मंगलवार, 6 अगस्त 2013

गुनगुनाना चाहता हूँ


 
 
 
 
 
 
 
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ 
 
ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है 
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है 
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है 
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ 
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे 
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे 
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं 
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं 
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ 
ग़ज़ल  दिल की बाढ़ है और मन की पीर है 
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है 
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी 
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती 
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ 
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 22 जुलाई 2013

शिकबा

 

















नजर फ़ेर ली है खफ़ा हो गया हूँ
बिछुड़ कर किसी से जुदा हो गया हूँ

मैं किससे करूँ बेबफाई का शिकबा 
कि खुद रूठकर बेबफ़ा हो गया हूँ 

बहुत उसने चाहा बहुत उसने पूजा 
मुहब्बत का मैं देवता हो गया हूँ 

बसायी थी जिसने दिलों में मुहब्बत
उसी के लिए क्यों बुरा हो गया हूँ 

मेरा नाम अब क्यों तेरे लब पर भी आये
अब मैं अपना नहीं दूसरा हो गया हूँ 

मदन सुनाऊँ किसे अब किस्सा ए गम 
मुहब्बत में मिटकर फना हो गया हूँ . 



प्रस्तुति:

मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 21 जुलाई 2013

काश हम अकेले होते

 

 

 

काश हम अकेले होते (अणु भारती में पूर्ब प्रकाशित मेरा ब्यंग्य)

मदन मोहन सक्सेना .

 

बुधवार, 17 जुलाई 2013

पेट की भूख

 















पेट की भूख की चाहत
मिटाने की खातिर
छपरा के सरकारी स्कूल में 
एक दो नहीं बल्कि बीस से ज्यादा बच्चों 
को  अपनी जिंदगी कुर्बान करनी पड़ी
निवाले हलक से नीचे उतरे नहीं 
कि दम लबों पर आ गया
बच्चों के अभिभावकों की पीड़ा 
कातर आंखों से आंसुओं की धार बनकर बही 
रुंधे गले में अटके लफ्ज 
बेटों को खो चुके पिता का कलेजा जार-जार हुआ 
इकलौती पुत्री के शव के सामने 
विलाप करते पिता को देखकर
दूसरे लोग  भी बदहवास हो गए 
परिजनों के विलाप से अस्पताल के कोने-कोने में कयामत की थरथरी गूंज गयी
जहरीला मिड डे मिल खाने से 
बच्चों की  मौत का आंकड़ा 20 के पार हो गया
कुछ बीमार बच्चों का इलाज अभी भी जारीहै 
अब भी कुछ बच्चों की हालत काफी नाजुक लगती है
अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते बच्चें 
जायज है
नाराज लोगों का गुस्सा सरकार पर 
और जायज है
सरकार के खिलाफ गुस्साए लोगों का सड़क पर  प्रदर्शन 
किन्तु 
लोगों की  जगह जगह तोड़फोड़ , आगजनी 
गुस्‍साए लोगों का  पुलिस वैन को आग के हवाले करना
सही नहीं ठहराया जा सकता
और हादसे के बाद   सियासत जारी है
इस्तीफा और  नारेबाजी का शोर सुनाई दे रहा है 
सियासी पार्टियां पीड़ित परिवारों का दर्द 
बांटने की बजाय राजनीतिमें मशगूल दिखती हैं 
किसी पार्टी का छपरा बंद का ऐलान 
तो किसी पार्टी ने किया  बिहार बंद का आवाहन कर दिया 
एक बार फिर से मुख्यमंत्री का  घटना पर अफ़सोस 
एक बार फिर   कमिश्नर और पुलिस  से  जांच कराने के आदेश 
एक बार फिर  
मृतक बच्‍चों के परिवार को  मुआवजे का ऐलान 
कौन जनता था कि 
सरकारी विद्यालय में  पढ़ाने का यह हश्र होगा
पेट की भूख की चाहत 
इस जिंदगी को भी लील लेगी .
सबाल ये है कि 
इनका कसूरबार कौन है 
बच्चें 
उनके अभिभाबक 
स्कूल प्रशाशन 
लाचार ब्यबस्था 
या सब कुछ चलता है कि सोच बाली 
हम सब की अपनी आदतें .
ये कोई पहली बार नहीं है 
इससे पहले भी देश में कई बार 
मिड डे मील खाने से मासूमों की जान जा चुकी है
16 जुलाई 2013, छपरा (बिहार)
छपरा जिले के धर्मसाती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल में जहरीला खाना खाने से 20 बच्चों की मौत।
22 जनवरी 2011, नासिक (महाराष्ट्र)
यहां के नगर निगम के स्कूल में जहरीला भोजन खाने से 61 बच्चे बीमार पड़े।
22 नवंबर 2009
दिल्ली के त्रिलोकपुरी स्थित शारदा जैन राजकीय सर्वोदय बालिका विद्यालय में मिड-डे मील खाने 120 छात्राएं बीमार।
24 अगस्त 2009 सिवनी (मध्य प्रदेश)
सरकारी स्कूल में मिड-डे मील के तहत पोहा खाने से 5 छात्र बीमार, पोहा में मरी हुई छिपकली मिली।
12 सितंबर, 2008 नरेंगा (झारखंड)
मिडल स्कूल में मिड-डे मील खाने से 60 छात्र बीमार।





मदन मोहन सक्सेना .














सोमवार, 15 जुलाई 2013

परमाणु पुष्प में पूर्ब प्रकाशित मेरा ब्यंग्य

परमाणु पुष्प में पूर्ब प्रकाशित मेरा ब्यंग्य:






मेरी बिदेश यात्रा .

