शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

रहमत






रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता.

मर्जी बिन खुदा यारो तो   जर्रा हिल नहीं सकता 
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता...

मन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लो 
जियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लो 

मर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने सपने हों
रहमत जब खुदा की हो तो बेगाने भी अपने हों 




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

2 टिप्‍पणियां:

  1. wow...thumbs up for such a lovely post...thanks for sharing ........

    -Swapnil Shukla

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