बुधवार, 21 नवंबर 2012

खुशबुओं की बस्ती






खुशबुओं  की   बस्ती में  रहता  प्यार  मेरा  है 
आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है 
उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा है
अब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है  

जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है 
प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहरा है 
प्यार तो है  सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है
रहमते खुदा की जिस पर सर उसके बंधे सेहरा है

प्यार ने तो जीबन में ,हर पल खुशियों को बिखेरा है
ना जाने ये मदन ,फिर क्यों लगे प्यार पे  पहरा है


काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना



रविवार, 18 नवंबर 2012

नज़ारे






अपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैं
परायी  लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैं
ना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँ
हम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैं


जीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी है
पाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे हैं 
ना उनसे दूर हम जाएँ ,इनायत मेरे रब करना
आँखों के बह तारे है ,बह लगते हमको प्यारे हैं

पाते जब कभी उनको , तो  आ जाती बहारे हैं 
मैं कहता अपने दिल से हूँ ,सो दिलकश यूँ नज़ारे हैं




मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 15 नवंबर 2012

ख्बाब



 

















ख्बाब था मेहनत के बल पर , हम बदल डालेंगे किस्मत
ख्बाब केवल ख्बाब बनकर, अब हमारे रह गए है

कामचोरी धूर्तता चमचागिरी का अब चलन है
बेअरथ से लगने लगे है ,युग पुरुष जो कह गए है

दूसरो का किस तरह नुकसान हो सब सोचते है
त्याग ,करुना, प्रेम ,क्यों इस जहाँ से बह गए है

अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए है

नाज हमको था कभी पर आज सर झुकता शर्म से
कल तलक जो थे सुरक्षित आज सरे ढह गए



मदन मोहन सक्सेना 

रविवार, 11 नवंबर 2012

दीवाली और उदासी






















दीवाली और उदासी :

बह हमसे बोले हसंकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली

मैं कैसें उनसे बोलूं कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली

बह  बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम

इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम

मैंने जो देखा उनको खड़ें बह  मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बो दौलत लुटा रहे थे

मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता

बह  बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बह  तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सब कुछ खुशियों से दामन भर लो

बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो

बह  बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है

तुमको लगेगा ऐसा कि सब आपस में मिले हैं
पर ये न दिख सकेगा दिल में शिक्बे और गिले हैं

मैनें जो उनसे कहा क्या ,क्या कह जा रहे हैं
जो कुछ भी तुमने बोला ना हम समझ पा रहे हैं

मेरी नजर से देखो दुनियां में प्यार ही मिलेगा
दौलत का नशा झूठा पल भर में ये छटेगा

दौलत है आनी जानी ये तो तो सब ही जानतें हैं
ये प्यार भरी दुनियां बस हम प्यार मानतें है

प्रेम के दीपक, तुम जब हर दिल में जलाओगे
सुख शांति समृधि की सच्ची दौलत तुम पाओगे

बह  बात सुन कर बोले ,यहाँ हर रोज है दीवाली
इन्सान की इस दुनियां का बस इश्वर है माली

बह  मुस्करा के बोले अब हम तो समझ गएँ हैं
प्रेम के दीपक भी मेरे दिल में जल गएँ हैं




प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना  



गुरुवार, 8 नवंबर 2012

दीपों का त्यौहार








मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..

मुझको जो भी मिलना हो ,बह तुमको ही मिले दौलत
तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत
सदा मिलती रहे शोहरत  ,रोशन नाम तेरा हो
ग़मों का न तो साया हो, निशा में न अँधेरा हो

दिवाली आज आयी है, जलाओ प्रेम के दीपक
जलाओ प्रेम के दीपक  ,अँधेरा दूर करना है
दिलों में जो अँधेरा है ,उसे हम दूर कर देंगें
मिटा कर के अंधेरों को, दिलों में प्रेम भर देंगें

मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा
सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा  ये बतन होगा
धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी  बो भी अपने हैं 
हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं


दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।


काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना


मंगलवार, 6 नवंबर 2012

ग़ज़ल (दुआ)

















हुआ इलाज भी मुश्किल ,नहीं मिलती दबा असली
दुआओं का असर होता दुआ से काम लेता हूँ

मुझे फुर्सत नहीं यारों कि माथा टेकुं दर दर पे
अगर कोई डगमगाता है उसे मैं थाम लेता हूँ



