बुधवार, 6 मार्च 2013

मजबूरी


















आँखों  में  जो सपने थे सपनो में जो सूरत थी
नजरें जब मिली उनसे बिलकुल बैसी  मूरत थी

जब भी गम मिला मुझको या अंदेशे कुछ पाए हैं
बिठा के पास अपने  उन्होंने अंदेशे मिटाए हैं

उनका साथ पाकर के तो दिल ने ये ही  पाया है
अमाबस की अँधेरी में ज्यों चाँद निकल पाया है

जब से मैं मिला उनसे  दिल को यूँ खिलाया है
अरमां जो भी मेरे थे हकीकत में मिलाया है

बातें करनें जब उनसे  हम उनके पास हैं जाते
चेहरे  पे जो रौनक है उनमें हम फिर खो जाते

ये मजबूरी जो अपनी है  हम उनसे बच नहीं पाते
देखे रूप उनका तो हम बाते कर नहीं पाते 

बिबश्ता देखकर मेरी सब कुछ बो समझ  जाते 
हमसे  आँखों से ही करते हैं अपने दिल की सब बातें




काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना



रविवार, 3 मार्च 2013

याद
















तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना  

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

झुनझुना



2 से 5 लाख की आय पर इनकम टैक्‍स में 2000 रुपये की छूट. 
दाल ,रोटी, तेल,परिबहन  ,शिक्षा (सभी आबश्यक बस्तु ) और रेल के दाम बढने के मंहगाई  के इस दौर में आम जनता को सरकार का एक और झुनझुना .

मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

वक़्त




























वक़्त की साजिश नहीं तो और किया बोले इसे
पलकों में सजे सपने ,जब गिरकर चूर हो जाये

अक्सर रोशनी में खोटे सिक्के भी चला करते
न जाने कब खुदा को क्या मंजूर हो जाए

भरोसा है हमें यारो की कल तस्बीर बदलेगी
गलतफमी जो अपनी है बह सबकी दूर हो जाये

लहू से फिर रंगा दामन न हमको देखना होगा
जो करते रहनुमाई है, बह सब मजदूर हो जाये

शिकायत फिर मुक्कदर से ,किसी को भी नहीं होगी
जब हर पल मुस्कराने को हम मजबूर हो जाये...

शोहरत की ख़ुशी मिलती और तन्हाई का गम मिलता
जब चर्चा में रहे कोई और मशहूर हो जाये .......

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

















एक और आतंकी धमाका
जगह बदली किन्तु 
तरीका नहीं बदला 
बदला लेने का 
एक बार फिर धमाका 
कई मासूम लोगों की मौत 
कई लोगों ने महसूस की अपनों को खोने की टीस 
मीडिया में फिर से शोर 
नेताओं को घटना स्थल पहुचनें की बेकरारी 
सुरक्षा एजेंसियों की एक और जांच पड़ताल
राजनेताओं में एक और हड़कंप,
आम लोगों को अपने बजूद की  चिंता  
सुरक्षा एजेंसियों को अपने साख बचाने की चिंता 
जगह जगह छापे 
और फिर 
यदि कोई सूत्र मिला भी 
और आंतकी  हत्थे लगा भी  तो 
फिर से बही क़ानूनी पेचीदगियाँ 
फिर से 
कोर्ट दर कोर्ट का सफ़र 
और  यदि सजा हो भी गयी  
फिर से रहम की गुजारिश 
फिर से दलगत और प्रान्त की  राजनीति 
और फिर से 
बही पुनराब्रती 
सच में कितना अजीब  लगता है जब आंतकी 
और  मानब अधिकारबादी  मौत की सजा माफ़ करने की बात करतें है 
उनके लिए (आंतकी )
जिसने मानब को कभी मानब समझा ही नहीं .

प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना 


सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

रहमत






रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता..
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता.

मर्जी बिन खुदा यारो तो   जर्रा हिल नहीं सकता 
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता...

मन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लो 
जियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लो 

मर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने सपने हों
रहमत जब खुदा की हो तो बेगाने भी अपने हों 




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

हमसफ़र




मेरे हमनसी मेरे हमसफ़र ,तुझे खोजती है मेरी नजर
तुम्हें हो ख़बर की न हो ख़बर ,मुझे सिर्फ तेरी तलाश है

मेरे साथ तेरा प्यार है ,तो जिंदगी में बहार है
मेरी जिंदगी तेरे दम से है ,इस बात का एहसाश है

तेरे इश्क का है ये असर ,मुझे सुबह शाम की न ख़बर
मेरे दिल में तू रहती सदा , तू ना दूर है ना पास है

ये तो हर किसी का खयाल है ,तेरे रूप की न मिसाल है
कैसें कहूं तेरी अहमियत, मेरी जिंदगी में खास है

तेरी झुल्फ जब लहरा गयीं , काली घटायें छा गयीं
हर पल तुम्हें देखा करू ,आँखों में फिर भी प्यास है


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

सब एक जैसे


















फिर एक घोटाला 
फिर एक बार मीडिया में शोर 
फिर एक बार नेताओं की तू तू मैं मैं 
फिर एक बार सरकार की जाँच की बात 
फिर एक बार जाँच के बहाने  घोटाले को दबाने की साजिश 
फिर एक बार समिति का गठन 
फिर एक बार जनहित याचिका की उम्मीद 
फिर एक बार उच्चत्तम न्यायालय से  अपेछा 
फिर एक बार जनता का बुदबुदाना 
कि 
जाने दो 
सब एक जैसे हैं।

मदन मोहन सक्सेना . 


सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल







जिनका प्यार पाने में हमको ज़माने लगे
बह  अब नजरें मिला के   मुस्कराने लगे

राज दिल का कभी जो छिपाते थे हमसे
बातें  दिल की हमें बह बताने  लगे 

अपना बनाने को  सोचा  था जिनको
बह अपना हमें अब   बनाने लगे

जिनको देखे बिना आँखे रहती थी प्यासी
बह अब नजरों से हमको पिलाने लगे

जब जब देखा उन्हें उनसे नजरे मिली
गीत हमसे खुद ब खुद बन जाने लगे

प्यार पाकर के जबसे प्यारी दुनिया रचाई
क्यों हम दुनिया को तब से भुलाने लगे

गीत ग़ज़ल जिसने भी मेरे देखे या सुने
तब से शायर बह हमको बताने लगे

हाल देखा मेरा तो दुनिया बाले ये बोले
मदन हमको तो दुनिया से बेगाने लगे ...


ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना


 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल सम्राट शत शत नमन






ग़ज़ल सम्राट  जगजीत सिंह के जन्मदिन पर उनको शत शत नमन .इस अबसर पर पेश है  आज एक अपनी पुरानी ग़ज़ल जिसे देख कर  खुद जगजीत सिंह जी ने संतोष ब्यक्त किया था . ये मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं था।

कल  तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ
इक  शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है

बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
जिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है

गर कहोगें दिन  को दिन तो लोग जानेगें गुनाह 
अब आज के इस दौर में दिखते  नहीं इन्सान है

इक दर्द का एहसास हमको हर समय मिलता रहा
ये बक्त  की साजिश है या फिर बक्त  का एहसान है

गैर बनकर पेश आते, बक्त पर अपने ही लोग
अपनो की पहचान करना अब नहीं आसान है 

प्यासा पथिक और पास में बहता समुन्द्र देखकर 
जिंदगी क्या है मदन , कुछ कुछ हुयी पहचान है 

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना