आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है
सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है
खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है
मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है
आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रशं लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है
चाँद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
आज हम आबाज देते की बेचना जमीर है
ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना
चाँद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
जवाब देंहटाएंआज हम आबाज देते की बेचना जमीर है
bahut thik kaha aapne
My latest post: gandhari ke raj me nari!
http://kpk-vichar.blogspot.in
वाह,,,बहुत सुंदर बेहतरीन गजल,,,,
जवाब देंहटाएंनारी हो न निराश करो मन को - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
जवाब देंहटाएंहर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है
खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है
सुंदर..अर्थपूर्ण पंक्तियां।