खुदा का नाम लेने में क्यों मुझसे देर हो जाती
खुदा का नाम से पहले मैं उनका नाम लेता हूँ

मुझे इच्छा नहीं यारों की मेरे पास दौलत हो
सुकून हो चैन हो दिल को इसी से काम लेता हूँ

सब कुछ तो बिका करता मजबूरी के आलम में
सांसों के जनाज़े को सुबह से शाम लेता हूँ

सांसे है तो जीवन है तभी है मूल्य मेहनत का
जितना है जरुरी बस उसी का दाम लेता हूँ

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

रविवार, 4 नवंबर 2012

इनायत


















दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

शोहरत  की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़ 
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी

मर्ज ऐ  इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में 
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

करवाचौथ और पति पत्नी का रिश्ता



करवाचौथ और  पति पत्नी का रिश्ता


कल करवाचौथ के दिन भारतबर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है . पति पत्नी का रिश्ता समस्त उतार चदाबों   के साथ इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है .आज के इस दौर में जब सब लोग एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों तो आजकल  पत्नी का उपवास रखना किसी अजूबे से कम नहीं हैं।  मेरी  पत्नी (शिवानी सक्सेना )को समर्न्पित एक कबिता :

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अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ 

पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर 
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना 

अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ 
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ 
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है 
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकि फिर  क्या करना है

अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना 
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना 
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बो सजा होगी 
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी सजा होगी  

कबिता :
मदन मोहन सक्सेना  


रविवार, 28 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल (हकीक़त)



 
















चेहरे की हकीक़त  को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है

मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है

क्या बताये आपको हम अपने  दिल की दास्ताँ
किसी पत्थर की मूरत पर ये अक्सर मचल जाता है

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

भरमार
















हम   को   खबर  लगी  आज कल  अब  ये  
चमचों  की   होने  लगी आज भरमार है 

मैडम  जब    हँसती   हैं हँस देते कांग्रेसी  
साथ साथ  रहने को हुए बेकरार हैं 

कद  मिले, पद  मिले, और मंत्री पद मिले 
चमचों का होने लगा आज सत्कार है

चमचों ने पाए लिया ,खूब माल खाय लिया 
जनता है भूखी प्यासी ,हुआ हाहाकार है 
 
काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
 

इशारे


















किसी   के  दिल  में चुपके  से  रह  लेना  तो  जायज  है
मगर  आने  से  पहले  कुछ  इशारे  भी  किये  होते 

नज़रों  से मिली नजरे तो नज़रों में बसी सूरत 
काश हमको उस खुदाई के नज़ारे  भी दिए होते

अपना हमसफ़र जाना ,इबादत भी करी जिनकी
चलतें दो कदम संग में ,सहारे भी दिए होते

जीने का नजरिया फिर अपना कुछ अलग होता 
गर अपनी जिंदगी के गम ,सारे दे दिए होते

दिल को भी जला लेते और ख्बाबों को जलाते  हम
गर मुहब्बत में अँधेरे के इशारे जो किये होते

ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

नज़राना
























अपना दिल कभी था जो, हुआ है आज बेगाना
आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना
दुनियां में तो अक्सर ही ,सभल कर लोग गिर जाते
मगर उनकी ये आदत है कि  गिरकर भी संभल जाना



आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नजरो का झुका जाना
ये उनकी ही अदाए  हैं ये  मुश्किल है कहीं पाना



जो बाते रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
बो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
बो नीली झील सी आँखों में दुनियां का  नजर आना
बताओ तुम दे दू क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना
 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना  

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल(बात करते हैं )



















सजाए  मोत का तोहफा  हमने पा लिया  जिनसे 
ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधर दिलाने  की बात करते हैं 

हुए दुनिया से  बेगाने हम जिनके एक इशारे पर 
ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते  हैं

दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता
जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते  हैं

हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसने
बीते कल को हमसे बो अब चुराने की बात करते हैं

नजरे जब मिली उनसे तो चर्चा हो गयी अपनी 
न जाने क्यों बो अब हमसे प्यार छुपाने की बात करते  हैं



ग़ज़ल:
मदन मोहन सक्सेना

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

मुक्तक

















अपना हाल ऐसा है की हम जाने और दिल जाने
पल भर भी बो ओझल हो तो देता दिल हमें ताने
रह करके सदा   उनका  हमें जीना  हमें मरना 
गुजारिश  है खुदा  से   ये, हमको  न  जुदा  करना 




मुक्तक प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

बुधवार, 26 सितंबर 2012

ज़ज्बात


























जिन्हें है फ़िक्र घर भर की चिंता है ज़माने की 
मिले कोई जहाँ पर भी बयां ज़ज्बात होते  हैं  ..

