मंगलवार, 28 मई 2013
शुक्रवार, 24 मई 2013
दोस्ती
कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ..
इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे .
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ
जिस रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आखो से मय पीने लगे मानो की मयखाना हुआ
इस कदर अन्जान हैं हम आज अपने हाल से
हमसे मिलकरके बोला आइना ये शख्श बेगाना हुआ
ढल नहीं जाते हैं लब्ज यूँ ही रचना में कभी
कभी ग़ज़ल उनसे मिल गयी कभी गीत का पाना हुआ
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
बुधवार, 15 मई 2013
कोशिश
13 ट्रेनें , 5,000 बसें और 60 नावों का इंतज़ाम करके समर्थकों को पटना लाने के लिए लालू ने परिबर्तन रैली करके ये दिखाने की कोशिश की है की जनता अब परिबर्तन चाहती हैं .
देखना होगा कि इस तामझाम से लालू परिबार की किस्मत कितनी बदल पाती है.
परिवार, परिवर्तन या पद। चाहिये क्या । पटना के गांधी मैदान में पटे पड़े पोस्टर को देख कर हर किसी ने कहा परिवार। पोस्टर को पढ़ा तो हर किसी को लगा बात तो परिवर्तन की हो रही है। और जब भाषण हुआ तो लगा लड़ाई तो सत्ता की है, पद पाने की है। पटना के गांधी मैदान ने इतिहास बनते हुये भी देखा है और बने हुये इतिहास को गर्त में समाते हुये भी देखा है। लेकिन पहली बार गांधी मैदान ने जाना समझा कि वक्त जब बदलता है तो संघर्ष के बाद परिवर्तन से ज्यादा संघर्ष करते हुये नजर आना ही महत्वपूर्ण हो जाता है। यह सवाल लालू यादव के लिये इसलिये है क्योंकि कभी जेपी के दांये-बांये खड़े होकर लालू और नीतीश दोनों ने इंदिरा गांधी को घमंडी और तानाशाह कहते हुये जेपी की बातों पर खूब तालियां बजायी हैं। और सत्ता में खोते देश में सत्ता के लिये हर संघर्ष करने वाले को सत्ताधारी अब तानाशाह और घमंडी नजर आने लगा है। यह सच भी है कि कमोवेश हर सत्ताधारी तानाशाह और घमंडी हो चला है। लेकिन इसे तोड़ने के लिये क्या वाकई कोई राजनीतिक संघर्ष हो रहा है। असल में लालू यही चूक रहे हैं और नीतिश इसी का लाभ उठा रहे हैं। दरअसल, इतिहास के पन्नों को टटोलें तो पटना के गांधी मैदान में लालू यादव और नीतिश कुमार ने 1974 से 1994 तक एक साथ संघर्ष किया। और अब इसी गांधी मैदान से नीतिश की सत्ता डिगाने के लिये लालू यादव अपने बेटे की सियासी ताजपोशी करते दिखे।
और गांधी मैदान जो बिहार ही नहीं देश की बदलती सियासत का गवाह रहा है, उसे एक बार फिर उसे संघर्ष में सत्ता पाने का लेप लगते हुये देखना पड़ा। क्योंकि जेपी और कर्पूरी ठाकुर के दौर में नाते-शिश्तेदारों के खिलाफ राजनीतिक जमीन पर खड़े होकर संघर्ष करने की मुनादी करने वाले लालू यादव कितना बदले इसकी हवा परिवर्तन रैली में बहेगी। परिवर्तन की नयी बयार बिहार की सियासत के लिये इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक सत्ता के लिये लालू का हर संघर्ष नीतिश की सत्ता को ही मजबूत करता रहा है। और नीतिश हमेशा ठहाका लगाकर यह कहने से नहीं चूकते कि मुझे हटाकर क्या लालू की सत्ता चाहते हैं। और बिहार की जनता खामोशी से नीतिश धर्म को ही बेहतर मान चुप हो जाती है। लेकिन इस बार लालू का वार दोहरा है, जिसमें वह खुद को माइनस कर चलते दिखे और गांधी मैदान में युवा बिहार के लिये अपने बेटों के जरीये विकल्प का सवाल उठाते दिखे तो मोदी के डंक को मुस्लिमो को चुभाकर नीतिश के आरएसएस के गोद में बैठने की बात भी कह गये।
लेकिन लालू की सबसे बड़ी मुश्किल वही कांग्रेस है, जिसकी पीठ पर सवार होकर उन्होंने दिल्ली की सत्ता का स्वाद भी लिया। अब वही कांग्रेस लालू को पीठ दिखा कर नीतिश को साधने में जुटी है। और लालू के पास इसका जवाब नहीं है जबकि कभी जेपी ने गांधी मैदान में जब नारा लगाया था इंदिरा हटाओ देश बचाओ तब लालू जेपी के साथ खड़े थे। ऐसे मोड़ पर गांधी मैदान परिवर्तन की गूंज कैसे सुन पायेगा और परिवर्तन के नाम पर सिर्फ भीड भड़क्का को ही देखकर इतना ही कह पा रहा है कि लालू का मिथ टूटा नहीं है। क्योंकि भरी दोपहरी और फसल में फंसे किसान-मजदूरों के बीच भी रैली हो गई। यह अलग बात है कि रैली ने यह संदेश भी दे दिया कि बिहार परिवर्तन चाहता है और उसे विकल्प की खोज है। लेकिन कोई परिवार, परिवर्तन या पद के नाम पर गांधी मैदान के जरीये बिहार को ठग नहीं सकता है।
यू पी ए २ एक सौ अस्सी करोड़ खर्च करके एक सौ बीस करोड़ लोगों को ये बताने की कोशिश करेगी की अब कितने मील और आगे जाना है .
बुधवार, 8 मई 2013
तन्हाई की महफ़िल
सजा क्या खूब मिलती है , किसी से दिल लगाने की
तन्हाई की महफ़िल में आदत हो गयी गाने की
हर पल याद रहती है , निगाहों में बसी सूरत
तमन्ना अपनी रहती है खुद को भूल जाने की
उम्मीदों का काजल जब से आँखों में लगाया है
कोशिश पूरी रहती है , पत्थर से प्यार पाने की
अरमानो के मेले में जब ख्बाबो के महल टूटे
बारी तब फिर आती है , अपनों को आजमाने की
मर्जे इश्क में अक्सर हुआ करता है ऐसा भी
जीने पर हुआ करती है ख्वाहिश मौत पाने की
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 6 मई 2013
अब की बारी रेल की
पहले टू जी का खेल
फिर खेल में खेल
और अब
रेल से मेल .
फिर एक घोटाला
अब की बारी
आयी रेल की
फिर एक घोटाला
फिर एक बार मीडिया में शोर
फिर एक बार नेताओं की तू तू मैं मैं
फिर एक बार सरकार की जाँच की बात
फिर एक बार जाँच के बहाने घोटाले को दबाने की साजिश
फिर एक बार समिति का गठन
फिर एक बार जनहित याचिका की उम्मीद
फिर एक बार उच्चत्तम न्यायालय से अपेछा
फिर एक बार जनता का बुदबुदाना कि जाने दो सब एक जैसे हैं।
किन्तु
ऐसा कह कर
हम अपनी जिम्मेदारी से बिमुख नहीं हो सकते
अब समय आ गया
कि हम सब अपनेस्तर से लोगों को
आगाह करें कि भ्रष्टाचार करना
जितना बड़ा जुर्म है
उसे सहना
और भ्रष्टाचार देखकर
चुपचाप रहना भी कम बड़ा जुर्म नहीं है.
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
बुधवार, 1 मई 2013
ये कैसा समय
ये कैसी ईमानदारी
जिसके नेत्रत्ब में करोड़ों का घपला हो
ये कहाँ की सरदारी
जब कोई दुश्मन आपके घर में आ धमके
और आप स्थानीय समस्या बोलें
ये कैसा बद्दपन
कि पडोसी मुल्क आपके सैनिकों के सर काट डालें
और आप इसकी उपेछा करतें रहें
ये कैसी निति कि
कोई भी मुल्क आपकी बातों को गम्भीरता से ना लें
और जब मौका मिले पलट जाये .
ये कैसी सुरछा
कि
देश की गुड़िया और बेटियां अपने को खतरें में महसूस करें
और
करोड़ों भुखमरी के शिकार बाले देश में
चन्द लोगों के रहने के लिए अरबों फुकनें बालें अम्बानी
की सुरछा के लिए
सरकार नियमों में परिबर्तन के लिए
ब्याकुल लगे .
