फिर एक घोटाला
फिर एक बार मीडिया में शोर
फिर एक बार नेताओं की तू तू मैं मैं
फिर एक बार सरकार की जाँच की बात
फिर एक बार जाँच के बहाने घोटाले को दबाने की साजिश
फिर एक बार समिति का गठन
फिर एक बार जनहित याचिका की उम्मीद
फिर एक बार उच्चत्तम न्यायालय से अपेछा
फिर एक बार जनता का बुदबुदाना
कि
जाने दो
सब एक जैसे हैं।
मदन मोहन सक्सेना .
सरकार के ढकोसलों की पोल खोलती सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है,आपका परामर्श चाहिए.
"ब्लॉग कलश"
सच में सब एक जैसा ही है ... इसी सर्कल में घूमता रहता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेकिन एक फर्क है इस मर्तबा पानी इटलीजी पे गिर रहा है .
जवाब देंहटाएंdes ki halat ki mat poochiye,ghotalo ka khel ab hamare desh me k band hoga ?
जवाब देंहटाएंअब शीघ्र चुनाव आने वाला है ,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बसंती रंग छा गया
हम सब यह सब सहने के आदि हो गए हैं आक्रोशित मन से निकले शब्द बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबार बार यही होता है... जनता भी वही और जनता के चुने हुए भी वही, ज़रा सा दल बदल या उलट फेर...एक ही प्रक्रिया... बहुत अच्छा लिखा है, बधाई.
जवाब देंहटाएंसब एक जैसे नहीं होते..,
जवाब देंहटाएंये नेता ही हैं, जाने कैसे कैसे होते हैं.....