ये उनमें से नहीं है जो राज ए दिल दफ़न कर   लें 
गर अपने पर ये आ जाये तो चर्चा ए बात होते हैं 

बयाँ जज्बात करने को अगर कोई नहीं मिलता 
तन्हाई के आलम में तब दिन को रात होते हैं 



प्रस्तुति:  
मदन  मोहन सक्सेना  

सोमवार, 24 सितंबर 2012

दिलबर



तुम पास नो हो मेरे  मेरी जान निकलती है
तेरा साथ  रहे जब तक मेरी सांसें चलती है

दुनियां में कहते हैं , कोई संग आता है न जाता
दिलबर तुमसे है मेरा जन्मों जन्मों का नाता

सपनों में  न भुलाना मेरी जन्नत है तुम्ही से
मेरे हमसफ़र मेरे दिलबर मेरा सब कुछ है तुम्ही से

नजरें मिली जो तुमसे तो बात बन गयी है
तेरे प्यार को ही पाकर दुनियां बदल गयी है

तुम दूर क्यों रहती हो क्यों पास नहीं आती
जो दिल में यादें हैं बह दिल से नहीं जाती

दिल तुमने ले लिया है अब पास मेरे आओ
देखे न तुमको कोई आँखों में तुम समाओ



काब्य प्रस्तुति : 
मदन मोहन सक्सेना  


  

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

जन्मदिन

परम पिता की असीम अनुकम्पा से आज मैं अपना जन्मदिन मनाने की हालत में हूँ  .आज मेरे जन्म दिन के अबसर पर आप सब भी स्वादिष्ट ब्यंजनों का आनंद लीजिये।

































अपना दिल




















अपना दिल जब ये पूछें की दिलकश क्यों नज़ारे हैं
परायी  लगती दुनिया में बह लगते क्यों हमारे हैं
ना उनसे तुम अलग रहना ,मैं कहता अपने दिल से हूँ
हम उनके बिन अधूरें है ,बह जीने के सहारे हैं


जीबन भर की सब खुशियाँ, उनके बिन अधूरी है
पाकर प्यार उनका हम ,उनसे सब कुछ हारे हैं 
ना उनसे दूर हम जाएँ इनायत मेरे रब करना
आँखों के बह तारे है ,बह लगते हमको प्यारे हैं

पाते जब कभी उनको , तो  आ जाती बहारे है
मैं कहता अपने दिल से हूँ ,सो दिलकश यूँ नज़ारे हैं



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

सोमवार, 17 सितंबर 2012

विघ्नहर्ता














 

 










हे भालचन्द्राय ! हे कर्मयोगी !हे वक्रतुण्डाय !  हे वरदमूर्ति विघ्नहर्ता ...आप हमारे भी विघ्न दूर करने  पधारो जी।

विघ्नहर्ता आप  हम  सब के कष्टों का निबारण करें .   

हे रब किसी से छीन कर मुझको ख़ुशी न दे
जो दूसरों को बख्शी को बो जिंदगी न दे

तन दिया है मन दिया है और जीवन दे दिया
प्रभु आपको इस तुच्छ का है लाखों लाखों शुक्रिया

चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो
प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

मेरी अर्ध्य है प्रभु आपसे प्रभु शक्ति ऐसी दीजिये
मुझे त्याग करूणा प्रेम और मात्रं भक्ति दीजिये

तेरा नाम सुमिरन मुख करे कानों से सुनता रहूँ
करने को समर्पित पुष्प मैं हाथों से चुनता रहूँ

जब तलक सांसें हैं मेरी ,तेरा दर्श मैं पाता रहूँ
ऐसी कृपा कुछ कीजिये तेरे द्वार मैं आता रहूँ

 


प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना