं होता
हम सब ये सब जानते हैं
फिर भी ये परंपरा निभाते चले जाते है
ये अंधविश्वास नहीं तो और क्या है
आज जरुरत है पुराने अंधविश्वास को छोड़कर
नयी मान्यताओ को लेकर आगे बढना
जिसका कोई ठोस मकसद हो
वेसे भी क्या एक दिन ही काफी है
पति के लम्बी उम्र की कामना के लिए
बाकी के दिन नहीं
अगर हर रोज ये कामना करनी हैं
फिर ये करवा चौथ क्यों ?
आज के समय में
जरुरत है कि
नयी परम्पराओं को जन्म देकर
आपसी रिश्ता
कैसे मजबूत कर सकें
परस्पर मिलकर खोज करने की।
मेरी पत्नी को समर्पित एक कबिता :
*******************************************************
अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ
पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना
अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकी फिर क्या करना है
अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बह सजा होगी
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी खता होगी
मेरी पोस्ट (आपका ब्लॉग एबीपी न्यूज़ में )
मदन मोहन सक्सेना
मेरी पोस्ट (आपका ब्लॉग एबीपी न्यूज़ में )
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परम्पराओं का पालन या अँध बिश्बास का खेल
(करबा चौथ )
करवाचौथ के दिन
भारतबर्ष में सुहागिनें
अपने पति की लम्बी उम्र के लिए
चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है .
पति पत्नी का रिश्ता समस्त
इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है
आज के इस दौर में जब सब लोग
एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों
तो आजकल पत्नी का पति के लिए उपवास रखना
किसी अजूबे से कम नहीं हैं।
कहाबत है कि करवा चौथ का व्रत रखने से
पति की आयु बढती है और प्यार भी
तो क्या जिनके खानदान में ये परंपरा है
क्या वहां कोई विधवा नहीं होती
और वहां कभी कोई तलाक नहीं हुआ
अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्यूं ये दिखावा
ऐसें भी दम्पति हैं सारे साल लड़ते झगड़ते है
और फिर ये दिखावा करते है
क्या जो महिलाये ये व्रत नहीं रखती
वो अपने पति से प्यार नहीं करती
क्या उनके मन में
अपने पति की उम्र की लम्बी कामना नहीं होती
क्या वे विधवा हो जाती है
नहीं ऐसा कुछ नहीं होता
हम सब ये सब जानते हैं
फिर भी ये परंपरा निभाते चले जाते है
ये अंधविश्वास नहीं तो और क्या है
आज जरुरत है पुराने अंधविश्वास को छोड़कर
नयी मान्यताओ को लेकर आगे बढना
जिसका कोई ठोस मकसद हो
वेसे भी क्या एक दिन ही काफी है
पति के लम्बी उम्र की कामना के लिए
बाकी के दिन नहीं
अगर हर रोज ये कामना करनी हैं
फिर ये करवा चौथ क्यों ?
आज के समय में
जरुरत है कि
नयी परम्पराओं को जन्म देकर
आपसी रिश्ता
कैसे मजबूत कर सकें
परस्पर मिलकर खोज करने की।
मेरी पत्नी को समर्पित एक कबिता :
*******************************************************
अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ
पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना
अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकी फिर क्या करना है
अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बह सजा होगी
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी खता होगी
मेरी पोस्ट (आपका ब्लॉग एबीपी न्यूज़ में )
मदन मोहन सक्सेना
शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013
प्यार की ख्वाहिश
प्यार की ख्वाहिश
गर कोई हमसे कहे की रूप कैसा है खुदा का
हम यकीकन ये कहेंगे जिस तरह से यार है
संग गुजरे कुछ लम्हों की हो नहीं सकती है कीमत
गर तनहा होकर जीए तो बर्ष सो बेकार है
सोचते है जब कभी हम क्या मिला क्या खो गया
दिल जिगर साँसें हैं अपनी पर न कुछ अधिकार है
याद कर सूरत सलोनी खुश हुआ करते हैं हम
प्यार से बह दर्द दे दें तो हमें स्वीकार है
जिस जगह पर पग धरा है उस जगह खुशबु मिली है
अब नाम लेने से ही अपनी जिंदगी गुलजार है
ये ख्वाहिश अपने दिल की है की कुछ नहीं अपना रहे
क्या मदन इसको ही कहते लोग अक्सर प्यार है
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 14 अक्तूबर 2013
मुश्किल समय
मुश्किल समय :
उसे हम दोस्त क्या मानें दिखे मुश्किल में मुश्किल से
मुसीबत में भी अपना हो उसी को दोस्त मानेगें
जो दिल को तोड़ ही डाले उसे हम प्यार क्या जानें
दिल से दिल मिलाये जो उसी को प्यार जानेंगें
*************************************************************************************
बाप बेटा माँ या बेटी स्वार्थ के रिश्ते सभी से
उम्र के अंतिम सफ़र में अपना नहीं कोई दोस्तों
स्वप्न थे सबके दिलों में अपना प्यार हो परिबार हो
स्वार्थ लिप्सा देखकर अब सपना नहीं कोई दोस्तों
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
अपने और गैरों में फर्क करना नहीं यारों
मर्जी क्या खुदा की हो अपने कौन हो जाएँ
जिसे पाला जिसे पोषा अगर बन जायें बह कातिल
हंसी जीवन गुजरने के सपनें मौन हो जाएँ
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013
मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक ८, अक्टूबर २०१३ में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी ग़ज़ल युबा सुघोष ,बर्ष -२, अंक ८, अक्टूबर २०१३ में प्रकाशित हुयी है . आप भी अपनी प्रतिक्रिया से अबगत कराएँ .
आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बह सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है
खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है
मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है
सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है
इन्सान कि इंसानियत के गीत अब मत गाइए
हमको हमेशा स्वार्थ की मिलती रही तामीर है
आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रश्न लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है
ब्याकुल हुआ है मदन अब आज के हालत से
आज अपनी लेखनी बनती न क्यों शमशीर है
मदन मोहन सक्सेना
आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बह सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है
खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है
मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है
सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है
इन्सान कि इंसानियत के गीत अब मत गाइए
हमको हमेशा स्वार्थ की मिलती रही तामीर है
आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रश्न लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है
ब्याकुल हुआ है मदन अब आज के हालत से
आज अपनी लेखनी बनती न क्यों शमशीर है
मदन मोहन सक्सेना
रविवार, 29 सितंबर 2013
मेरी पोस्ट (जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया ) में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट (जागरण जंक्शन फोरम सोशल मीडिया ) को जागरण जंक्शन में शामिल किया गया है .
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सोशल मीडिया
सोशल मीडिया पर गैर जुम्मेदारी का आरोप लगाकर उसे नियंत्रित करने का सरकार का इरादा वह भी सभी राजनैतिक दलों के सहयोग से बहुत सराहनीय नहीं कहा जा सकता| हाँ जो लेखक गैर जुम्मेदार हैं उन्हें जुम्मेदारी का अहसास सामाजिक जीवन में सीखना ही होगा यही लोकतंत्र की संवैधानिक अपेक्षा है|
सम्प्रति सरकार की इस पहल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा हाँ में हाँ मिलाना बड़ा आश्चर्यजनक लगता है, जहाँ अधिकांश समाचार अर्ध सत्य भ्रामक तथा राजनैतिक दलों एवं चैनल्स समूह के स्वामियों के हित पोषण हेतु प्रसारित किये जाते हैं| जिन विषयों पर वहाँ परिचर्चा आयोजित होती है उसके कतिपय सहभागी तो जाति धर्म क्षेत्र और रूढिग्रस्त पूर्वाग्रहों से ग्रसित रहते हैं, और लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक सोच से रिक्त होते हैं, फिर भी उनके हास्यास्पद विचार जनता सुनती है| इन परिचर्चाओं में भाषा की अश्लीलता आये दिन प्रदर्शित होती रहती है| यही नहीं कभी-कभी चैनल्स के सम्पादकीय विभाग की समझ और योग्यता उपहासजनक लगती है दो-चार शब्दों के केपशन तक गलत और अशुद्ध प्रसारित किये जाते हैं|
फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर नियंत्रण की बात लोकतांत्रिक समाज को शोभा नहीं देती। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सोशल नेटवर्क सबसे ज्यादा उपयोगी साबित होता है। जहां तक महिलाओं का मसला है तो ऐसी साइटों के माध्यम से वह अपने अधिकारों से संबंधित जानकारियां हासिल कर सकती हैं, अपनी बात अन्य लोगों को बता सकती हैं। वहीं दूसरी ओर इन सभी साइटों की ही वजह से आमजन अपने आसपास घट रही घटनाओं से परिचित होकर उन पर अपनी टिप्पणी कर सकते हैं, उनसे जुड़े पक्षों से अवगत हो सकते है। साथ ही सरकारी क्रियाकलापों और योजनाओं की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। इस वर्ग में शामिल लोग यह भी स्वीकार करते हैं कि हालांकि कुछ शरारती तत्व ऐसे हैं जो शांति व्यवस्था को आहत करने के लिए इन सोशल नेटवर्किंग साइटों का प्रयोग करते हैं लेकिन कुछ चुनिंदा लोगों की वजह से सोशल नेटवर्किंग को नियंत्रित करना सही नहीं है क्योंकि ये वो लोग हैं जो कोई ना कोई माध्यम ढूंढ़कर अपना मकसद पूरा कर ही लेंगे।
प्रिंट मीडिया के कतिपय लेख अवश्य ही विचारणीय होते हैं लेकिन उन्हें भी इतना समझना चाहिये कि उनके कितने समाचार निष्पक्षता के प्रमाण माने जा सकते हैं? क्या विज्ञापन के मोह में उनका लेखकीय दायित्व प्रभावित नहीं होता है? क्या पेड़ न्यूज़ नहीं प्रसरित की जाती हैं जबकि सोशल मीडिया के लेखक केवल राष्ट्र और समाज के हित में निष्पृह लिखते हैं और उसमे भी असहमति के लिए पूरी सम्भावना रहती है| बहस होती है और किसी निष्कर्ष तक पहुँचने की हर संभव कोशिश की जाती है|
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बुलाई गई राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए सोशल मीडिया को आड़े हाथों लिया। उनका कहना था कि सोशल मीडिया का जिस तरह प्रयोग होना चाहिए वैसे नहीं हो पा रहा है। प्रधानमंत्री का कहना था कि युवाओं के लिए सोशल नेटवर्किंग साइटें जानकारियां प्राप्त करने और उन्हें साझा करने का अच्छा माध्यम साबित हो सकती हैं लेकिन इसका प्रयोग इस दिशा में नहीं हो पा रहा है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उठी यह चर्चा कोई आज की बात नहीं है हर बार यही देखा जाता है कि जब भी कोई घटना घटित होती है तो उससे संबंधित चर्चाएं फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आम होने लगती हैं। दिल्ली गैंग रेप केस हो या फिर मुजफ्फरनगर में हुए दंगे, हर बार यही देखा जाता है कि कई बार सोशल नेटवर्किंग साइटों पर डाली गई जानकारियां व्यवस्थित माहौल को बिगाड़ने लगती हैं और समाज में एक अजीब से तनाव को जन्म दे देती हैं। महिलाओं की सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव दो ऐसे मुद्दे हैं जिस पर सोशल नेटवर्किंग साइटों पर होने वाली पोस्ट सबसे ज्यादा प्रभाव डालती हैं। हमारा समाज बहुत संवेदनशील है और कोई भी नकारात्मक या भ्रामक जानकारी समाज के लिए खतरा पैदा कर सकती है। ऐसे हालातों के मद्देनजर सोशल नेटविंग साइटों पर नियंत्रण और महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी उनकी भूमिका को लेकर एक बहस शुरू हो गई है।
वर्तमान में सोशल मीडिया जनता की आवाज़ है और ऐसी आवाज़ है जो सत्ता शासन तथा प्रशासन के कानो तक न केवल पहुँच रही है अपितु उन्हें कुछ करने के लिए प्रेरित और मजबूर करती है कदाचित यह आवाज़ उनकी निरंकुशता को आहत करती है इसलिए इसके विरुद्ध उनकी एकजुटता दिख रही है अन्यथा उनमे जितना दुराव हैं उतना न तो समाज में हैं और न राष्ट्रीय जीवन के किसी अंग में, तथापि सोशल मीडिया के कुछ राजनैतिक सोच से दबे हुए लेखकों को अपने अंदर सुधार अपेक्षित है इसे भी नहीं नकारा जा सकता| अनियंत्रित सोशल मीडिया शांति व्यवस्था के लिए किस प्रकार खतरा नहीं हो सकती है. सोशल मीडिया का उपयोग महिलाओं की सुरक्षा और उनकी अस्मिता के लिए खतरा नहीं है. नियंत्रित सोशल मीडिया लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत के खिलाफ नहीं है. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी की निजता का हनन सही नहीं है.
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 24 सितंबर 2013
खुद से मिलन
आँख से अब नहीं दिख रहा है जहाँ ,आज क्या हो रहा है मेरे संग यहाँ
माँ का रोना नहीं अब मैं सुन पा रहा ,कान मेरे ये दोनों क्यों बहरें हुए.
उम्र भर जिसको अपना मैं कहता रहा ,दूर जानो को बह मुझसे बहता रहा.
आग होती है क्या आज मालूम चला,जल रहा हूँ मैं चुपचाप ठहरे हुए.
शाम ज्यों धीरे धीरे सी ढलने लगी, छोंड तनहा मुझे भीड़ चलने लगी.
अब तो तन है धुंआ और मन है धुंआ ,आज बदल धुएँ के क्यों गहरे हुए..
ज्यों जिस्म का पूरा जलना हुआ,उस समय खुद से फिर मेरा मिलना हुआ
एक मुद्दत हुयी मुझको कैदी बने,मैनें जाना नहीं कब से पहरें हुए.
मदन मोहन सक्सेना
शुक्रवार, 20 सितंबर 2013
तिल का ताड़
नेता क्या अभिनेता क्या अफसर हो या ब्यापारी
पग धरते ही जेल के अन्दर सब के सब बीमार हुए
कैसा दौर चला है यारों गंदी कैसी राजनीती है
अमन चैन से रहने बाले दंगे से दो चार हुए
दादी को नहीं दबा मिली मुन्ने का भी दूध खत्म
कर्फ्यू में मौका परस्त को लाखों के ब्यापार हुए
तिल का ताड़ बना डाला क्यों आज सियासतदारों ने
आज बापू तेरे देश में कैसे ,कैसे अत्याचार हुए
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई
ख्बाजा साईं के घर में ये कहना क्यों बेकार हुए
प्रस्तुति
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 17 सितंबर 2013
आँख मिचौली जागरण जंक्शन में
प्रिय मित्रों मुझे बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है कि मेरी पोस्ट आँख मिचौली को जागरण जंक्शन में शामिल किया गया है।
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आँख मिचौली
जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा
शहर में ठिकाना खोजा
पता नहीं आजकल
हर कोई मुझसे
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला करता है
जिसकी जब जरुरत होती है
बह बहाँ से गायब मिलता है
और जब जिसे जहाँ नहीं होना चाहियें
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूँ
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना होता था
जबसे मुंबई में इधर क्या आया
या कहिये
मुंबई जैसेबड़े शहरों की दीबारों के बीच आकर फँस गया
पूछा
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो हमारे आंगन भर-भर आती थी
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा
तंग दिल पड़ोसियों ने
अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी
तुम्हें अक्सर सुबह देखता हूं
कि पड़ी रहती हो
तंगदिल और धनी लोगों
के छज्जों पर
हमारी छत तो
अब तुम्हें भाती ही नहीं है
क्या करें
बहुत मुश्किल होती है
जब कोई अपना (बर्षों से परिचित)
आपको आपके हालत पर छोड़कर
चला जाता है