ये कैसा नशा कि
पानी की एक एक बूंद को तरसने को मजबूर
लोगों को उनकी दशा पर छोड़ कर
सस्ते पानी के टैंकर देकर
हरे भरे मैदान में
क्रिकेट का मजा राजनेता लें .
ये कैसा समय
राम जाने .......
प्रस्तुति
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 15 अप्रैल 2013
आखिर क्यों
सड़क पर एक महिला की लाश.
बेबस घायल बच्चा
और अपनी किस्मत पर रोते उसके पिता को.. !
और देखा मंहगी गाड़ी
जो पास से गुजर रही थी
और उन में बैठे दो कौड़ी की औकात वाले
अपने की इंसान कहने वाले
समाज के लोगों को !
देखा
बस में से झांकते लोगो को
जो सिर्फ नाटक देखने और तालियाँ पीटने की ट्रेनिग लेते हैं बड़े बड़े आदर्शो से
जिनमे कभी कभी मैं खुद भी होता हूँ !
और देखा.. मरती हुई इंसानियत को
बहते हुए भावनाओं के खून को.. !
बहुत दर्द हुआ
आखिर क्यों
आज का मानब इतना स्वार्थी हो गया है
आखिर क्यों.
मदन मोहन सक्सेना
सोमवार, 8 अप्रैल 2013
ग़ज़ल (हालात)
दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.
उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं
जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं
जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है
समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं
ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
गुरुवार, 28 मार्च 2013
इतिश्री
अपने अनुभबों,एहसासों ,बिचारों को
यथार्थ रूप में
अभिब्यक्त करने के लिए
जब जब मैनें लेखनी का कागज से स्पर्श
किया
उस समय मुझे एक बिचित्र प्रकार के
समर से आमुख होने का अबसर मिला
लेखनी अपनी परम्परा ,प्रतिष्ठा , मर्यादा के लिए प्रतिबद्ध
थी
जबकि मैं यथार्थ चित्रण के लिए बाध्य था
इन दोनों के बीच कागज मूक दर्शक सा था
ठीक उसी तरह जैसे
आजाद भारत की इस जमीन पर
रहनुमाओं तथा अन्तराष्ट्रीय बित्तीय
संस्थाओं के बीच हुए
जायज और दोष पूर्ण अनुबंध को
अबाम को मानना अनिबार्य
सा है
जब जब लेखनी के साथ समझौता किया
हकीकत के साथ साथ कल्पित बिचारों को
न्योता दिया
सत्य से अलग हटकर लिखना
चाहा
उसे पढने बालों ने खूब सराहा
ठीक उसी तरह जैसे
बेतन ब्रद्धि के बिधेयक को पारित
करबाने में
बिरोधी पछ के साथ साथ सत्ता पछ के राजनीतिज्ञों
का बराबर का योगदान रहता है
आज मेरी प्रत्येक रचना
बास्तबिकता से कोसों दूर
काल्पनिकता का राग अलापती हुयी
आधारहीन तथ्यों पर आधारित
कृतिमता के आबरण में लिपटी हुयी
निरर्थक बिचारों से परिपूण है
फिर भी मुझको आशा रहती है कि
पढने बालों को ये
रुचिकर सरस ज्ञानर्धक लगेगी
ठीक उसी तरह जैसे
हमारे रहनुमा बिना किसी सार्थक प्रयास
के
जटिलतम समस्याओं का समाधान
प्राप्त होने कि आशा
आये दिन करते रहतें हैं
अब प्रत्येक रचना को
लिखने के बाद
जब जब पढने का अबसर मिलता है
तो लगता है कि
ये लिखा मेरा नहीं है
मुझे जान पड़ता है कि
मेरे खिलाफ
ये सब कागज और लेखनी कि
सुनियोजित साजिश का हिस्सा है
इस लेखांश में मेरा तो नगण्य हिस्सा है
मेरे हर पल कि बिबश्ता का किस्सा
है
ठीक उसी तरह जैसे
भेद भाब पूर्ण किये गए फैसलों
दोषपूर्ण नीतियों के नतीजें आने पर
उसका श्रेय
कुशल राजनेता
पूर्ब बर्ती सरकारों को दे कर के
अपने कर्तब्यों कि इतिश्री कर लेते हैं
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
शुक्रवार, 22 मार्च 2013
होली है
ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.
मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है
क्या जीजा हों कि साली हो ,देवर हो या भाभी हो
दिखे रंगनें में रंगानें में ,सभी मशगूल होली है
ना शिकबा अब रहे कोई ,ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, कि आयी आज होली है
तन से तन मिला लो अब मन से मन भी मिल जाये
प्रियतम ने प्रिया से आज मन की बात खोली है
प्रियतम क्या प्रिय क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
गुरुवार, 21 मार्च 2013
अदालत फैसला और फ़िल्मी कलाकार
देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में फिल्म स्टार संजय दत्त की माफी की दलील ठुकराते हुए उन्हें पांच साल की सजा सुनाई। 1993 में हुए मुंबई सीरियल ब्लास्ट में 257 लोगों की मौत हो गई थी और 713 लोग घायल हुए थे।
इस सजा के बाद महेश भट्ट , जया प्रदा ,करन जोहर और फ़िल्मी सितारों के बयां हैरान करने बाले ही नहीं बल्कि उनकी क़ानूनी जानकारी की भी पोल खोलते हैं . अब क्या देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट को इन फ़िल्मी सितारों की राय भी लेनी पड़ेगी . जो हर बात को अपनी
प्रसिद्धी से जोड़ कर रख देते है.
मदन मोहन सक्सेना
बुधवार, 20 मार्च 2013
कुदरत
क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..
एक जमी वख्शी थी कुदरत ने हमको यारों लेकिन
हमने सब कुछ बाँट दिया है मेरे में और तेरे में
आज नजर आती मायूसी मानबता के चेहरे पर
अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में
बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में
जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
रविवार, 17 मार्च 2013
तुम्हारी याद
आप के लिए "तुम्हारी याद "
प्रस्तुति : श्री मदन मोहन सक्सेना
तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा
तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा
तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा
अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा
दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
गुरुवार, 14 मार्च 2013
सरकार सहमति और सेक्स
ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) ने बिल के तमाम मुद्दों पर
सहमति बना ली। सहमति से सेक्स की उम्र
18 से घटाकर 16 साल करने पर जीओएम में एकराय बन गई है . एक तरफ जब सोलह
बरष में अपने भबिष्य को निरधारित करने बाले जनप्रतिनिधि को चुनने का अधिकार
नहीं है तो बहीं सरकार ने सेक्स करने की कानूनन खुली छुट देने का मन बना
लिया है.
सहमति से सेक्स की उम्र 16 वर्ष - इस निर्णय की आखिर क्या वजह है ? क्या यह निर्णय खाप पंचायतो के दबाव में लिया गया है, या फिर वे कौन लोग है जो इस चर्चा को आगे बढ़ा रहे है ? क्या यह महिलाओ को और अधिक स्वच्छंदता प्रदान करेगा या फिर उसके अधिकारों का अतिक्रमण, ये भविष्य के गर्भ में है | क्या यह मांग समाज कि तरफ से है, क्या हमारा समाज पंगु होता जा रहा है ? क्या हमारा समाज में बेटियों को सँभालने में अक्षम साबित हों रहा है ? जिस उम्र में यानि सोलहवे साल में जब भटकने की सबसे ज्यादा सम्भावना रहती है, उस समय उसे स्वच्छंदता देना या छूट देना कहा तक सही है | चारों तरफ प्रश्नचिन्ह लगे है , क्या इन सवालों के उत्तर है ?