मदन मोहन सक्सेना .

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

तत्सम पत्रिका में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ

 














































तत्सम पत्रिका में प्रकाशित मेरी कुछ क्षणिकाएँ .

एक :
संबिधान है 
न्यायालय है
मानब अधिकार आयोग है 
लोकतांत्रिक सरकार है 
साथ ही 
आधी से अधिक जनता 
अशिक्षित ,निर्धन और लाचार है .



दो:
कृषि प्रधान देश है 
भारत भी नाम है 
भूमि है ,कृषि है, कृषक हैं 
अनाज के गोदाम हैं 
साथ ही 
भुखमरी,  कुपोषण में भी बदनाम है .


तीन:

खेल है 
खेल संगठन हैं 
खेल मंत्री है 
खेल पुरस्कार हैं 
साथ ही 
खेलों के महाकुम्भ में 
पदकों की लालसा में 
सौ करोड़ का भारत भी देश है .
























मदन मोहन सक्सेना .





रविवार, 7 जुलाई 2013

धमाका























एक और आतंकी धमाका  
जगह बदली 
किन्तु  तरीका नहीं बदला  बदला लेने का 
एक बार फिर धमाका  
मीडिया में फिर से शोर  
नेताओं को घटना स्थल पहुचनें की बेकरारी  
सुरक्षा एजेंसियों की एक और जांच पड़ताल 
राजनेताओं में एक और हड़कंप, 
आम लोगों को अपने बजूद की  चिंता 
सुरक्षा एजेंसियों को अपने साख बचाने की चिंता  
जगह जगह छापे  
और फिर  यदि कोई सूत्र मिला भी 
और आंतकी  हत्थे लगा भी  तो  
फिर से बही क़ानूनी पेचीदगियाँ 
फिर से  कोर्ट दर कोर्ट का सफ़र 
और  यदि सजा हो भी गयी   
फिर से रहम की गुजारिश  
फिर से दलगत और प्रान्त की  राजनीति  और 
फिर से  बही पुनराब्रती  
सच में कितना अजीब  लगता है
जब आंतकी  और  मानब अधिकारबादी 
मौत की सजा माफ़ करने की बात करतें है  
उनके लिए (आंतकी )  
जिसने मानब को कभी मानब समझा ही नहीं .
 
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

शून्यता

 





















जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं


सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला  सीखता क्यों है 


कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है


दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है


आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप  रहता है और झूठा चीखता क्यों है



मदन मोहन सक्सेना


बुधवार, 26 जून 2013

सियासत


 



















इंसानों की बस्ती पर 
कुदरत की सबसे बड़ी मार
नेताओं का तांडव टूरिज्म 
तबाही पर नेताओं की सियासत 
किसी ने हजारों गुजराती  को सुरक्षित ले जाने का दाबा  किया 
तो कोई आठ दिन बाद अबतरित हुआ और 
ताम झाम के साथ राहत सामग्री को भेजता नजर आया 
तो कोई कोई हबाई दौरों से ही अपना कर्तब्य पूरा करता नजर आया 
भले ही हजारों लोग अब भी राहत का इंतज़ार कर रहे हों 
लेकिन
सूबे के मुखिया जिनकी जिम्मेदारी 
सूबे के लोगों के जान माल की सुरक्षा करना है 
बिज्ञापन देने में ब्यस्त हैं
उत्‍तराखंड में आई भीषण त्रासदी 
राहत कार्यों को लेकर सियासत चरम पर
देहरादून में कांग्रेस और टीडीपी के नेताओं में हाथापाई 
हाथापाई राहत का क्रेडिट लेने को लेकर 
हंगामे के दौरान टीडीपी अध्यक्ष भी वहां मौजूद
इंसानों की बस्ती पर 
कुदरत की सबसे बड़ी मार
नेताओं का तांडव टूरिज्म 
तबाही पर नेताओं की सियासत 
नेताओं को इस तरह भिड़ते देखकर 
लोगों का सिर शर्म से झुक जाए
लेकिन इनको ना शर्म आई और 
ना ही उत्तराखंड की तबाही में बर्बाद हुए लोगों की इन्हें फिक्र है
इन्हें फिक्र है तो बस इस बात की कि इनकी सियासत में कुछ गड़बड़ ना हो जाए.
ये कौन सा दौर है 
जहाँ आदमी की जान सस्ती है 
और राजनीति का ये कौन सा चरित्र है 
जहाँ सिर्फ सियासत 
ही मायने रखती है 
इसके लिए जितना भी गिरना हो 
मंजूर है .

प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना

शुक्रवार, 21 जून 2013

श्रद्धा





















कुदरत का कहर 
कई हजार लोगों के बीच में फसें होने की उम्मीद
अपनों का इंतज़ार करती आँखें 
जिंदगी की चाहत में मौत से पल पल का संघर्ष
फिर से बही गंदी कहानी 
शबों से पैसे,गहने  लुटते
आदमी के रूप में शैतान 
सरकार का बही ढीला रबैया 
हजारों के लिए गिनती के हेलिकॉप्टर 
राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की कशमकश
इस बीच 
खुद को
लाचार ,ठगा महसूस 
करता इस देश का नागरिक .
इन सबके बीच 
भारतीय सेना के जबानों ने 
साबित कर दिया
कि उनके मन में जितनी श्रद्धा 
भारत मत के लिए है 
उतनी या उससे कहीं अधिक 
चिंता देश के अबाम की है .


मदन मोहन सक्सेना .