पाने को आतुर रहतें हैं खोने को तैयार नहीं है
जिम्मेदारी ने मुहँ मोड़ा सुबिधाओं की जीत हो रही.
साझा करने को ना मिलता , अपने गम में ग़मगीन हैं
स्वार्थ दिखा जिसमें भी यारों उससे केवल प्रीत हो रही .
कहने का मतलब होता था ,अब ये बात पुरानी है
जैसा देखा बैसी बातें .जग की अब ये रीत हो रही ...
अब खेलों में है राजनीति और राजनीति ब्यापार हुई
मुश्किल अब है मालूम होना ,किस्से किसकी मीत हो रही
क्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
संग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
वाह बहुत खूब ...जिंदगी का एक कड़वा सच
जवाब देंहटाएंवाह ,.,, जिंदगी का सच लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
waah ...jo hua sacchai se bata diya .....
जवाब देंहटाएंक्यों अनजानापन लगता है अब, खुद के आज बसेरे में
जवाब देंहटाएंसंग साथ की हार हुई और तन्हाई की जीत हो रही
सच्ची - सार्थक अभिव्यक्ति
हकीक़त बयान करती रचना!
जवाब देंहटाएंढ़
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थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!
हकीक़त बयान करती रचना!
जवाब देंहटाएंढ़
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थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!