गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

आज छह दिसंबर है





















आज छह दिसंबर है
1992
की याद :


अपना भारत जो दुनिया का सुंदर चमन
सारी दुनिया से प्यारा और न्यारा बतन
ये मंदिर भी अपना और मस्जिद भी अपनी
इनसे आशा की किरणे बनी पाई गयीं

हम तो कहते कि मंदिर में रहता खुदा
जो मंदिर में है न बो इससे जुदा
नाम लेते ही अक्सर असर ये हुआ
बातें बिगड़ी छड़ों में बनाई गयीं

कोई कहता क़ि मंदिर बनेगा यहाँ
कोई कहता कि मस्जिद रहेगी यहाँ
दूरियां बे दिलों की बढ़ातें गए
और कह कह के दहशत बढ़ायी गयी

तुम देखो की भारत में क्या हो रहा
आज राम रहीमा भी क्या सो रहा
अपने हाथों बनाया सजाया जिसे
उसे जलाकर दिवाली मनाई गयी

अपने साथी सखा जो दिलों में रहे
प्यार उनसे हमेशा हम करते रहें
उनके खूनों से हाथों को हमने रँगा
इस तरीके से होली मनाई गयी

आज सूरत की सूरत को क्या हो गया
देखो अब्दुल का बालिद कहाँ खो गया
अब सीता अकेली ही दिखती है क्यों
आज जीबित चिता ही जलाई गयी

अब तो होली में आता नहीं है मजा
ईद पर भी ना हम तो गले ही मिले
आज अपना हमें कोई कहता नहीं
प्यार की सारी बातें भुलाई गयीं

आज मंदिर में रामा भी दिखता नहीं
मुझे मेरा खुदा भी है रूठा हुआ
बो युक्ति जो हमको थी बंधे हुयी
पल भर में सभी बे मिटाईं गयीं

हमको दुनिया में हर पल तो रहना नहीं
खाली हाथो ही जाना पड़ेगा बहां
देख दुनिया हँसी अपनी बुद्धि फसें
सो दुनियां हँसी यूँ बनाई गयीं


काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

3 टिप्‍पणियां:

  1. अब तो होली में आता नहीं है मजा
    ईद पर भी ना हम तो गले ही मिले
    आज अपना हमें कोई कहता नहीं
    प्यार की सारी बातें भुलाई गयीं,,,,,

    सुंदर प्रस्तुति,,,,

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