हमे विकास की सोचने की जगह सेक्स की ज्यादा चिंता हो रही है इसके लिय भारत के नैतिक मूल्यो का हास हो रहा है . सरकार एक नया कानून बनाने जा रही है जिसमे अन्य बातो के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण विषय यह है की सहमति से सेक्स की उम्र १८ से १६ वर्ष की जाए. मेरा ऐसा मानना है की १६ से १८ वर्ष तक युवक युवतिया यौवन की दहलीज पर होते है और इस दौरान वे अध्ययन कर रहे होते है क्या १६ वर्ष में सम्भोग की सहमति देकर सरकार उन्हें अध्ययन जैसे महत्वपूर्ण विषय से दूर नहीं कर रही है. मेरे विचार से इस कानून में से यह बात हटाई जानी चाहिए. कानून महिलाओं,लडकियों की सुरक्षा के लिए बनाए जाने चाहिए न की सेक्स को बढ़ावा देने के लिए , इस कानून का विरोध होना चाहिए,सेक्स की उम्र् ज़ो 18 से 16 किया गयाहै जो गलत है क्यूँकि लड़किया तो 16 साल मे 10 वी की परीछा देतीं है उस समय से यदि वो सेक्स शुरू कर देंगी तो आगे चलकर परेशानी होगी . लोग क्यों देश के लिए ऐसा कानून बना रहे हैं जहाँ एक तरफ बाल विवाह रोकेने के लिये कह रहे हैं दूसरी तरफ सेक्स की उम्र कम करने की बात हो रही है इसका गलत इस्तेमाल होगा .पहले ही लड़कियों क़ी आज़ादी के नाम पर बहुत कुछ देखने को मिल चूका है . लगता है की सरकार हमसे कह रही हो कि 12 साल की उमर में गुटखा खा लो | 13 की उमर सिगरेट पी लो | 14 की उमर में चरस चाट लो | 15 की उम्र में इश्क लड़ा लो | 16 की उम्र में सेक्स कर लो | 17 की उम्र में एड्स के सफल मरीज घोषित हो जाओ | और जिन्दा रहने तक सरकार की तरफ से "राष्ट्रीय एड्स फैलाओ योजना" के तहत 500 रूपये का मासिक "एड्स भत्ता" घर बैठे पाओ |आलोचक कुछ भी कहें सरकार का यह कदम ऐतिहासिक और मील का पत्थर साबित होने जा रहा है | महिला की सुरक्षा के लिये कदम उठना जरूरी है मगर इसके दुरुपयोग का परिणाम भी ध्यान मे रखा जाना चाहिये| कुछ लोग मानतें है कि हमारे समाज पर इसका कोई बहुत ज्यादा असर नही होगा. कोई भी कानून को देख कर सेक्स नही करता. हमारे समाज की जड़े अभी भी काफी हद तक मजबूत है. दूसरी तरफ़ हमे पश्चिमी सभ्यता का परिणाम तो हमे भुगतना ही पड़ेगा. हम वो करते है जो हम देखते है और उसी को जंहा तक संभव हो अपनाने की कोशिश करते है. समाज मे लड़के लड़कियां सब पढ़े लिखे है सर्विस करते है अकेले रहते है . हमे मानसिक रूप से आनेवाले बदलाव के लिये तैयार रहना चाहियें . जिस प्रकार से भारतीय फिल्मों ने सेक्स को जमकर परोसा है . महेश भट्ट ,एकता कपूर ,मलिक्का ,सनी लिओनी सेक्स के ब्रांड अम्बेसडर बन कर उभरें है और समाज ने जिस तरह से हाथों हाथ लिया है और अब सरकार भी उसी पथ पर अग्रसर है ऐसा लगता है. जिस तरह से पिछले 10 वर्षों में लड़के लड़कियों में पाश्चात्य संस्कृति का असर हुआ। टेक्नालोजी ने सेक्स का जमकर प्रचार प्रसार किया है। जिस तरह से सेक्स के प्रति खुलापन आया है।
रेप की परिभाषा को बदलना होगा। सेक्स को रेप से ना जोड़ा जाए नहीं तो लड़को की जिंदगी हराम हो जाएगी क्योंकि फिर कोई भी लड़की कुछ भी इल्जाम लगा सकती है।