बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

सब एक जैसे


















फिर एक घोटाला 
फिर एक बार मीडिया में शोर 
फिर एक बार नेताओं की तू तू मैं मैं 
फिर एक बार सरकार की जाँच की बात 
फिर एक बार जाँच के बहाने  घोटाले को दबाने की साजिश 
फिर एक बार समिति का गठन 
फिर एक बार जनहित याचिका की उम्मीद 
फिर एक बार उच्चत्तम न्यायालय से  अपेछा 
फिर एक बार जनता का बुदबुदाना 
कि 
जाने दो 
सब एक जैसे हैं।

मदन मोहन सक्सेना . 


8 टिप्‍पणियां:

  1. सरकार के ढकोसलों की पोल खोलती सुन्दर रचना.

    मेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
    "ब्लॉग कलश"

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  2. सच में सब एक जैसा ही है ... इसी सर्कल में घूमता रहता है ...

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  3. बहुत बढ़िया लेकिन एक फर्क है इस मर्तबा पानी इटलीजी पे गिर रहा है .

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  4. des ki halat ki mat poochiye,ghotalo ka khel ab hamare desh me k band hoga ?

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  5. हम सब यह सब सहने के आदि हो गए हैं आक्रोशित मन से निकले शब्द बहुत खूब

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  6. बार बार यही होता है... जनता भी वही और जनता के चुने हुए भी वही, ज़रा सा दल बदल या उलट फेर...एक ही प्रक्रिया... बहुत अच्छा लिखा है, बधाई.

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  7. सब एक जैसे नहीं होते..,
    ये नेता ही हैं, जाने कैसे कैसे होते हैं.....

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