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो दौलत हो या इज्जत हो
महीनों के बाद मिली हो
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की
फिर गायब
ये महानगर की धूप भी न
बिलकुल तुम पर गई है
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेला करती है
बिना ये जाने
कि इस समय इस का मौका है भी या नहीं …
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 9 सितंबर 2013
सोमवार, 26 अगस्त 2013
कृष्ण जन्म अष्टमी पर बिशेष ( अर्थ का अनर्थ )
अब तो आ कान्हा जाओ, इस धरती पर सब त्रस्त हुए
दुःख सहने को भक्त तुम्हारे आज सभी अभिशप्त हुए
नन्द दुलारे कृष्ण कन्हैया ,अब भक्त पुकारे आ जाओ
प्रभु दुष्टों का संहार करो और प्यार सिखाने आ जाओ
अर्थ का अनर्थ
एक रोज हम यूँ ही बृन्दावन गये
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है ,सब मालामाल हैं
कुछ देर बाद हमने ,एक सवाल कर दिया
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया
सवाल सुन करके बो कुछ लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने
हमने उनसे कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग , हममें तुममें भेद कर रहे
भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,दुष्टों को भी संहारा
मैनें उनसे कहा सुनिए ,हम कैसे काम करते है
करता काम कोई है ,हम अपना नाम करते हैं
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है, कल क्या होगा ,ये ना सोचा करते
माता पिता मित्र सखा आये कोई भी
किसी भी तरह हम डराया करते
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह
रूठने से उनको मनाया करते
बात जब फिर भी नहीं है बनती
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है ,सब मालामाल हैं
कुछ देर बाद हमने ,एक सवाल कर दिया
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया
सवाल सुन करके बो कुछ लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने
हमने उनसे कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग , हममें तुममें भेद कर रहे
भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,दुष्टों को भी संहारा
मैनें उनसे कहा सुनिए ,हम कैसे काम करते है
करता काम कोई है ,हम अपना नाम करते हैं
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है, कल क्या होगा ,ये ना सोचा करते
माता पिता मित्र सखा आये कोई भी
किसी भी तरह हम डराया करते
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह
रूठने से उनको मनाया करते
बात जब फिर भी नहीं है बनती
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते
मार काट लूट पाट हत्या राहजनी
अपनें हैं जो ,मर्जी हो बो करें
कहना तो अपना सदा से ये है
पुलिस के दंडें से फिर क्यों डरे
धोखे से जब कभी बे पकड़े गए
पल भर में ही उनको छुटाया करते
जब अपनें है बे फिर कष्ट क्यों हो
पल भर में ही कष्ट हम मिटाया करते
ये सुनकर के भगबान कहने लगे
क्या लोग दुनियां में इतना सहने लगे
बेटा तुने तो अर्थ का अनर्थ कर दिया
ऐसे कर्मों से जीवन अपना ब्यर्थ कर दिया
तुमसे कह रहा हूँ मैं हे पापी मदन
पाप अच्छे कर्मों से तुमको डिगाया करेंगें
दुष्कर्मों के कारण हे पापी मदन
हम तुम जैसों को फिर से मिटाया करेंगें
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 6 अगस्त 2013
गुनगुनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 22 जुलाई 2013
शिकबा
नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँ
बिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँ
मैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबा
कि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँ
बहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजा
मुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँ
बसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बत
उसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँ
मेरा नाम अब क्यों तेरे लब पर भी आये
अब मैं अपना नहीं दूसरा हो गया हूँ
मदन सुनाऊँ किसे अब किस्सा ए गम
मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ .
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
रविवार, 21 जुलाई 2013
बुधवार, 17 जुलाई 2013
पेट की भूख
पेट की भूख की चाहत
मिटाने की खातिर
छपरा के सरकारी स्कूल में
एक दो नहीं बल्कि बीस से ज्यादा बच्चों
को अपनी जिंदगी कुर्बान करनी पड़ी
निवाले हलक से नीचे उतरे नहीं
कि दम लबों पर आ गया
बच्चों के अभिभावकों की पीड़ा
कातर आंखों से आंसुओं की धार बनकर बही
रुंधे गले में अटके लफ्ज
बेटों को खो चुके पिता का कलेजा जार-जार हुआ
इकलौती पुत्री के शव के सामने
विलाप करते पिता को देखकर
दूसरे लोग भी बदहवास हो गए
परिजनों के विलाप से अस्पताल के कोने-कोने में कयामत की थरथरी गूंज गयी
जहरीला मिड डे मिल खाने से
बच्चों की मौत का आंकड़ा 20 के पार हो गया
कुछ बीमार बच्चों का इलाज अभी भी जारीहै
अब भी कुछ बच्चों की हालत काफी नाजुक लगती है
अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते बच्चें
जायज है
नाराज लोगों का गुस्सा सरकार पर
और जायज है
सरकार के खिलाफ गुस्साए लोगों का सड़क पर प्रदर्शन
किन्तु
लोगों की जगह जगह तोड़फोड़ , आगजनी
गुस्साए लोगों का पुलिस वैन को आग के हवाले करना
सही नहीं ठहराया जा सकता
और हादसे के बाद सियासत जारी है
इस्तीफा और नारेबाजी का शोर सुनाई दे रहा है
सियासी पार्टियां पीड़ित परिवारों का दर्द
बांटने की बजाय राजनीतिमें मशगूल दिखती हैं
किसी पार्टी का छपरा बंद का ऐलान
तो किसी पार्टी ने किया बिहार बंद का आवाहन कर दिया
एक बार फिर से मुख्यमंत्री का घटना पर अफ़सोस
एक बार फिर कमिश्नर और पुलिस से जांच कराने के आदेश
एक बार फिर
मृतक बच्चों के परिवार को मुआवजे का ऐलान
कौन जनता था कि
सरकारी विद्यालय में पढ़ाने का यह हश्र होगा
पेट की भूख की चाहत
इस जिंदगी को भी लील लेगी .
सबाल ये है कि
इनका कसूरबार कौन है
बच्चें
उनके अभिभाबक
स्कूल प्रशाशन
लाचार ब्यबस्था
या सब कुछ चलता है कि सोच बाली
हम सब की अपनी आदतें .
ये कोई पहली बार नहीं है
इससे पहले भी देश में कई बार
मिड डे मील खाने से मासूमों की जान जा चुकी है
16 जुलाई 2013, छपरा (बिहार)
छपरा जिले के धर्मसाती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल में जहरीला खाना खाने से 20 बच्चों की मौत।
22 जनवरी 2011, नासिक (महाराष्ट्र)
यहां के नगर निगम के स्कूल में जहरीला भोजन खाने से 61 बच्चे बीमार पड़े।
22 नवंबर 2009
दिल्ली के त्रिलोकपुरी स्थित शारदा जैन राजकीय सर्वोदय बालिका विद्यालय में मिड-डे मील खाने 120 छात्राएं बीमार।
24 अगस्त 2009 सिवनी (मध्य प्रदेश)
सरकारी स्कूल में मिड-डे मील के तहत पोहा खाने से 5 छात्र बीमार, पोहा में मरी हुई छिपकली मिली।
12 सितंबर, 2008 नरेंगा (झारखंड)
मिडल स्कूल में मिड-डे मील खाने से 60 छात्र बीमार।
मदन मोहन सक्सेना .
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