इस सेक्स की उम्र कम करने से क्या होगा मर्जी से सेक्स होगा फिर कोई भी नाराज होगा ओर आपस में कहा सुनी होगी तो रेपकेस दायर, वाह रे सरकार मे बैठे दुश्चरित्र बुद्धिजीवी लोगों को किस ओर ले जा रहे हो तुम समाज को इसका तुम्हे अंदाजा नही है बहुत जल्दी अंदाजा हो जायेगा बन जाने दो कानून 90% रेप ओर 90 % छेडखानी के केस दर्ज होंगे क्या इन सबसे निपटने के लिए सरकार के पास पुलिस ओर अदालत हैं . कहा जायेगा समाज इन समाज के ठेकेदारों को खबर ही नही है देश को अराजकता ओर दुराचार के जंजाल मे फसाया जा रहा है ताकि देश ओर देश का युवा सेक्स नशे के जाल मे खोया रहे ओर इस तरह् की खबरों मे उलझा रहे ओर सरकारे देश को लुटती रहे कोई युवा खड़ा होकर सरकार के खिलाफ आवाज ना उठाये ,विदेशी संस्कृति का देश मे प्रवेश ,देश को विनाश ओर राजनेताओ को सत्ता के अहम् मे चूर रहेगा ओर देश की युवा पीड़ी शराब ओर सेक्स के जाल फंस कर बर्बाद हो जायेगी यह होगा 10 साल बाद का इंडिया, यह सब सरकार की सोची समझी साजिश है देश को दूराचार के जाल मे धकेलने की,यह विदेशी कम्पनियों के हित साधने के लिये , अत्यंत मूर्खतापूर्ण फैसला लिया गया है वह भी बिना इस फैसले के इमप्लिकेशन्स को जाने बिना. देश में टीनेज प्रेगनेंसी की समस्या हो जायेगी , यौन रोगों की बाढ़ आ जायेगी और विदेशी दवा कम्पनियाँ , झोलाछाप डाक्टर्स और डाइयग्नॉस्टिक सेंटर्स जम कर कमाई करेंगे , जो उम्र पढने लिखने और खेलने कूदने की होती है उस उम्र में युवा पल दो पल की खुशियों के लिये अपनी जिंदगी खराब कर लेंगे.
सहमती से सेक्स की उम्र 16 वर्ष - इस निर्णय की आखिर क्या वजह है ? क्या यह निर्णय खाप पंचायतो के दबाव में लिया गया है, या फिर वे कौन लोग है जो इस चर्चा को आगे बढ़ा रहे है ? क्या यह महिलाओ को और अधिक स्वच्छंदता प्रदान करेगा या फिर उसके अधिकारों का अतिक्रमण, ये भविष्य के गर्भ में है | क्या यह मांग समाज कि तरफ से है, क्या हमारा समाज पंगु होता जा रहा है ? क्या हमारा समाज में बेटियों को सँभालने में अक्षम साबित हों रहा है ? जिस उम्र में यानि सोलहवे साल में जब भटकने की सबसे ज्यादा सम्भावना रहती है, उस समय उसे स्वच्छंदता देना या छूट देना कहा तक सही है | चारों तरफ प्रश्नचिन्ह लगे है , क्या इन सवालों के उत्तर है ?
मदन मोहन सक्सेना
सहमति से सेक्स की उम्र 16 वर्ष - इस निर्णय की आखिर क्या वजह है ? क्या यह निर्णय खाप पंचायतो के दबाव में लिया गया है, या फिर वे कौन लोग है जो इस चर्चा को आगे बढ़ा रहे है ? क्या यह महिलाओ को और अधिक स्वच्छंदता प्रदान करेगा या फिर उसके अधिकारों का अतिक्रमण, ये भविष्य के गर्भ में है | क्या यह मांग समाज कि तरफ से है, क्या हमारा समाज पंगु होता जा रहा है ? क्या हमारा समाज में बेटियों को सँभालने में अक्षम साबित हों रहा है ? जिस उम्र में यानि सोलहवे साल में जब भटकने की सबसे ज्यादा सम्भावना रहती है, उस समय उसे स्वच्छंदता देना या छूट देना कहा तक सही है | चारों तरफ प्रश्नचिन्ह लगे है , क्या इन सवालों के उत्तर है ?हमे विकास की सोचने की जगह सेक्स की ज्यादा चिंता हो रही है इसके लिय भारत के नैतिक मूल्यो का हास हो रहा है . सरकार एक नया कानून बनाने जा रही है जिसमे अन्य बातो के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण विषय यह है की सहमति से सेक्स की उम्र १८ से १६ वर्ष की जाए. मेरा ऐसा मानना है की १६ से १८ वर्ष तक युवक युवतिया यौवन की दहलीज पर होते है और इस दौरान वे अध्ययन कर रहे होते है क्या १६ वर्ष में सम्भोग की सहमति देकर सरकार उन्हें अध्ययन जैसे महत्वपूर्ण विषय से दूर नहीं कर रही है. मेरे विचार से इस कानून में से यह बात हटाई जानी चाहिए. कानून महिलाओं,लडकियों की सुरक्षा के लिए बनाए जाने चाहिए न की सेक्स को बढ़ावा देने के लिए , इस कानून का विरोध होना चाहिए,सेक्स की उम्र् ज़ो 18 से 16 किया गयाहै जो गलत है क्यूँकि लड़किया तो 16 साल मे 10 वी की परीछा देतीं है उस समय से यदि वो सेक्स शुरू कर देंगी तो आगे चलकर परेशानी होगी . लोग क्यों देश के लिए ऐसा कानून बना रहे हैं जहाँ एक तरफ बाल विवाह रोकेने के लिये कह रहे हैं दूसरी तरफ सेक्स की उम्र कम करने की बात हो रही है इसका गलत इस्तेमाल होगा .पहले ही लड़कियों क़ी आज़ादी के नाम पर बहुत कुछ देखने को मिल चूका है . लगता है की सरकार हमसे कह रही हो कि 12 साल की उमर में गुटखा खा लो | 13 की उमर सिगरेट पी लो | 14 की उमर में चरस चाट लो | 15 की उम्र में इश्क लड़ा लो | 16 की उम्र में सेक्स कर लो | 17 की उम्र में एड्स के सफल मरीज घोषित हो जाओ | और जिन्दा रहने तक सरकार की तरफ से "राष्ट्रीय एड्स फैलाओ योजना" के तहत 500 रूपये का मासिक "एड्स भत्ता" घर बैठे पाओ |आलोचक कुछ भी कहें सरकार का यह कदम ऐतिहासिक और मील का पत्थर साबित होने जा रहा है | महिला की सुरक्षा के लिये कदम उठना जरूरी है मगर इसके दुरुपयोग का परिणाम भी ध्यान मे रखा जाना चाहिये| कुछ लोग मानतें है कि हमारे समाज पर इसका कोई बहुत ज्यादा असर नही होगा. कोई भी कानून को देख कर सेक्स नही करता. हमारे समाज की जड़े अभी भी काफी हद तक मजबूत है. दूसरी तरफ़ हमे पश्चिमी सभ्यता का परिणाम तो हमे भुगतना ही पड़ेगा. हम वो करते है जो हम देखते है और उसी को जंहा तक संभव हो अपनाने की कोशिश करते है. समाज मे लड़के लड़कियां सब पढ़े लिखे है सर्विस करते है अकेले रहते है . हमे मानसिक रूप से आनेवाले बदलाव के लिये तैयार रहना चाहियें . जिस प्रकार से भारतीय फिल्मों ने सेक्स को जमकर परोसा है . महेश भट्ट ,एकता कपूर ,मलिक्का ,सनी लिओनी सेक्स के ब्रांड अम्बेसडर बन कर उभरें है और समाज ने जिस तरह से हाथों हाथ लिया है और अब सरकार भी उसी पथ पर अग्रसर है ऐसा लगता है. जिस तरह से पिछले 10 वर्षों में लड़के लड़कियों में पाश्चात्य संस्कृति का असर हुआ। टेक्नालोजी ने सेक्स का जमकर प्रचार प्रसार किया है। जिस तरह से सेक्स के प्रति खुलापन आया है।
रेप की परिभाषा को बदलना होगा। सेक्स को रेप से ना जोड़ा जाए नहीं तो लड़को की जिंदगी हराम हो जाएगी क्योंकि फिर कोई भी लड़की कुछ भी इल्जाम लगा सकती है।इस सेक्स की उम्र कम करने से क्या होगा मर्जी से सेक्स होगा फिर कोई भी नाराज होगा ओर आपस में कहा सुनी होगी तो रेपकेस दायर, वाह रे सरकार मे बैठे दुश्चरित्र बुद्धिजीवी लोगों को किस ओर ले जा रहे हो तुम समाज को इसका तुम्हे अंदाजा नही है बहुत जल्दी अंदाजा हो जायेगा बन जाने दो कानून 90% रेप ओर 90 % छेडखानी के केस दर्ज होंगे क्या इन सबसे निपटने के लिए सरकार के पास पुलिस ओर अदालत हैं . कहा जायेगा समाज इन समाज के ठेकेदारों को खबर ही नही है देश को अराजकता ओर दुराचार के जंजाल मे फसाया जा रहा है ताकि देश ओर देश का युवा सेक्स नशे के जाल मे खोया रहे ओर इस तरह् की खबरों मे उलझा रहे ओर सरकारे देश को लुटती रहे कोई युवा खड़ा होकर सरकार के खिलाफ आवाज ना उठाये ,विदेशी संस्कृति का देश मे प्रवेश ,देश को विनाश ओर राजनेताओ को सत्ता के अहम् मे चूर रहेगा ओर देश की युवा पीड़ी शराब ओर सेक्स के जाल फंस कर बर्बाद हो जायेगी यह होगा 10 साल बाद का इंडिया, यह सब सरकार की सोची समझी साजिश है देश को दूराचार के जाल मे धकेलने की,यह विदेशी कम्पनियों के हित साधने के लिये , अत्यंत मूर्खतापूर्ण फैसला लिया गया है वह भी बिना इस फैसले के इमप्लिकेशन्स को जाने बिना. देश में टीनेज प्रेगनेंसी की समस्या हो जायेगी , यौन रोगों की बाढ़ आ जायेगी और विदेशी दवा कम्पनियाँ , झोलाछाप डाक्टर्स और डाइयग्नॉस्टिक सेंटर्स जम कर कमाई करेंगे , जो उम्र पढने लिखने और खेलने कूदने की होती है उस उम्र में युवा पल दो पल की खुशियों के लिये अपनी जिंदगी खराब कर लेंगे.
सहमती से सेक्स की उम्र 16 वर्ष - इस निर्णय की आखिर क्या वजह है ? क्या यह निर्णय खाप पंचायतो के दबाव में लिया गया है, या फिर वे कौन लोग है जो इस चर्चा को आगे बढ़ा रहे है ? क्या यह महिलाओ को और अधिक स्वच्छंदता प्रदान करेगा या फिर उसके अधिकारों का अतिक्रमण, ये भविष्य के गर्भ में है | क्या यह मांग समाज कि तरफ से है, क्या हमारा समाज पंगु होता जा रहा है ? क्या हमारा समाज में बेटियों को सँभालने में अक्षम साबित हों रहा है ? जिस उम्र में यानि सोलहवे साल में जब भटकने की सबसे ज्यादा सम्भावना रहती है, उस समय उसे स्वच्छंदता देना या छूट देना कहा तक सही है | चारों तरफ प्रश्नचिन्ह लगे है , क्या इन सवालों के उत्तर है ?
मदन मोहन सक्सेना
मंगलवार, 12 मार्च 2013
रहमत
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता.
मर्जी बिन खुदा यारो तो जर्रा हिल नहीं सकता
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता...
मन्नत पूरी करना है खुदा की बंदगी कर लो
जियो और जीने दो खुशहाल जिंदगी कर लो
मर्जी जब खुदा की हो तो पूरे अपने सपने हों
रहमत जब खुदा की हो तो बेगाने भी अपने हों
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना बुधवार, 6 मार्च 2013
मजबूरी
नजरें जब मिली उनसे बिलकुल बैसी मूरत थी
जब भी गम मिला मुझको या अंदेशे कुछ पाए हैं
बिठा के पास अपने उन्होंने अंदेशे मिटाए हैं
उनका साथ पाकर के तो दिल ने ये ही पाया है
अमाबस की अँधेरी में ज्यों चाँद निकल पाया है
जब से मैं मिला उनसे दिल को यूँ खिलाया है
अरमां जो भी मेरे थे हकीकत में मिलाया है
बातें करनें जब उनसे हम उनके पास हैं जाते
चेहरे पे जो रौनक है उनमें हम फिर खो जाते
ये मजबूरी जो अपनी है हम उनसे बच नहीं पाते
देखे रूप उनका तो हम बाते कर नहीं पाते
बिबश्ता देखकर मेरी सब कुछ बो समझ जाते
हमसे आँखों से ही करते हैं अपने दिल की सब बातें
हमसे आँखों से ही करते हैं अपने दिल की सब बातें
काब्य प्रस्तुति :
रविवार, 3 मार्च 2013
याद
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या
होगा
तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती
है
मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर
क्या होगा
तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में
रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा
अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया
होगा
दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम
यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा
प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना
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